खुशहाली की खोज
26-Apr-2018 12:42 PM 1234931
आधुनिकता निश्चित नहीं होती। किसी काल विशेष के संदर्भ में होती है। अब हम साहित्यिक, सामाजिक, आर्थिक स्तरों पर उत्तर आधुनिक बोध की बात करते हैं। आज का विचार-विमर्श उत्तर आधुनिक बोध से संबद्ध है। आधुनिक का संबंध विज्ञान, तकनीक, तर्क और सोच से है। हम सवाल उठाते हैं। तर्क-वितर्क से हम किसी बात की सार्थकता सिद्ध करते हैं। आज स्त्रियां शिक्षित, प्रशिक्षित, उच्च शिक्षा प्राप्त, स्वावलंबी और पेशेवर हैं जो कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय के साथ काम कर रही हैं। ये डॉक्टर, इंजीनियर, एमबीए, चार्टर्ड अकाउंटेंट, बैंक और प्रबंधन में निष्णात हैं। बल्कि युवा पीढ़ी की लड़कियां दोहरी-तिहरी भूमिका निभाती हैं। घर से बाहर सुबह आठ-नौ बजे निकल कर दिन भर काम करके घर लौटती हैं रात सात-आठ या नौ बजे तक। फिर हमारे संस्कारीÓ घरों में उनसे आशा की जाती है कि वे घर आकर रसोईघर भी संभालें। घर में घरÓ की जिम्मेवारी घर के सभी सदस्यों की नहीं मानी जाती। घर में सबका जो निश्चित दायित्व होना चाहिए, वह नहीं होता। स्त्री बाहर अपना दायित्व निभाती है। घर में तो उसके प्रति सबकी आत्मीयता होनी चाहिए! आंकड़े कहते हैं कि कामकाजी महिलाएं अपनी कमाई का निन्यानबे से सौ फीसदी घर और बच्चों पर खर्च करती हैं। जब परिवार बढ़ाने की बात आती है तो अपने पेशे में बेहद काबिल लड़कियां भी नौकरी छोडऩे पर विवश होती हैं। सरकार की तरफ से कहीं बच्चों की देखभाल करने वाले केंद्र नहीं के बराबर हैं। फिर वहां भरोसा और सुरक्षा का सवाल बड़ा है। इसलिए इंजीनियरिंग या एमबीए करने के बाद भी वे नौकरी छोड़ कर घर बैठने पर मजबूर हैं। भारतीय स्त्री की अवधारणा में सिर्फ बेचारीÓ और विचारहीनÓ नारी का महिमामंडन किया गया, जो सिर्फ अनुगमन और अनुसरण करे। वह कभी प्रश्न न करे और उसकी अपनी कोई सोच या फिर इच्छा न हो। उसका कोई व्यक्तित्व न हो। घरों में सुबह से रात देर तक काम करती स्त्रियां, पूरे परिवार का भार लिए सबसे पहले उठ कर देर रात सो कर, सबके काम करके भी निरुपाय होती हैं। वे बिना पगार के, बिना किसी अवकाशÓ के, बिना शिकायत के ताउम्र काम करती हैं। लेकिन उसका श्रेय उन्हें कभी नहीं दिया जाता। ये सब उनका कर्तव्य है। मगर अधिकार पर कभी बात नहीं होती। स्त्री के सम्मान, समानता, इच्छा, आकांक्षा, महत्वाकांक्षा- ये सब कुछ नहीं होता। इसलिए हमारे घरों में शिक्षित, स्वावलंबी, दक्ष या फिर संगीत, रंगमंच, गायन, साहित्य में प्रतिभावान स्त्रियों का हमारे घर कत्लÓ कर देते हैं। शादी के बाद सब समाप्त। आज हमारे घरों में युवा लड़के पढ़ाई और नौकरी के लिए विदेश जाने को उत्सुक हैं और जा भी रहे हैं। वहां धीरे-धीरे उनका पश्चिमीकरण हो जाता है। वे वहां से सुख-सुविधा की चीजें भेज कर समझते हैं कि मां-बाप के प्रति उनका कर्तव्य पूरा हो गया। दूसरी ओर, धनी वर्ग में युवा लड़कों और लड़कियों के पास कोई रोक-टोक नहीं, पैसे की कमी नहीं। वे एक भागमभाग में धंसे हैं। उनके पास घर में नौकर हैं, गाडिय़ां हैं, जेब में क्रेडिट कार्ड हैं, मॉल है, खाने-पीने के महंगे ठिकाने या रेस्तरां हैं, डिस्को है। उनका जीवन अलग है। यहां सवाल लड़की-लड़के का नहीं। पूरी उस पीढ़ी और वर्ग का है। समाज के मध्यवर्ग के युवा लड़के और लड़कियां अपनी योग्यता और पेशे के प्रति सचेत हैं। घरों में अपने कर्तव्यों को लेकर भी चिंतित हैं। आज हम ऐसे समय में हैं, जहां स्त्रियां बिना झंडा उठाए या नारेबाजी के स्वाभिमान, सम्मान और मानव अधिकारों की बात कर रही हैं। स्त्री की इस भावना को समझा जाना चाहिए और सम्मान मिलना चाहिए। साथ ही स्त्रियों की स्त्रियों के प्रति सदियों से चली आ रही कटुताÓ और संकीर्णताÓ भी दूर होनी चाहिए। पुरुष वर्ग ने स्त्रियों की दुर्दशा का कारण हमेशा स्त्रियों को माना। चालाकी से भरी यह उक्ति भी पुरुष-सत्ता की साजिश लगती है कि औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं।Ó नई पीढ़ी के प्रति पुरानी पीढ़ी को सदय और समझदार होना होगा, ताकि अगर किन्हीं कारणों से उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे अपनी अगली पीढ़ी को दे सकें। नई पीढ़ी पर दोषारोपण से अब बचने की जरूरत है। जो पिछली पीढ़ी ने खोया, वह अगली पीढ़ी पा सके। तभी वह अपने कर्तव्यों के प्रति भी सचेत होगी। बदलते समय की मांग यही है कि हम अपने आप को पुराने जड़ विचारों से दूर करें और नई दिशा में सोचें, जहां आज युवा लड़कियां हर क्षेत्र, चाहे वह शिक्षा हो, खेल, साहित्य या फिर सिनेमा हो, आगे बढ़ रही हैं। घर की पुरानी व्यवस्था में थोड़ा फर्क लाना होगा। सबका कुछ न कुछ दायित्व हो अपने और दूसरों के प्रति। घर के बुजुर्गों, स्त्रियों और बच्चों के प्रति। तभी सच्चे अर्थों में घर खुशहाल होंगे। फिर दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों देश में महिलाएं पुरुषों के साथ मिलकर प्रगति में सहभागी बनी हुई है। क्षेत्र कोई भी हो वे पुरुषों से किसी भी मायने में कमतर नहीं हैं। उसके बाद भी यह देखा जा रहा है कि उनके साथ घर, परिवार, दफ्तर में दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। इसके बाद भी नारी आज समाज में अपनी हैसियत बनाए हुए हैं। नारी के व्यक्तित्व और कृतित्व से पुरुषों को सीख लेनी चाहिए। -ज्योत्सना अनूप यादव
FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^