ढाई आखर सत्ता के...
02-Aug-2018 08:18 AM 1235036
उन्होंने कबीरदास जी से ही जीवन में प्रेरणा पाई और वे ही उनके आदर्श रहे हैं। आज भी वे उनके भक्त बने हुए हैं। हालांकि स्वयं के जीवन में उनकी बातों को कभी नहीं उतारा क्योंकि वे स्वयं की ओर कभी देखते भी नहीं हैं यानी स्वयं के मन में झांकने का उन्होंने प्रयास ही नहीं किया। उनका मानना है कि उनमें स्वयं में जब कोई बुराई है ही नहीं तो स्वयं में क्या झांकना। वे आस-पड़ोस में झांकना अपना कर्तव्य मानते हैं। उन्हें प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ खामियां दिखाई देती है। उनकी पढऩे-लिखने में कभी रूचि नहीं रही। जब पिताजी की उनको मार पड़ती थी तो वे उन्हें कबीरदास जी का दोहा सुना देते थे- पोथी पढि़-पढि़ जग मुआ, पण्डित भया न कोय ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पण्डित होय। तब उनके पिताजी और खीज उठते और डपटते हुए कहते- नालायक प्रेम का पाठ पढ़ लेने से पेट नहीं भर पाएगा। कुछ पढ़-लिख लोगे तो वही तुम्हारे काम आएगा। प्रेम तो उन्होंने बहुत किया, काम वाली बाई से भी प्रेम करने की कोशिश की लेकिन नतीजा यहां बताना ठीक नहीं होगा क्योंकि उनकी इज्जत भी तो रखना पड़ेगी। खैर, वे पिताजी की बात का भी अनादर नहीं कर सकते थे और कबीरदास जी को तो छोड़ ही नहीं सकते थे। समाज में उन्हीं से पहचान जो मिल रही थी। इसीलिए बीच का मार्ग निकालना ही उन्हें उचित लगा। उनको कभी ढाई गज, ढाई कोस, ढाई घर या ढाई दिन के झोपड़े से मतलब नहीं रहा। उन्होंने केवल ढाई आखर ही पढ़े लेकिन ये ढाई आखर प्रेम के नहीं थे। वैसे भी संत कबीर ने कहा ही था कि पोथी पढ़-पढ़ कर कोई पण्डित नहीं हो सका है। केवल ढाई आखर यानी ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ लिये तो पण्डित हो जाएंगे। उनका मानना था कि ढाई आखर पढऩे वाला ही पण्डित हो सकता है। शब्द तो कुछ भी हो सकता है। प्रेम की जगह उन्होंने सत्ता को चुना और सत्ता का ही पाठ पढ़ा। उन्हें मालूम है कि पोथी पढ़-पढ़कर डॉक्टर, इन्जीनियर, प्रशासनिक अधिकारी तो बन सकते हैं लेकिन सत्ता के केन्द्र नहीं हो सकते। वे मानते हैं कि कबीरदास जी का आशय भी यही था कि सिर्फ पढ़-लिख जाने से ही आदमी बुद्धिमान नहीं हो जाता। उसे वास्तविक ज्ञान अर्जित करना चाहिए, तभी वह बुद्धिमान कहलायेगा। उन्होंने भी भौतिक जगत का वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर लिया था और इसीलिए वे स्वयं को संत कबीर का सच्चा अनुयायी बताते हैं। बात-बात पर कबीर के दोहे सुनाकर ही व्यक्ति को सुधरने या सुधारने की बात करते हैं। हां, वे अंगूठा छाप की अगली स्टेज तक अग्रसर होकर आए थे और सत्ता का पाठ पढ़ चुके थे। कोई यह नहीं कह सकता था कि उन्हें अक्षर ज्ञान नहीं है। वे हर स्तर की शिक्षा का विभाग संभालने का माद्दा रखते हैं और फिर शिक्षा क्या! कोई भी विभाग! उन्हें मालूम है कि विभाग तो अपनी चाल खुद चल सकता है। इस कुर्सी पर कल्लु जमादार को भी बैठा दो तो विभाग चल निकलेगा। यानी अक्ल का ताल्लुक आदमी के दिमाग से नहीं, कुर्सी के पाये से होता है। और फिर विभाग चलाने में कौन सा दिमाग लगाने और उसे लड़ाने की बात है! यह तो मातहत लोगों की ड्यूटी में आता है। इसीलिए वे खुश हैं कि उन्होंने ढाई आखर का मतलब समझ लिया और ज्ञान अर्जित कर लिया। समय रहते प्रेम को छोड़ सत्ता को पकड़ लिया। -डॉ. प्रदीप उपाध्याय
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^