नया समीकरण
04-Sep-2018 08:46 AM 1234836
पिछले चुनाव में बसपा ने महाराष्ट्र में कोई विधानसभा या लोकसभा सीट नहीं जीती थी। लेकिन दोनों चुनावों में उसका वोट करीब ढाई फीसदी रहा है। महाराष्ट्र के 2014 विधानसभा चुनाव में बसपा ने 280 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से एक भी सीट बसपा को नहीं मिली थी। लेकिन 10 सीटें ऐसी थीं, जहां पार्टी उम्मीदवार अपनी जमानत बचाने में कामयाब रहे थे। इन सीटों पर 12 हजार से 30 हजार तक वोट बसपा को मिले थे। जबकि पूरे महाराष्ट्र में बसपा को 11 लाख 91 हजार 846 वोट मिले थे। महाराष्ट्र के दलित मतदाता करीब 12 फीसदी हैं। विदर्भ की राजनीति में दलित बड़ा फैक्टर हैं। विदर्भ में लोकसभा की 11 सीटें हैं। बसपा का आधार महाराष्ट्र के इसी इलाके में है। 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने इन सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में एनसीपी की कोशिश कांग्रेस के साथ-साथ बसपा को भी जोडऩे की है। पिछले लोकसभा चुनाव में तीन सीटें ऐसी हैं जहां बसपा को एक लाख के आसपास वोट मिले थे। तीनों मिलकर साथ उतरते हैं तो बीजेपी के जीत के समीकरण बिगड़ सकते हैं। महाराष्ट्र में दलित उभार के माहौल को कैश कराने के लिए एनसीपी बसपा को साथ मिलाकर अपने समीकरण सेट करना चाहती है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी को महाराष्ट्र की कुल 48 में से 23 सीटें और करीब 27 फीसदी वोट मिले थे। इस तरह से विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 122 सीटें और 27.81 फीसदी वोट मिले थे। जबकि शिवसेना को 18 लोकसभा सीटें और करीब 21 फीसदी वोट हासिल हुए थे। विधानसभा चुनाव में शिवसेना को 63 सीटें और 19.85 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी-शिवसेना के बीच दोस्ती टूट रही है। दोनों दल अलग-अलग चुनाव लडऩे का ऐलान कर चुके हैं। ऐसे में एनसीपी और कांग्रेस को वापसी की उम्मीद नजर आ रही है। इसी के मद्देनजर शरद पवार ने बसपा को साथ लेकर चुनाव लडऩे के संकेत दिए हैं। विपक्षी गठबंधन सीट शेयरिंग का सही फॉर्मूला लाए तो सत्ताधारी बीजेपी और शिवसेना की सीटों में खासी सेंधमारी हो सकती है। हाल ही में शरद पवार ने मायावती के साथ मुलाकात की थी। हालांकि उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के संदर्भ में उनकी मायावती से बात नहीं हुई है, लेकिन अगर बसपा साथ आती है तो खुशी होगी। विदर्भ में इसका राजनीतिक फायदा भी मिलेगा। ये बात अलग है कि बसपा इस मामले में अभी चुप्पी साधे हुए है। दरअसल, महाराष्ट्र में आरपीआई दलों के कमजोर होने के कारण बीएसपी का वोट बैंक बढ़ा है। पार्टी को भले ही लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में एक भी सीटें नहीं मिली हों, लेकिन पार्टी को स्थानीय निकायों में अच्छी सफलता मिल रही है। विदर्भ में पार्टी का जनाधार बढ़ा है। ऐसे में एनसीपी लोकसभा चुनाव में मजूबती के लिए उसका साथ चाहती है। विदर्भ में एनसीपी कमजोर है। पार्टी को लगता है कि बीएसपी का दामन थामकर वह विदर्भ में अपने पैर मजबूत कर सकती है। विदर्भ भाजपा की सीट है। यहां पर कांग्रेस और एनसीपी दोनों कमजोर हैं। पहले यहां पर कांग्रेस बेहतर स्थिति में थी, मगर पिछले चुनाव में उसे करारी हार देखने को मिली थी। ऐसे में कांग्रेस भी रणनीति बना रही है कि बीजेपी को विदर्भ से हटाने के लिए उसे बीएसपी का साथ मिलना चाहिए, ताकि पिछड़ी जातियों के वोट बैंक को अपनी तरफ खींच सके। विदर्भ में लोकसभा की 11 सीटें हैं, जिसे भी बीएसपी का साथ मिलेगा उसे राजनीतिक फायदा मिलेगा। इसी आंकड़े को देखते हुए महाराष्ट्र में नए गठबंधन की तैयारी की जा रही है। अब यह नया गठबंधन कब आकार लेता है देखना होगा। एनसीपी की सियासत के लिए संजीवनी है मराठा आरक्षण महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी की जड़ें मजबूत क्या हुईं, कांग्रेस और एनसीपी के पैरों तले से आधार ही खिसक गया। अगले साल 2019 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में उठी मराठा आरक्षण की मांग से बीजेपी बैकफुट पर है। जबकि शरद पवार और उनकी पार्टी एनसीपी मराठा आरक्षण के जरिए अपनी खोई हुई जमीन को दोबारा से वापस पाने के लिए इस मुद्दे पर फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं। महाराष्ट्र की सियासत में मराठा समुदाय किंगमेकर माना जाता है। राज्य में मराठों की आबादी 28 से 33 फीसदी है। राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक माना जाता है। दरअसल शरद पवार की राजनीति पूरी तरह से मराठों पर टिकी है। यही वजह है कि उनका आधार मराठावाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र के जिलों में है। 2014 में मोदी लहर में शरद पवार का किला पूरी तरह से धराशायी हो गया था। मराठा क्षत्रप होने के बावजूद उन्हें महज 6 सीटें मिली थीं, लेकिन उपचुनाव में एक सीट और जीतकर 7 सांसद हो गए हैं। इसके अलावा विधानसभा चुनाव में राज्य की 288 सीटों में से एनसीपी को 41 सीटें मिली थी। -ऋतेन्द्र माथुर
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