27-Apr-2018 06:33 AM
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पहले राजा लोग आलरेडी ईश्वर के अंश होते थे, इसलिए इनका किया-धरा आटोमेटिक राजधर्म हो जाता था..! कारिंदों के साथ हाथी-घोड़े पर सवार राजा रिरियाती रियाया के बीच राजधर्म का प्रतीक था..! लेकिन आजकल की लोकतांत्रिक व्यवस्था में गुड-गवर्नेंस का कोई क्लियर कांसेप्ट ही नहीं है। इसीलिए गुड-गवर्नेंस को समझाने के लिए पृथक से मंचीय-स्कीम चलानी पड़ती है। इस स्कीम के माध्यम से रियाया में गुड-गवर्नेंस की फीलिंग पैदा की जाती हैं..! इसी मंच से भीड़ जुटाकर अधिक से अधिक लोगों तक यही फीलिंग पहुंचायी जाती है और फिर जुटी भीड़ के अनुपात में गुड-गवर्नेंस को मापा भी जाता है! कुल मिलाकर पेंचीदगियों से भरी यह स्कीम बहुत खर्चीली हो चली है।
आखिर गवर्नेंस अपने गुडवर्क नहीं बताएगी तो फिर कौन बताएगा..? इसी मंशा से, सरकार अपनी स्कीमों का गुडवर्क बताने के लिए मंचीय-स्कीम टाइप की स्कीम लाती है। जिसकी सफलता के लिए तमाम विभागीय कारिंदें अपना सब काम-धाम छोड़ समर्पण भाव से जुट जाते हैं। इस दौरान गवर्नेंस के ये कारिंदें इस कार्यक्रम में किसी अवांछित गड़बड़ी की आशंका से हलाकान भी रहते हैं..! क्योंकि आजकल की गवर्नेंस भ्रष्टाचार पर तो नहीं..! लेकिन ऐसी किसी गड़बड़ी पर तुरंत ऐक्शन मोड में आ जाती है..। खैर..आज के लोकतंत्रीय जमाने में ऐसी मंचीय-स्कीमों की जबर्दस्त मांग होती है। एक बार गुड-गवर्नेंस से संबंधित उपलब्धियों के बखान वाले कार्यक्रम की तैयारी चल रही थी, पशुपालन-विभाग के डाक्टर साहब ने कुछ चिन्तित आवाज में मुझसे कहा -सर जी, क्या करें..दो दिन से हम यहां की तैयारी में लगे हैं और वहां अस्पताल बंद पड़ा है एक पशुपालक तो, फोन कर-करके हमें परेशान कर दिया है कि उसका पशु हीट में है अब आप ही बताएं, हम क्या करें?
थोड़ा विचारते हुए मैंने गुड-गवर्नेंस के प्रदर्शन की स्कीम को उनकी समस्या से अधिक ज्वलंत और संवेदनशील समस्या माना और उन्हें सलाह दी -यार, उस पशुपालक से कह दो हम गुड-गवर्नेंस के प्रदर्शन वाली स्कीम में फंसे हैं आज अपना पशु वापस लेकर चले जाओ..! उसकी अगली हीटिंग पर आना..फिर भी, डाक्टर साहब मिल्क-प्रोडक्शन की धीमी प्रगति पर चिन्तित थे, लेकिन मैंने फिर उन्हें समझाया -वैसे भी ये पशुपालक दूध ही तो बेचेंगे बछड़े को दूध पीने नहीं देंगे..! या तो वह मरेगा या फिर अन्ना जानवरों के झुंड में शामिल हो अन्ना-प्रथा की समस्या बढ़ाएगा..! जबकि इस समस्या से निजात दिलाने की जिम्मेदारी आपकी ही है..! तो, दो कन्ट्राडिक्टरी जिम्मेदारी आप कैसे निभा पाएंगे..? बाकी, यदि नवजात बछड़ा अपनी गौ-मां का दूध पिये बिना मर गया, या उसे अन्ना-पशुओं के झुंड में छोड़ा गया, तो मिल्क-प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के इस कार्य से आप अलग से पाप के भागी बनेंगे..! अत: मिल्क-प्रोडक्शन की चिन्ता छोड़ किसी पुण्यात्मा की तरह गुड-गवर्नेंस की स्कीम के आयोजन की चिंता करें।
