02-Aug-2018 07:59 AM
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हम इस देश में लड़कियों को भले ही देवी मानते हैं, लेकिन यही देवी जिसके घर जन्म लेती है वह उसी दिन से उसकी शादी की चिंता में डूब जाता है। इसकी वजह है इस देश में दहेज प्रथा। अब यह प्रथा इतनी विकराल हो गई है कि सुप्रीम कोर्ट को भी चिंता होने लगी है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने शादी में होने वाले बेवजह के खर्च में कटौती करके उसका एक हिस्सा वधू के बैंक खाते में भी जमा करने की सलाह दी है। इसके लिए कोर्ट ने सरकार को आवश्यक निर्देश भी दिए हैं।
दरअसल हमारे देश में शादियों में बेइंतेहा खर्च किए जाते हैं। इस खर्च से बेटी के परिजन कर्ज के बोझ से दब जाते हैं। उसके बाद भी लड़की दहेज के लिए प्रताडि़त की जाती है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो ऐसी व्यवस्था तैयार करे, जिससे ये पता चल सके कि कोई व्यक्ति शादी में कितना खर्च कर रहा है। इसका मकसद है- दहेज लेन-देन को रोकना और साथ ही दहेज कानून के तहत दर्ज होने वाली झूठी शिकायतों पर भी नजर रखना।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि- शादी में हुए खर्चों का हिसाब-किताब बताना अनिवार्य करने पर विचार करिए। वर-वधू दोनों पक्षों को शादी पर हुए खर्चों की जानकारी मैरिज ऑफिसर को बताना अनिवार्य होना चाहिए। केंद्र सरकार इस बारे में जल्द नियम बनाए। एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि- अगर शादी में दोनों पक्षों की ओर से हुए खर्च का ब्योरा मौजूद रहता है तो दहेज प्रताडऩा के तहत दायर किए गए मुकदमों में पैसे से जुड़े विवाद हल करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा शादी में होने वाले बेवजह के खर्च में कटौती करके उसका एक हिस्सा वधू के बैंक खाते में भी जमा किया जा सकता है। भविष्य में जरूरत पडऩे पर वो इसका इस्तेमाल कर सकती है।
इस पूरी प्रक्रिया को अमल में कैसे लाया जाए, इस पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से राय मांगी है। कोर्ट ने कहा कि सरकार अपने लॉ ऑफिसर के जरिए इस मामले पर अपने विचार अदालत के सामने रखे। अदालत ने एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पीएस नरसिंहा से भी कहा है कि वो कोर्ट को इस मामले में मदद करें।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट एक पारिवारिक विवाद पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें महिला ने ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीडऩ का मुकदमा दायर कराया है। ससुराल वाले महिला के आरोपों को नकार रहे हैं। इसी मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये नया नियम बनाने की बात सरकार से कही है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने दहेज प्रताडऩा के मामले में बड़ी तादाद में की जाने वाली गिरफ्तारियों पर भी चिंता जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि ऐसे मामले में गिरफ्तारी के वक्त पुलिस के लिए निजी
आजादी और सामाजिक व्यवस्था के बीच बैलेंस रखना जरूरी है। कोर्ट ने कहा था कि दहेज प्रताडऩा से जुड़ा मामला गैर-जमानती है इसलिए कई लोग इसे हथियार भी बना लेते हैं। दरअसल दहेज प्रताडऩा के ज्यादातर मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं और सजा दर सिर्फ 15 प्रतिशत है।
सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि इससे दहेज जैसी समस्या से काफी हद तक निजात मिल सकती है। कोर्ट ने इस मामले पर मदद करने के लिए एएसजी पीएस नरसिम्हा से आग्रह किया। एक फैमिली मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी में दोनों पक्षों की ओर से शादी के खर्चों के ब्योरे का खुलासा किया जाए। दोनों पक्ष मैरिज ऑफिसर के यहां खर्चे का ब्यौरा दे सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि इससे दहेज संबंधी झूठे मामले भी दर्ज नहीं होंगे। कोर्ट ने कहा कि शादी में होने वाले खर्चों का कुछ हिस्सा लड़की के खाते में जमा किया जाए। जिस मामले पर कोर्ट सुनवाई कर रही थी, उसमें महिला दहेज लेने का आरोप लगा रही है, जबकि पुरुष इससे इनकार कर रहा है।
11 हजार से अधिक खर्च न करने का महत्वपूर्ण फैसला
इधर ग्वालियर चंबल संभाग में दहेज प्रथा को खत्म करने के लिए शादी में 11000 रुपए से अधिक खर्च न करने का महत्वपूर्ण फैसला लिया गया है। संत हरिगिरि महाराज के सानिध्य में मुरैना में हुई महापंचायत ने तय किया है कि 5000 रुपए की थाली के अलावा अन्य रस्म-रिवाजों पर 11-11 सौ रुपए से अधिक खर्च नहीं किए जा सकेंगे। बारात में 100 आदमी से अधिक नहीं आएंगे। इस महाफैसले का उल्लंघन करने वालों का समाज से बहिष्कार किया जाएगा। महापंचायत में मुरैना जिले के अलावा राजस्थान व यूपी के अनेक लोग मौजूद रहे। हालांकि दहेज में 11 हजार की बाध्यता पर सबसे पहले संकल्प गुर्जर समाज के लोगों ने लिया। मालूम हो कि चंबल में खर्चीली शादियां झूठी शान का प्रतीक बन चुकी हैं। यहां पर सामान्य परिवार का अपनी बेटी की शादी पर 20 से 25 लाख रुपए खर्च करना आम बात है। लेकिन महापंचायत के फैसले से बदलाव आने की उम्मीद जताई जा रही है।
-ज्योत्सना अनूप यादव