17-Sep-2018 08:43 AM
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दुनिया में प्रेम को नए ठिकाने मिल चुके हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम और ऑनलाइन डेटिंग की वेबसाइटों के जरिए पूरी दुनिया के साथ हमारे देश के युवा भी बड़ी संख्या में इंटरनेट पर प्रेम की तलाश करते और प्यार के इजहार के लिए इसे अपना माध्यम बनाते हैं। सिर्फ प्रेम नहीं, बेवफाई का भी एक मंच इस आभासी दुनिया में है और कई सर्वेक्षण साबित कर चुके हैं कि हमारा समाज जीवनसाथी से बेवफाई के मामले में पश्चिमी समाजों से होड़ लेने लगा है। हालांकि सर्वेक्षण यह भी साबित कर रहे हैं कि रिश्तों में बेईमानी के मानकों पर मर्द अपनी संगिनी यानी महिलाओं से काफी आगे हैं।
वैसे रिश्तों में टूटन की वजह हमारी जिंदगी में भागदौड़ का बढऩा हो सकता है। यह भी संभव है कि टीवी, मोबाइल, इंटरनेट की दुनिया ने हमें स्वाभाविक रिश्तों से विमुख करते हुए आभासी रिश्तों की तरफ मोड़ दिया है। ऐसे में वास्तविक रिश्तों का बासीपन लोगों को जल्दी ही परेशान करने लगता है। यह आंकलन महिलाओं और पुरुषों- दोनों पर समान रूप से लागू होता है, लेकिन हमारे समाज का विद्रूप यह है कि वह इसे सिर्फ महिलाओं के संदर्भ से जोड़ता है और जब भी मौका मिलता है, स्त्री को बेवफा बताने और इसका खुल्लम-खुल्ला उद्घोष करने से नहीं चूकता। अब तो बेवफाई के मामले में यह मांग भी उठने लगी है कि इसमें सजा का मामला एक तरफा क्यों रहे। यानी अगर मर्द विवाहेत्तर संबंध बनाता है तो समाज के साथ कानून भी उसे कठघरे में खड़ा करता है, लेकिन ऐसा करने पर स्त्री क्यों बचे। इधर ऐसा एक विचार सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के सामने है कि व्यभिचार, विवाहेत्तर संबंध या मोटे तौर पर बेवफाई के मामलों में औरत को बख्शा न जाए, बल्कि उसे मर्द के बराबर दोषी ठहराने की व्यवस्था बने। अभी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अंतर्गत बेवफाई साबित होने पर केवल पुरुषों को दंडित किया जाता है, महिलाएं ऐसे मामले में आरोपी तक नहीं बनाई जातीं।
इसमें संदेह नहीं कि हमारे देश के पारंपरिक समाजों में परिवार को अहम स्थान दिया गया है। विवाह के बाद सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वजहों के चलते बहुत-सी शादियां टूटते-टूटते रह जाती हैं। इसके अलावा थोड़ा-बहुत डर कानून का भी है, जिनकी वजह से परिवार टिके हुए हैं। लेकिन इनमें भी जब कभी चोरी-छिपे, तो कभी खुलेआम बेवफाई के किस्से सामने आते हैं और ऐसे मामलों में मर्दों को दोषी पाए जाने पर सजा भी दी जाती है। लेकिन परिवार नामक संस्था को इतनी ज्यादा अहमियत देने के बाद भी बेवफाई की अपनी एक चाल है, जो कई परिवारों को भीतर ही भीतर घुन की तरह खाए जाती है। फिर भी समाज और कानून के डर से वह खोखला परिवार बाहर से सुखी-संतुष्ट दिखने का स्वांग रचता रहता है।
यह बेवफाई सीधे तौर पर बलात्कार या वैवाहिक धोखाधड़ी के दायरे में नहीं आती, इसलिए कुछ समाजों में इसे प्रत्यक्षत: अपराध नहीं माना जाता। मामला खुल जाए तो कह-सुन कर या परिवार के भीतर बड़े-बुजुर्गों के साथ मिल-बैठ कर बीच का कोई रास्ता निकालने की कोशिश भी की जाती है। इसके बाद भी अगर बात नहीं बनती, तो मामला कोर्ट-कचहरी में पहुंचता है और ज्यादातर ऐसे मामलों में कानून की राय यह रही है कि मर्द ही इसका दोषी होता है। अब मांग उठ रही है कि अगर बेवफाई एकतरफा नहीं है, तो कानूनन सजा का सिर्फ एक छोर क्यों रहे। दूसरे छोर की बेवफाई के लिए स्त्री भी दंड की भागी बने। महिलाओं को बेवफाई के लिए दंडित करने की व्यवस्था बनाने की मांग के साथ जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश किया गया है, उसमें गुजारिश की गई है कि व्यभिचार को पहले की तरह दंडनीय बनाए रखा जाए।
पश्चिमी समाजों से हम कम नहीं
कई सर्वेक्षण साबित कर चुके हैं कि हमारा समाज जीवनसाथी से बेवफाई के मामले में पश्चिमी समाजों से अब कोई ज्यादा पीछे नहीं है और रिश्तों में ऐसी बेईमानी के मानकों पर मर्द महिलाओं से काफी आगे हैं। रिश्तों में टूटन की वजह कुछ भी हो, पर इतना तय है कि स्त्री-पुरुष संबंधों में अब असंतोष की मात्रा कुछ ज्यादा बढ़ गई है। इस पर इंटरनेट और स्मार्टफोन जैसे आधुनिक तकनीकी इंतजामों ने दूसरी शादियों से तुलना के ऐसे-ऐसे जरिए उपलब्ध कराए हैं कि लोग अपने जीवनसाथी की मामूली खामियों को कुछ ज्यादा ही नोटिस करने और किसी नए साथी की तलाश करने लगते हैं।
-ज्योत्सना अनूप यादव