मेरी बात उनकी समझ में आयी या न आई हो, लेकिन हमें ठंडा पानी पिलाते हुए वे कार्यक्रम की तैयारी में जुट गए। लेकिन, कभी-कभी कुछ अवांछनीय घटनाएं भी घट जाती हैं, एक बार ऐसे ही एक कार्यक्रम की तैयारी में एक सरकारी आयोजक महोदय तल्लीनता के साथ जुटे थे। मंच पर विभाग के मुखिया को आना था। मंच की सीढ़ी पर कालीन टाइप का कुछ बिछाने को लेकर उनकी कटिबद्धता देख, जब मैंने इसे गैरजरूरी बताया तो उन्होंने मुझसे कहा आप नहीं समझते, हम डिसिप्लिन में रहने वाले लोग हैं, इसी से हमारे काम का प्रदर्शन आंका जाता है..!
और उसी बिछायी कालीन से उनकी नजरें धोखा खा गई। सीढ़ी पर बिछे उस कालीन में उलझ कर वे ऐसे गिरे, कि अपना कूल्हा ही तुड़वा बैठे और प्लास्टर चढ़ाए महीनों अस्पताल में पड़े रहे। इधर उनका महकमा उनके गुड-गवर्नेंस से भी वंचित रहा। खैर..कहने का आशय यह कि गुड-गवर्नेंस का प्रदर्शन ऐसा होना चाहिए कि गुड-गवर्नेंस में कोई बाधा न आए।
ऐसे मंचों पर सरकारी और असरकारी विंग के वीआईपी टाइप के नुमाइंदो के लिए उचित व्यवस्था की जाती है। एक बार इस मंचीय-स्कीम की व्यवस्था में बाधा देखकर गवर्नेंस का एक आला कारिंदा अपने से छोटे सरकारी कारिंदें को जबर्दस्त ढंग से हड़काए जा रहा था, कि-तुमने ढंग के मेजपोश नहीं लगाए, देखो कैसी सिकुडऩ है.. कुर्सियां भी ढंग की नहीं लगी तौलिए का यही कलर मिला था? ढंग के तौलिए की व्यवस्था नहीं कर सके मेज एक अदद गुलदस्ते के लिए तरस रहा है नुमाइंदों के नेमप्लेट भी नहीं लगाए.. अरे ये देखो..! मंच पर गमले भी नहीं रखवाए तुमसे हो चुका विकास तुम्हें किसने अधिकारी बना दिया..!
और वह बेचारा छोटा कारिंदा मुंह लटकाए अपने बड़े साहब की डाट ऐसे खाए जा रहा था, जैसे उसे किसी घोटाले के आरोप में रंगे हाथ पकड़ लिया गया हो..! बल्कि घोटालेबाजों को देख ऐसे आला डाटबाजों की बांछें वैसे ही खिल जाती हैं जैसे, वोट के सौदागर किसी आतंकी के नाम के आगे-पीछे जी लगाए घूमते हैं..! इसीलिए घोटालेबाज भी आतंकियों की तरह सीना फुलाए घूमते हैं..!! खैर..
अब इस मंचीय-स्कीम के मंच पर मंत्री से लेकर संत्री तक उदारमना बन जाते हैं। ये अपने वक्तव्यों से अपने गुडवर्क का स्वयं कोई श्रेय नहीं लेते! अपितु गीता-ज्ञान से प्रभावित स्वयं को निमित्त मात्र बताकर ऊपर वाले को कर्ता घोषित कर देते हैं।
- रमाकांत भैरव