02-Nov-2018 06:10 AM
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असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
अर्थात् इस प्रार्थना में अंधकार से प्रकाश की ओर जाने की कामना की गई है। दीपों का पावन पर्व दीपावली भी यही संदेश देता है। यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है। दीपावली का अर्थ है दीपों की श्रृंखला। दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों दीप एवं आवली अर्थात श्रृंखला के मिश्रण से हुई है। दीपावली का पर्व कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है। वास्तव में दीपावली एक दिवसीय पर्व नहीं है, अपितु यह कई त्यौहारों का समूह है, जिनमें धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा और भैया दूज सम्मिलित हैं।
दीपावली महोत्सव कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। तुलसी या घर के द्वार पर दीप जलाया जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन यम की पूजा के लिए दीप जलाए जाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन लोग गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर उसकी पूजा करते हैं। भैया दूज पर बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके लिए मंगल कामना करती है। इस दिन यमुना नदी में स्नान करने की भी परंपरा है।
प्राचीन हिंदू ग्रंथ रामायण के अनुसार दीपावली के दिन श्रीरामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने श्रीराम के स्वागत में घी के दीप जलाए थे। प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार दीपावली के दिन ही 12 वर्षों के वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी हुई थी। मान्यता यह भी है कि दीपावली का पर्व भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी से संबंधित है। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से प्रारंभ होता है। समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में लक्ष्मी भी एक थीं, जिनका प्रादुर्भाव कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ था। उस दिन से कार्तिक की अमावस्या लक्ष्मी-पूजन का त्यौहार बन गया। दीपावली की रात को लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे विवाह किया था। मान्यता है कि दीपावली के दिन विष्णु की बैकुंठ धाम में वापसी हुई थी।
कृष्ण भक्तों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के पश्चात धन्वंतरि प्रकट हुए। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं। जो लोग इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, उन पर देवी की विशेष कृपा होती है। लोग लक्ष्मी के साथ-साथ संकट विमोचक गणेश, विद्या की देवी सरस्वती और धन के देवता कुबेर की भी पूजा-अर्चना करते हैं।
अन्य हिन्दू त्यौहारों की भांति दीपावली भी देश के अन्य राज्यों में विभिन्न रूपों में मनाई जाती है। बंगाल और ओडिशा में दीपावली काली पूजा के रूप में मनाई जाती है। इस दिन यहां के हिन्दू देवी लक्ष्मी के स्थान पर काली की पूजा-अर्चना करते हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा पर्व माना जाता है। गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पर श्रीकृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।
ईश्वर का चेतन रूप दीपमाला में प्रज्वलित होकर हम सबके हृदय में विराजमान होता है। त्योहार हमारे इतिहास, अर्थशास्त्र, धर्म, संस्कृति और परंपरा का प्रतिबिम्ब हैं। ये सब हमारे जीवन का हिस्सा हैं। दीपावली की हमारी परंपरा में खास भूमिका है और उसके पीछे गहरा दर्शन भी है। स्वस्तिक बनाया जाना, शुभ-लाभ लिखा जाना, दीपक प्रत्येक घर-खेत में जलाया जाना, पुराने सिक्के और कलश... ये सब पूजा के लिए अहम् हैं। यह सब प्रकृति पूजा एवं उस स्रोत के प्रति आभार व्यक्त करना है जिससे हमारा चेतन जुड़ा हुआ है।
जिस प्रकार एक जलता हुआ दीया अनेक बुझे हुए दीयों को प्रज्वलित कर सकता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किसी भी मनुष्य की आत्मा दूसरी आत्माओं को भी आध्यात्मिक प्रकाश से प्रज्वलित कर एक सभ्य एवं समृद्ध समाज का निर्माण कर सकती है। दीपक और मनुष्य के बीच बहुत साम्य है। दोनों मिट्टी के बने होते हैं। दोनों चेतना से प्रज्वलित होते हैं। दीपक जलता है तो आलोक बिखेरता है, चारों ओर उजाला फैलाता है। मनुष्य प्रदीप्त होता है तो समाज और राष्ट्र में उजाला फैलाता है। दीपक उजाला करके अंधेरेरूपी नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है तथा मनुष्य अपने उज्ज्वल कार्यों से समाज और राष्ट्र के अंतस में फैले अज्ञान को दूर करता है। दीपावली आध्यात्मिक अंधकार को आंतरिक प्रकाश से नष्ट करने का त्योहार है। ईश्वर ने हमें जन्म दिया है ताकि हम अपने आपको संस्कारित कर सकें, स्वयं एवं समाज को कुरीतियों एवं अपसंस्कारों से मुक्त कर सकें। मनुष्य जीवन की सार्थकता अपने संस्कारों को व्यक्तित्व के विकास में लगाकर समाज एवं राष्ट्र की सेवा करना है। मनुष्य जीवन संघर्ष से कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढऩे के लिए है।
-ओम