17-Sep-2018 07:55 AM
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स्टैंड अप इंडिया शुरू हुए दो वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है, यह योजना महाराष्ट्र में नाकाम साबित हुई है। महाराष्ट्र की स्टेट लेवल बैंकर कमेटी (एसएलबीसी) की ताजा रिपोर्ट में पाया गया है कि 5 अप्रैल 2016 को इस योजना के शुरू होने के बाद से लक्ष्य का केवल 14 प्रतिशत तक ही हासिल हो पाया है। योजना का लक्ष्य था 20 अप्रैल 2018 तक 22890 लोगों को ऋण बांटना, लेकिन केवल 3203 लाभार्थियों को लोन बांटा जा सका। कुल वितरित राशि 54,215 लाख रुपये या 16.92 लाख प्रति व्यक्ति है।
महाराष्ट्र में अनुसूची जनजाति की आबादी 14 प्रतिशत से अधिक है। मध्य प्रदेश और उड़ीसा के बाद इस मामले में महाराष्ट्र का तीसरा स्थान है। महाराष्ट्र में अनुसूचित जनजातियों में से 60 प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं- जो राष्ट्रीय औसत 45 प्रतिशत से काफी ज्यादा है। आदिवासी बहुल गढ़चिरौली जिले का लक्ष्य था कि स्टैंड अप इंडिया योजना के तहत 130 लाभार्थियों को लोन मुहैया कराया जाए। लेकिन यहां केवल 8 लोगों को लोन मिल पाया है। दूसरे आदिवासी जिलों नंदुरबार, नासिक और पालघर में यह लक्ष्य क्रमश: 154, 478 और 776 था। लेकिन यहां क्रमश: 4,9 और 70 लाभार्थियों को ही लोन मिल सका।
महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में दलित भी हैं। राज्य की 12 प्रतिशत आबादी दलित है। अकोला, लातूर, वाशिम और नांदेड़ जैसे अनुसूचित जाति की आबादी के उच्चतम अनुपात वाले जिलों में क्रमश: 298, 344, 152 और 390 के लक्ष्य थे। लेकिन यहां क्रमश: 32, 37, 9, और 27 लाभार्थियों को ऋण वितरित किए गए। योजना की शुरूआत के समय मोदी ने कहा था कि इससे दलितों और आदिवासियों की जिंदगी बदल जाएगी। उनके शब्दों में, इस योजना का लक्ष्य है, रोजगार की तलाश करने वालों को रोजगार देने वाला बनाया जाए। इस योजना का मकसद था बढ़ती बेरोजगारी के दबाव को कम करना।
अनुसूचित जनजाति और दलित जनसंख्या बहुल जिलों में बहुत खराब प्रदर्शन रहा। सबसे अच्छा प्रदर्शन उन दो इलाकों का रहा जो सबसे अधिक विकसित हैं: मुंबई शहर और पुणे। यहां क्रमश: 764 और 499 लाभार्थियों को लोन देकर लक्ष्य पूरा कर लिया गया। एसएलबीसी ने अपनी सूची में उन बैंकों का उल्लेख किया है जिन्होंने स्टैंड अप इंडिया के तहत ऋण वितरित किया, ये सभी राष्ट्रीयकृत बैंक हैं। लातूर जिले के जिला सहकारी बैंक के एमडी जाधव का कहना था, महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में इस योजना के खराब प्रदर्शन की वजह यह है कि जिला सहकारी बैंकों और ग्रामीण बैंकों को नाबार्ड की ओर से इस योजना को लागू
करने के निर्देश नहीं मिले हैं, जबकि पारंपरिक रूप से लोग इन्हीं बैंकों में अपने खाते खुलवाते आ रहे हैं।
उस्मानाबाद जिला सहकारी बैंक के डिप्टी जनरल मैनेजर, वी.बी. चांडक का कहना है, इन बैंकों के पास लोन बांटने लायक पूंजी ही नहीं है। दो चीनी मिलों पर हमारे 450 करोड़ रुपए उधार हैं। जब तक हम उसे वसूल नहीं लेते तब तक हम कुछ खास कर नहीं पाएंगे। हमारे एनपीए (गैर निष्पादित संपत्ति) पिछले साल के 35 प्रतिशत बढ़कर 54 प्रतिशत तक हो गए हैं।
महाराष्ट्र में लगभग सभी जिला सहकारी बैंक संघर्ष कर रहे हैं।
यह तो होना ही था
अखिल भारतीय कर्मचारी बैंक एसोसिएशन के संयुक्त सचिव देवदास तुलजापुरकर स्टैंड अप इंडिया योजना की विफलता से जरा भी हैरान नहीं हैं। वह कहते हैं, आप देखेंगे तो पाएंगे कि सरकार की हर योजना के कार्यान्वयन के केंद्र में बैंक हैं। चाहे वह विमुद्रीकरण हो, जीएसटी, स्टैंड अप इंडिया, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना या कोई और। ये सभी प्रभावी निष्पादन के लिए ठोस बैंकिंग आधारभूत संरचना पर निर्भर हैं। लेकिन साथ ही, बैंकों का विस्तार नहीं हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में बहुत कम बैंक हैं और दूर-दूर स्थित हैं। जो काम कर रहे हैं उनमें स्टाफ और बुनियादी ढांचे की कमी है। एक तरफ सरकार बैंकों पर काम का बोझ लादती जा रही है वहीं दूसरी तरफ उनके बुनियादी ढांचे के विकास की उपेक्षा कर रही है। 2010 में, तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने वित्तीय समावेशन की अपनी योजना का जिक्र किया था। इसमें उन्होंने 2000 और उससे अधिक की आबादी वाले प्रत्येक गांव में बैंक शाखा खोलने का अपना इरादा जताया था।
-ऋतेन्द्र माथुर