21-May-2018 09:17 AM
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कुछ लोग बचाओ-बचाओ के शोर के साथ मेरी ओर बढ़े आ रहे थे उत्सुकतावश मैं अपने आगे-पीछे, दाएं-बाएं देखने लगता हूं ..!! लेकिन संकटापन्न की कोई स्थिति दिखाई नहीं देती फिर भी किसी को बचाने के आपद् धर्म के पालन का लोभ संवरण नहीं कर पाता और मैं भी बचाओ-बचाओ के उस शोर के आगे हो लेता हूं ..! अचानक, मेरे कानों में एक कडक़दार आवाज गूंजती है, कोई मुझे रुकने के लिए कहता है और सकपकाया हुआ मैं रुक जाता हूं मेरे रुकते ही दौडक़र कुछ लोग मुझे पकड़ लेते हैं और मुझे पकडऩे वालों में जैसे पकडऩे की होड़ लग जाती हैै! खैर, मैं उन सबके द्वारा पकड़ लिया जाता हूं अब वे चिल्ला रहे थे ये हमने बचा लिया बचा लिया!! इस शोर के बीच मुझे ऐसा प्रतीत हुुआ जैसे मुुझे बचाने की छीना-झपटी मची हो। मैं माजरा समझने की कोशिश करने लगता हूं।
मुझे पकड़े हुए कोई कह रहा है, मैंने बचाया तो दूसरे की आवाज सुनाई पड़ी नहीं, पहले मैंने बचाया.. तो कोई कह रहा था.. बचाने वाला तू कौन होता है, बचाया तो मैंने है.. फिर इन्हीं में से कोई बोल रहा था बचाने का सर्वाधिकार हमारे पास सुरक्षित है हम ही किसी को बचा सकते हैं, तू बीच में कौन होता है!! मैं देख रहा हूं इस बीच कुछ लोग तू-तू मैं-मैं पर उतर आते हैं और मुझे छोड़ आपस में ही गुत्थमगुत्था हुए जा रहे थे..! अचानक मैं चिल्लाने लगता हूं, क्या तमाशा है.. किसे बचा रहे हो..? छोड़ो मुझे इसके बाद आवाज आती है, हम तुम्हें ही बचा रहे हैं कैसे छोड़ दें, फिर तो, तुम बच नहीं पाओगे.!! किसी ने कहा देखना, छोडऩा मत इसे, नहीं तो बचने से बचकर भाग जाएगा यह..! बड़ी मुश्किल से किसी को बचाने का अवसर हाथ आया है..! अब इसे बचाकर ही दम लेना होगा!!!
..बचाने वाले के हाथों से स्वयं को छुड़ाने का प्रयास करते हुए बड़ी मुश्किल से मैं बोल पाया मैं तो आलरेडी बचा हुआ हूं भाई! बचे हुए को क्या बचाना.. मुझे बचाने-सचाने की कोई जरूरत नहीं.. लेकिन इन लोगों के बीच मेरी आवाज अनसुनी रह जाती है, जबकि इनके बीच फंसा हुआ मैं नुचा जा रहा था इनके बीच मेरा दम घुटने लगा था जैसे मेरे प्राण निकलने वाले हो, मैं बेबस भगवान से प्रार्थना करने लगा हे भगवान..! मुझे इन बचाने वालों से बचा लो एक अजीब सी सडबेचैनी भरे कशमकश में आखिर मेरी नींद टूट जाती है ..!!
