03-Jul-2018 08:07 AM
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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओÓ अभियान के तहत कम लिंगानुपात वाले दो सौ चौवालीस जिलों के जिलाधिकारियों के साथ हुई एक बैठक के दौरान यह खुलासा हुआ कि बेहद कम लिंगानुपात वाले इन जिलों में मध्यप्रदेश के पचास, बिहार के अड़तीस, महाराष्ट्र के पैंतीस, राजस्थान के तैंतीस, तमिलनाडु के बत्तीस, ओडि़शा के तीस, कर्नाटक के तीस, गुजरात के छब्बीस, झारखंड के चौबीस, जम्मू-कश्मीर के बाईस, उत्तर प्रदेश के इक्कीस, हरियाणा के इक्कीस और पंजाब के बीस जिले शामिल हैं। इन सभी जिलों में लिंगानुपात दर राष्ट्रीय औसत दर से नौ सौ अठारह से कम या लगभग बराबर है। हरियाणा, पंजाब व राजस्थान को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओÓ अभियान को अच्छी तरीके से लागू कर जीरो से हीरोÓ तक का सफर तय करने के लिए सराहा गया है, वहीं बिहार और जम्मू कश्मीर सरीखे राज्य इसमें फिसड्डी साबित हुए हैं। कुछ राज्यों में हालात बहुत बदतर हैं। बिहार में यह अभियान असफल होने का प्रमुख कारण यह रहा कि कोष कभी जिलों में नहीं पहुंचा और कई मामलों में जिलाधिकारियों का जल्दी-जल्दी तबादला भी हो गया। कहने को हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की स्थिति अभी इतनी नहीं सुधरी है कि उसे लेकर संतोष व्यक्त किया जा सके, लेकिन कुछ जगहों पर बेहतरीन परिणाम सामने आए हैं। जैसे हरियाणा के झज्जर जिले में अप्रैल 2017 में लिंगानुपात की दर महज 882 थी, जो अप्रैल 2018 में 982 पहुंच गई है।
उल्लेखनीय है कि हमारे समाज में बेटे-बेटी में फर्क करने की मानसिकता में बदलाव लाने और लड़कियों की दशा सुधारने के लिए अभियान चलाए जाने के बावजूद लिंगानुपात की स्थिति बेहद चिंताजनक है। स्वस्थ राज्य और प्रगतिशील भारतÓ नामक एक रिपोर्ट से पता चला था कि देश के इक्कीस बड़े राज्यों में से सत्रह में लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक जन्म के समय लिंगानुपात मामले में गुजरात की हालत सबसे खराब है, जहां लिंगानुपात नौ सौ सात से घट कर आठ सौ चौवन रह गया है। कन्याभ्रूण हत्या के लिए पहले से ही बदनाम हरियाणा लिंगानुपात मामले में पैंतीस अंकों की गिरावट के साथ दूसरे स्थान, राजस्थान में बत्तीस, उत्तराखंड में सत्ताईस, महाराष्ट्र में अठारह, हिमाचल प्रदेश में चौदह, छत्तीसगढ़ में बारह और कर्नाटक ग्यारह अंकों की गिरावट दर्ज की गई। हालांकि पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में लिंगानुपात में क्रमश: उन्नीस, दस और नौ अंकों का सुधार हुआ, जो आशाजनक तो है, पर स्थिति ऐसी भी नहीं है जिसे लेकर हम ज्यादा उत्साहित हो सकें। लिंगानुपात में मामूली सुधार के बावजूद इन राज्यों की स्थिति भी इस मामले में कोई बहुत बेहतर नहीं है। नीति आयोग के अनुसार उत्तर प्रदेश में अभी भी प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या मात्र आठ सौ उनयासी है, जबकि बिहार में यह संख्या नौ सौ सोलह है। कन्याभ्रूण हत्या को रोकने के लिए जिस तरह सरकारी योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जाता रहा है, उसके बावजूद लिंगानुपात का बिगड़ता संतुलन गंभीर चुनौती है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओÓ, लाडली बेटी योजनाÓ, सुकन्या समृद्धि योजनाÓ सरीखी योजनाओं के अलावा सेल्फी विद डॉटरÓ अभियान नारी सशक्तीकरण की दिशा में बहुत अच्छा प्रयास है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो इन महत्वाकांक्षी योजनाओं के परिणाम आशाजनक नहीं रहे। ऐसे में सवाल यही है कि लिंगानुपात की स्थिति क्यों नहीं सुधर रही है? आखिर कहां कमी रह गई हमारे प्रयासों में?
-ज्योत्सना अनूप यादव