18-Oct-2018 07:54 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया। यानी अब कोई शादीशुदा महिला अगर किसी गैर-मर्द से संबंध बनाती है, तो महिला का पति उस गैर-मर्द के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं करा सकता। हां, इस आधार पर पति तलाक जरूर ले सकता है।
अडल्टरी कानून को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए खारिज किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अडल्टरी कानून महिला को पति का गुलाम और संपत्ति की तरह बनाता है। कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने एक मत से फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह धारा मनमाना है और समानता के अधिकार का हनन करती है। मौजूदा कानून महिलाओं को पसंद करने के अधिकार से वंचित करता है, लेकिन शादी से बाहर संबंध को तलाक का आधार माना गया है। इस कारण अगर पार्टनर खुदकुशी कर लेता है, तो सबूतों के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दूसरे पार्टनर पर दर्ज हो सकता है।
आईपीसी की धारा-497 में अडल्टरी कानून के बारे में व्याख्या की गई थी। एडवोकेट अमन सरीन बताते हैं कि आईपीसी की धारा-497 के तहत प्रावधान था कि अगर कोई शख्स किसी शादीशुदा महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है, तो ऐसे मामले में उक्त शख्स के खिलाफ अडल्टरी मामले की शिकायत की जा सकती है। ऐसे मामले में अगर महिला की सहमति न हो तो फिर मामला सीधे रेप का हो जाता है लेकिन कानूनी पेच वहां है जहां महिला की सहमति हो। यानी शादीशुदा महिला की सहमति से अगर कोई गैर-मर्द उससे शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला का पति ऐसे मामले में शिकायती हो सकता है। पति के अलावा कोई शिकायती नहीं हो सकता। पति की शिकायत पर महिला के साथ संबंध बनाने वाले के खिलाफ आईपीसी की धारा-497 के तहत केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है। गौर करने वाली बात यह है कि अडल्टरी मामले में शिकायती सिर्फ पति हो सकता था, पत्नी नहीं। कानूनी जानकार व क्रिमिनल लॉयर अजय दिग्पाल के मुताबिक, आईपीसी की धारा-497 के तहत सीधे थाने में आरोपी के खिलाफ केस दर्ज नहीं कराया जा सकता था, बल्कि ऐसे मामले में इलाका मैजिस्ट्रेट के सामने कंप्लेंट केस दायर किया जाता था और आरोपी के खिलाफ संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज करने की अर्जी दाखिल की जाती थी। इस मामले में अगर आरोपी दोषी पाया जाता था तो उसे पांच साल कैद की सजा हो सकती थी। चूंकि यह मामला नॉन-कॉग्नेजेबल था इसलिए इस मामले में सीधे थाने में शिकायत नहीं होती थी, बल्कि कोर्ट में कंप्लेंट केस दायर करना होता था। यह मामला जमानती था और अगर शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो जाए तो समझौते के आधार पर केस वापस लेने की गुहार लगाई जा सकती थी।
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार के मामले में कई कानून बनाए गए। इसके तहत 2013 में एंटी-रेप लॉ भी बनाया गया है। महिलाओं को प्रोटेक्ट करने के लिए दूसरे कानूनी प्रावधान भी हैं। लेकिन अडल्टरी मामले में महिला को शिकायत का अधिकार नहीं था यानी अडल्टरी के मामले में सिर्फ पति शिकायती हो सकता था। एडवोकेट करण सिंह बताते हैं कि अगर किसी महिला का पति किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाए और इस दूसरी महिला की सहमति हो, तो फिर ऐसे मामले में महिला अपने पति या फिर उक्त दूसरी महिला के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं करा सकती।
कैद के दायरे से बाहर हुई बेवफाई
दूसरी स्थिति में बदलाव हुआ है। अगर कोई शादीशुदा महिला किसी गैर-मर्द से संबंध बनाती है और इसके लिए उसकी मर्जी है तो महिला का पति अब उस गैर-मर्द के खिलाफ अडल्टरी का केस दर्ज नहीं करा सकता। अब पति चाहे तो अपनी पत्नी के खिलाफ अडल्टरी आधार पर तलाक ले सकता है। यानी कि पति और पत्नी दोनों के लिए बेवफाई तलाक का आधार भर रह गया है, यह आपराधिक मामला नहीं रहा। अगर शादी में रहते हुए पति या पत्नी दोनों ने किसी और से संबंध बनाए, तो अडल्टरी का केस तो नहीं बनेगा लेकिन इस संबंध को लेकर लाइफ पार्टनर को अगर ऐतराज हुआ तो फिर मामला कोर्ट तक पहुंच सकता है। बेवफाई के आधार पर पति या पत्नी अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए तलाक की अर्जी दाखिल कर सकते हैं। यह मामला अब आपराधिक नहीं बल्कि दीवानी मामला बनकर रह गया है। पहले भी अडल्टरी के आधार पर पति या पत्नी दोनों की तरफ से एक-दूसरे के खिलाफ तलाक की अर्जी दाखिल होती रही है, लेकिन तब दीवानी के साथ-साथ फौजदारी मुकदमा भी दर्ज किए जाने का प्रावधान था, लेकिन अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि यह मामला निजी पारिवारिक मामला है तो ऐसे में पति या पत्नी अब अडल्टरी को आधार बनाकर तलाक ले सकते हैं।
-ज्योत्सना अनूप यादव