एक पल में बदल जाएगा जीवन
01-Jan-2019 10:15 AM 1235115
श्रीमद्भागवद् गीता अर्जुन के अलावा धृतराष्ट्र एवं संजय ने सुनी थी। अर्जुन से पहले गीता का परम पावन ज्ञान श्रीहरि ने सूर्यदेव को सुनाया था। श्रीमद्भागवत गीता को किसने लिखा, यह प्रमाणिक रूप से स्पष्ट नहीं है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। भागवत गीता का सार हमारे जीवन को एक पल में बदल सकता है। महाभारत काल में दिया गया गीता का उपदेश आज भी प्रासंगिक है। गीता का उपदेश समस्त जगत के लिए है। श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान अर्जुन को इसलिये दिया क्योंकि वह कत्र्तव्य पथ से भटककरर संन्यासी और वैरागी जैसा आचरण करके युद्ध छोडऩे को आतुर हो गया था वह भी ऐसे समय जब की सेना मैदान में डटी थी। ऐसे में श्रीकृष्ण को उन्हें उनका कर्तव्य निभाने के लिए यह ज्ञान दिया। कर्म क्यों जरूरी, यह कैसा होना चाहिए इसके बारे में बताते हुए भगवान कहते हैं कि.... तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम।। यानी अर्जुन तुम मेरा चिंतन करो। लेकिन अपना कर्म करते रहो। वे अपना काम छोड़कर केवल भगवान का नाम लेते रहने का नहीं कहते। भगवान कभी भी किसी अव्यावहारिक बात की सलाह नहीं देते। गीता में लिखा है बिना कर्म के जीवन बना नहीं रह सकता। कर्म से मनुष्य को जो सिद्धि प्राप्त हो सकती है, वह तो संन्यास से भी नहीं मिल सकती। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बताया है कि कोई भी व्यक्ति कर्म नहीं छोड़ सकता। प्रकृति व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है पर मन ही मन उसमें डूबा रहता है। मनुष्य का स्वार्थ उसे नकारात्मकता की ओर धकेलता है। अगर इस जीवन में खुश रहना चाहते हैं तो स्वार्थ को कभी अपने पास आने मत दो। जो इंसान अपने नजरिए को सही प्रकार से इस्तेमाल नहीं करता है वह अंधकार में धंसता जाता है। मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जैसा वो विश्वास करता है वैसा वह बन जाता है। जो मनुष्य मन को वश में कर लेता है, उसका मन ही उसका सबसे अच्छा मित्र बन जाता है। जो मनुष्य मन को वश में नहीं कर पाता है, उसके लिए वह मन ही उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में यह बताते हैं कि सुख कैसे प्राप्त होगा कहते हैं कि.... मास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदु: खदा:। आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। यानी सुख - दुख का आना और चले जाना सर्दी-गर्मी के आने-जाने के समान है। सहन करना सीखें। गीता में लिखा है- जिसने बुरी इच्छाओं और लालच को छोड़ दिया है, उसे शान्ति मिलती है। कोई भी इच्छाओं से मुक्त नहीं हो सकता। पर इच्छा की गुणवत्ता बदलनी होती है। दरअसल, गीता हमें संकुचन से विस्तार की तरफ तथा सूक्ष्म से विराट की ओर ले जाती है। गीता का केवल अध्ययन व श्रवण ही नहीं उस पर मनन व उसके अनुरूप आचरण भी करना चाहिए। गीता ज्ञान, आस्था और आचरण तीनों का स्त्रोत है। जीवन में ये तीनों ही तत्व आगे बढऩे के लिए आवश्यक है, ङ्क्षकतु इनका अनुपात संतुलन में होना चाहिए। गीता हमें यह सिखाती है कि पहले हम जीवन का लक्ष्य तय करें और फिर उसे प्राप्त करने के लिए पूरे मनोबल से आगे बढ़ें। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को यह भी कहा कि पार्थ तू मुनि हो जा। इसका आशय यह है कि मानव के दायरे से निकलकर तू एक ऋषि की तरह सबके कल्याण की सोच। अब हमें दुनिया के सुधार के लिए किसी अवतार की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए, अपितु सभी को सामूहिक रूप से खुद का अवतरण कर मानव हित में कार्य करना चाहिए। मात्र एक व्यक्ति से बदलाव की उम्मीद रखने की बजाय मिलकर समाज, देश और विश्व को बदलने का संकल्प लें। भागवत गीता एक दिव्य ग्रंथ है। यह भक्तों के प्रति भगवान द्वारा प्रेम में गाया हुआ गीत है। गीता मंगलमय जीवन का ग्रंथ है। गीता मरना सिखाती है तो जीवन को धन्य बनाती है। जीवन उत्थान के लिए इसका स्वाध्याय हर व्यक्ति को करना चाहिए। गीता केवल ग्रंथ नहीं, कलियुग के पापों का क्षय करने का माध्यम है। गीता में कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए गए हैं जिन्हे अपनाकर जीवन को सुखी व सफल बनाया जा सकता है। आजीविका काम कैसा चुनना चाहिए, इसके बार में बताते हुए भगवान कहते हैं कि... सदृशं चेष्टते स्वस्या: प्रकृतेज्र्ञानवानपि। प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रह: किं करिष्यति।। यानी व्यक्ति को अपने स्वभाव के अनुसार काम-आजीविका चुननी चाहिए। वह काम जिसमें, उसे खुशी मिलती हो। हम अपनी प्रकृति और क्षमता के अनुसार काम करें। अपने अस्तित्व की जरूरत के अनुसार काम करें। गीता में यह भी लिखा है कि जो काम आपके हाथ में इस समय है, यानी वर्तमान कर्म उससे अच्छा कुछ नहीं है। उसे पूर्ण करो। भागवत साक्षात नारायण का स्वरूप और मुक्ति प्रदाता है। भागवत के आरंभ में सबसे पहले सत्य को प्रणाम किया गया है क्योंकि सत्य में ही राम है सत्य में ही कृष्ण है और सत्य में ही शिव है। भागवत की शुरुआत इसलिए ही सत्यम शिवम सुंदरम से होती है। -ओम
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^