19-Jul-2018 09:22 AM
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मध्यप्रदेश के मंदसौर में तीसरी कक्षा में पढऩे वाली आठ साल की बच्ची को जिस दरिंदगी से हवस का शिकार बनाया गया उसने निर्भया कांड की याद ताजा कर दी है। अगर पिछली घटनाओं से सबक लिया होता तो शायद ऐसी वहशी वारदात की पुनरावृत्ति नहीं होती। लेकिन हमारे तंत्र की यही सबसे बड़ी खामी है कि वारदात होने के बाद वह कुंभकरण की नींद से जागता है और आनन-फानन में मेघनाथ की तरह सिंह गर्जना कर जनता को फिर उसके हाल पर छोड़ देता है। जिस प्रदेश ने बारह साल या उससे कम उम्र की बालिका से सामूहिक बलात्कार के दोषी को फांसी देने का कानून सबसे पहले बनाया हो वहां इस तरह की वारदात बेहद अफसोसनाक है। मध्यप्रदेश बालिका पढ़ाओ-बढ़ाओ अभियान का पुरोधा रहा है मगर उसी में बालिकाओं के साथ यौन उत्पीडऩ की घटनाएं आखिर रुक क्यों नहीं पा रही हैं? कहीं कानून को लागू करने या अपराध से निपटने की हमारी रणनीति में कमी या अन्य सामाजिक-राजनीतिक या भौगोलिक कारण तो इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं, इस बिंदु पर भी सोचे जाने की आवश्यकता है।
वैसे महिला उत्पीडऩ के मामले में मध्यप्रदेश का रिकार्ड अच्छा नहीं रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडों के अनुसार 2017 में मध्यप्रदेश बलात्कार के मामले में देश में अव्वल नंबर पर रहा है। देश में दर्ज कुल 38947 बलात्कार के मामलों में सर्वाधिक 4882 मामले मध्यप्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद उत्तर प्रदेश (4816) और महाराष्ट्र (4189) का नंबर आता है। दिल्ली अगर महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर है तो मध्यप्रदेश महिला अत्याचार के मामले में सबसे भयावह प्रदेश बनता जा रहा है। एक तरफ जहां प्रदेश में बीते वर्षों में कुल अपराधों में कमी आई है वहीं महिलाओं और बच्चियों के साथ यौन शोषण के मामलों में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है।
आबादी के लिहाज से देश के पांचवें नंबर के राज्य पर बलात्कार के मामले में अव्वल होने का ठप्पा लगना वहां की जनता और शासन के लिए शर्मिंदगी की बात है। लोगों में कानून का भय समाप्त होता जा रहा है। यह पुलिस की नाकामी को दर्शाता है। केवल दूर दराज के शहर-कस्बों में नहीं बल्कि इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर जैसे बड़े शहरों में भी महिलाएं यौन उत्पीडऩ की शिकार हो रही हैं। बीते मंगलवार को द थॉमस रिसर्च एंड फाउंडेशन की रिपोर्ट में यौन हिंसा के मामले में भारत को सबसे असुरक्षित दस देशों में पहले नंबर पर होने की बात भले ही सरकार ने नकार दी हो लेकिन मंदसौर की घटना तो सर्वे के निष्कर्ष की पुष्टि करती हुई ही प्रतीत होती है।
जो समाज अपनी बहन-बेटी बच्चियों की आबरू की हिफाजत नहीं कर सकता क्या उसे सभ्य कहलाने का हक है! आखिर कब तक हवस के भेडिय़े मासूम बच्चियों की जिंदगी बर्बाद करते रहेंगे और लोग मूक दर्शक बने रहेंगे? सिर्फ कठोर कानून बनाना पर्याप्त नहीं है, उसका क्रियान्वयन भी सुनिश्चित होना चाहिए। न्याय होना ही नहीं, होता हुआ भी दिखना चाहिए। इससे पहले कि जनता का आक्रोश ज्वालामुखी बन फूट कर किसी अप्रिय स्थिति का गवाह बने, शासन-प्रशासन ऐसे ठोस कदम उठाए जिनसे प्रदेश बलात्कार में नंबर वन के कलंक से मुक्त हो और महिलाएं तथा बच्चियां यहां निर्भीक होकर स्वाभाविक जीवन जी सकें।
मध्यप्रदेश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मध्य प्रदेश सरकार और पुलिस सवालों के कठघरे में है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर मध्य प्रदेश के जो आंकड़े सामने आए हैं वे बेहद ही चौकाने वाले हैं। अभी जब मंदसौर में 7 साल की मासूम से ज्यादती का मामला ठंडा भी नहीं हुआ है कि ऐसे में इस तरह के आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश पुलिस महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जरा भी चिंतित नहीं है।
मध्य प्रदेश में पिछले 120 दिन में 1,554 रेप के मामले दर्ज किए गए हैं यानी हर दिन 13 दुष्कर्म के मामले हुए हैं। साल 2018 ही की बात की जाए तो एक जनवरी से 30 अप्रैल तक महज चार माह में महिलाओं और नाबालिगों से 1,554 ज्यादती के मामले दर्ज किए जा चुके हैं। सिर्फ 120 दिनों में दर्ज हुए इन आंकड़ों के विश्लेषण से सामने आया कि हर दिन करीब 13 रेप की घटनाएं प्रदेश में हो रही हैं।
महिला सुरक्षा को लेकर मध्य प्रदेश सरकार व प्रशासन नाकाम
करीबी ही सबसे ज्यादा खतरा : 2016 में प्रदेश भर में ज्यादती के 4 हजार 789 केस दर्ज हुए। इनमें से 1,115 मामले में आरोपी पड़ोसी ही निकले हैं। 35 रेप के मामलों में तो सगे-संबंधी, जबकि 108 के मामले में आरोपी परिचित शामिल रहे हैं। इसमें हैरान करने वाली बात यह है कि नाबालिग से दरिंदगी करने वाले लगभग अपने ही होते हैं। पिछले साल भी देश में सबसे ज्यादा मामले मध्य प्रदेश में : मप्र में वर्ष 2017 में ज्यादती के 5,310 मामले अलग-अलग थानों दर्ज किए गए थे। पांच हजार का आंकड़ा पार करने वाला मध्य प्रदेश देश में पहला राज्य है। हर दिन ज्यादती की लगभग 15 घटनाएं हुईं। साल दर साल इसमें इजाफा हो रहा है। 2016 के मुकाबले 2017 में महिलाओं व नाबालिगों से ज्यादती की घटनाओं में 8.76 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। हालांकि, 2015 के मुकाबले 2016 में ज्यादती के मामले में 11.18 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई थी।
-ज्योत्सना अनूप यादव