02-Nov-2018 09:26 AM
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मैं बैठे-बैठे बोर हो रहा हूं... बोरियत भगाने के लिए कुछ लिखने की सूझ रही है.. लेकिन यहां का दृश्यमान वातावरण बोरियत भरा होने के कारण विषय-विहीन प्रतीत हो रहा है, फिर भी लिख रहा हूं, एक ओर कुछ बड़े-बूढ़े और बच्चे ताजिए का जुलूस उठने के इंतजार में बोर हो रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर सब्जी बेंचने वाला ग्राहक के इंतजार में..! इधर मेरे अगल-बगल बैठे चार-छह लोग बोरियत से बचने के लिए आपस में बतिया रहे हैं, तो वहीं कुछ कुर्सियां अपने खालीपन की बोरियत में बोर हुए आदमी की तलाश कर रहीं हैं और उधर सामने छत पर खड़ी वह बेचारी अकेली लड़की भी इधर-उधर देखते हुए जैसे अपनी बोरियत दूर भगाने का प्रयास कर रही है।
और अब मेरे सामने भुना चना रख दिया गया है, मैं अपनी बोरियत भगाने की गरज में एक-एक चना लेकर टूंगना शुरू कर देता हूं.. लेकिन यह महराया चना अपनी बोरियत से मेरी बोरियत द्विगुणित कर रहा है, निश्चित ही भड़भुजवा और दुकानदार दोनों लम्बी अवधि वाले बोरियत के शिकार होंगे। इधर जलेबी-समोसे वाला दुकानदार भी बोरियत का मारा दिखाई पड़ रहा है, जो अपनी ओर निहारते उस कुत्ते की बोरियत से अनजान है..! बेचारा कुत्ता उसे निहार-निहार कर बोर हो रहा है। जबकि वहीं जलेबी और समोसे पर बैठ-बैठ कर मक्खियां बोर हो रहीं हैं और बेचारी भिनभिना-भिनभिना कर अपनी बोरियत दूर कर रही हैं..! यहां बोरियत का ऐसा आलम है कि चौराहे पर लगा स्वच्छता का संदेश देने वाला वह फ्लैक्स भी सामने पड़े कूड़े की ओर देख-देख अपनी बोरियत में फटा जा रहा है, और बेचारे कूड़ागण हमारी बोरियत में खलल न पड़े, यह सोच-सोचकर यहां-वहां पड़े-पड़े बोर हो रहे हैं..! मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे, यहां क्या आदमी क्या जानवर और क्या कूड़ा सभी अपनी बोरियत के साथ एक दूसरे की बोरियत से भी बोर हो रहे हैं।
हां.. मैं देख रहा हूं काफी देर से बैठा एक आदमी अपनी बोरियत से बोर होकर दूसरी जगह बोर होने के लिए उठकर चल दिया.. तथा अब तक आसमान में छाये-छाये बोर हो रहे बादल भी अपनी बोरियत दूर करने के लिए बंूद बन टपकने लगे हैं और इन बूंदों से हमारी बोरियत में खलल पड़ा..हां, गजब! एक की बोरियत दूसरे की बोरियत भगाने के काम आती है..! लेकिन बादलों को आसमान में बोर होना मंजूर है, हमारी बोरियत दूर होना नहीं.. और बादल बूंद बनना बंद हो गए..!
खैर, इस कायनात की बदौलत हमारी बोरियत दूर होने से रही..! लेकिन यहां का मानव जरूर बोरियत दूर करने में माहिर है.. क्योंकि अभी-अभी बोरियत दूर करने के लिए लिखने की अपेक्षा बात सुनने की विधि पर ध्यान गया बातों का लब्बो-लुआब यह निकल कर आया है कि कुछ अपने कार्यक्षेत्र में इस हद तक बोरियत के मारे होते हैं कि किसी चौराहे पर चींटी की एक टांग क्यों टूटी इसे जानने के लिए हलकान हो उठते हैं..! वाह!! यह महानता से ओतप्रोत टाइप की बोरियत है और इस टाइप की बोरियत से देश सुधारा जा सकता है..!!! खैर..
जुलूस आने की सुगबुगाहट से हमारी बोरियत में खलल पडऩे का अंदेशा उत्पन्न हो गया है.. अरे हां! एक बात और ये जुलूस-फुलूस बोरियत में डूबे लोगों की बोरियत के विरूद्ध सामूहिक प्रतिक्रिया है.. जिस जुलूस में जितनी भीड़ होगी उसी अनुपात में उसमें बोरों की संख्या होगी.. हां बोरियत-भाव की एक खासियत यह कि यह धर्म, जाति, सम्प्रदाय से परे रहने वाली चीज होती है और सही मायने में इसमें एक टाइप का सेक्युलरिज्म होता है, हां इस सीमा तक हमारा देश बेहद सेक्युलर देश है.. इस बात का अनुमान विभिन्न समयों पर उठते-बैठते सड़क चौराहों पर निकलते जुलूसों को देखकर लगाया जा सकता है।
चलते-चलते हम एक बात और कहना चाहते हैं.. जिस नेता के पीछे जितनी अधिक भीड़ होगी वह नेता या तो लोगों की बोरियत पहचानने में माहिर होगा या फिर बोर हो रहे लोगों का सरताज होगा! लेकिन इस देश में बोरियत की भी अपनी एक समस्या है, यहां बोरियत किसी एक बात के आधार पर टिकाऊ नहीं, कि कहें, बेटा! हम तो इस कारण से ही बोर हो रहे हैं..!! यहां बोरियत एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है आज इस बात से तो कल उस बात से हमें बोर होना ही है.. इसी वजह से बोरों के सरताजों या कहें बोरियत के विशेषज्ञों के लिए सार्वकालिक कठिनाई बनी रहती है.. ये बेचारे! बोरियत को पहचानने और उसके पीछे के कारण पर शोध करते हुए बोर हो-होकर हलकान हो जाते हैं.. और बोरियत है कि दूर होती ही नहीं।
लो भाई! जुलूस अब पास आ गया हमारी बोरियत दूर हुई..लेकिन हमने आपको बोरियत- बोरियत पढ़ाकर जरूर बोर कर दिया है। कोई बात नहीं, क्षमा करिएगा.. आखिर यह बोरियतनामा ही तो है..!!!
-विनय कुमार तिवारी