ओह..! डर से मेरी धुकधुकी अभी तक बढ़ी हुई है.. मैंने अपने चारों ओर देखा मैं बिस्तर पर ही था.. लेकिन डर का आलम यह था कि मुझे यह तसल्ली होने में कुछ सेकेंड और लगे कि मैं कोई स्वप्न ही देख रहा था और मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है..!! फिर मैंने अपने नथुने फुलाए... बल्कि नथुने को खींच कर नासिका-छिद्र को चौड़ा किया, अब आराम से सांस लेने लगा था, कुछ गहरी सांसें ली.. असल में एक नासिका-छिद्र से सांस लेने में मुझे थोड़ी प्राब्लम होती है..! अब मैं बिस्तर पर उठ बैठा था।
इस भयावह स्वप्न के पीछे के कारण की मैंने तहकीकात शुरू कर दी, ध्यान आया..! अभी कल ही टीवी चैनलों में कुछ ज्यादा ही न्यूज-फ्यूज देख लिया था लोग-बाग संविधान और लोकतंत्र को बचाने निकल पड़े थे और इसे लेकर चैनलों पर डिबेट में बड़ा चिल्ल-पों मचा था शायद, इन्हीं समाचारों का मुझ पर कोई प्रभाव रहा होगा!!
वैसे तो, अपनी संस्कृति में बचाने का कल्चर बहुत पुराना है, लेकिन संविधान के उद्भव के बाद बचाने के लिए एक आइटम और मिल गया..! संविधान को नेताओं ने आपस में मिलजुल कर बनाया था, इसलिए इसके बचाने का दायित्व नेतागण ही निभाते हैं और इन्हें ही इसकी सबसे ज्यादा चिन्ता रहती है! शायद इन्हें पता है कि आम आदमी किस खेत की मूली है..संविधान बचाना इसके वश की बात नहीं..!! और हां, ये नेता ही हैं, जो यह भी जानते हैं अगर संविधान न रहे तो देश में, न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी टाइप से लोकतंत्र भी नहीं रहेगा..! इसीलिए ये बेचारे अपने नेतृत्व-कला से संविधान में फूंक मार-मार लोकतंत्र की सुरीली तान छेड़ते हैं और इसी में रमे हुए सुखार्जन करते हैं खैर जो भी हो, हमें संविधान और लोकतंत्र बचाने का श्रेय इन नेताओं को देना ही पड़ेगा।
एक बात बता दें अपने देश की आम जनता किसी को बचाने में रुचि भी नहीं रखती..अभी पिछले दिनों एक समाचार पढ़ा दिल्ली के पास एक नाले में कार समेत गिरकर सात लोग डूब कर मर गए उन्हें बचाने के लिए कोई आगे नहीं आया। बल्कि उन्हें डूबते देख उनके गहने और पैसे अलग से लूट लिए गए..काश..! वहां कोई नेता होता, तो तय मानिए दौडक़र अकेले ही वह उन सात अभागों को डूबने से बचा लेता..लेकिन उनके भाग में बचना नहीं लिखा था क्योंकि नेता लोग संविधान बचाने से बचें, तब तो आम-आदमी को बचाएं!! वैसे भी आम-आदमी लुटेरा और संवेदनहीन होती है.. इन्हें बचाने का पाप ये नेता अपने सिर पर लेना भी नहीं चाहेंगे..!!!
लेकिन, यह तो पक्का हो चला है कि सपने में मुझे नेतागण ही बचा रहे होंगे.. अन्यथा बचाने का श्रेय लेने के लिए कोई ऐसे ही आपस में गुत्थमगुत्था नहीं होता..! इस स्वप्न से जागने पर, मुझे एक महत्वपूर्ण सीख मिली वह कि किसी बचे हुए को ही बचाना चाहिए और बचाते-बचाते उस बचने वाले को बेदम कर देना चाहिए..जिससे इस बात के प्रमाणीकरण में आसानी हो कि इसे बचाया गया है..! अन्यथा वह आलरेडी अपने बचे होने के संबंध में कोई राजनीतिक वक्तव्य जारी कर सकता है और तब, बचाव-क्रिया को मात्र एक राजनीतिक स्टंट माना जा सकता है..! और हां..आम आदमी को बचाने का कोई लाभ नहीं है इसीलिए संविधान को ही बचाना चाहिए.. अगर इस देश का संविधान बचा रहेगा तो सब बचे रहेंगे!
- विनय कुमार तिवारी