अमन मियां का ज्ञान
03-Feb-2018 06:03 AM 1234895
हमारे मोहल्ले में अमन मियां रहते हैं, बहुत तेज तररार हैं। वे देश—दुनिया की खबरों का विश्लेषण करने में माहिर हैं, क्या मजाल है कि कोई न्यूज चैनल या अखबार का रिपोर्टर या संपादक उनसे अच्छा विश्लेषण कर ले। अमन मियां पूरे मोहल्ले में अकेले ऐसे जागरुक इंसान हैं जो हर विषय या हर समस्या की पोल खोल देते हैं। इसीलिए उनके सामने कोई चूं नहीं करता, वैसे वे साफ और सच्ची बात करते हैं, उनसे अक्सर मेरी मुलाकात पान की दुकान में होती है, वे पान के बहुत? शौकीन हैं। परसो पान की दुकान में एक अखबार पलट रहा था, मुझे एक ऐसी खबर मिली की उसकी प्रतिक्रिया के लिए अमन मियां से राग छेड़ दिया, अरे अमन मियां! ये देखों इस अखबार में एक शिक्षण संस्थान की महिला मैनेजर की एटरप्रिन्योर की कामयाबी के बारे में खूब चटाकेदार खबर छपी छपाक से, पर दुख इस बात का है कि शिक्षक को कम वेतन देने के मामले में उस संस्थान और उसके सहयोगी संस्थान में करीब दो साल पहले छापा इसलिए पड़ा कि वहां के शिक्षकों ने कम वेतन देने की शिकायत स्कूलों की मानिटरिंग करने वाले सरकारी संस्थान से की थी। यह खबर भी इसी अखबार में दो साल पहले छप चुकी थी।Ó अमन मियां सिर खुजलाते हुए, मुंह में दो मिनट पहले तक चुलबुलाए पान को जीभ से बनाए गए गेंद को मुख से दूर उछालते हुए हमें ज्ञान देने लगे, अमा भाई! इतना बड़ा शिक्षण संस्थान है तो विज्ञापन इस अखबार की झोली में जाना चाहिए, उसकी तारीफ में लिखना इस अखबार के लिए व्यावसायिक कर्तव्य बन गया होगा।Ó बेचारा पाठक पेड न्यूज ही पढ़ ठगा जाता है, मैं भी अमन मियां की बात सुन आश्चर्य से ठगा रह गया। अमन मियां ने दिया फिर ब्रह्म ज्ञान, सजग पाठक समझ जाता है कि इस अखबार ने इस खबर को जगह देकर पत्रकारिता धर्म नहीं निभाया, बाकी बिजनेस धर्म निभाया है।Ó अमन मियां अब रुकने वाले कहां वे बोले भइये, वहीं उस संस्थान के बारे में ये बातें भी आती है कि किसी समस्या के कारण से फीस भरने में पैरेंट्स को देरी हो जाती है तो उनके बच्चों को क्लास से निकाल दिया जाता है और पूरा दिन दूसरे रूम में बैठा दिया जाता है, ताकी पैरेंट्स को समझ में आ जाये कि बिना फीस भरे स्कूल एक दिन भी नहीं पढऩे देगा। चलो भाई ये व्यावसायिक स्कूल है; कुल मिलाकर फंडा यह कि बच्चों की पढ़ाई बाधित हो जाती है ताकी उनके मां-बाप कहीं से जुगाड़ कर जल्दी से फीस जमा कर दें। शहर में स्कूल खोलना बड़ी चुनौती है लेकिन गांव में स्कूल खोलना आसान है और आस-पास धनी मध्यम वर्ग के लोगों को इंग्लिश मीडियम के आकर्षण के कारण उनके यहां एडमिशन लेना मजबूरी है, क्योंकि उसी गांव में हमारे आपके टैक्स के पैसे से बने सरकारी स्कूल में पढ़ाई बेहतर नहीं होती है, भले वहां पर मोटी सैलरी वाले शिक्षक पढ़ाते हों, पर गणवत्ता के मामले में दोयम होता है, इसी का फायदा उठाकर ही गांवों में अंग्रेजी स्कूल धड़ल्ले से खुल रहे है। इसीलिए अंग्रेजी मीडियम वाले स्कूल को चौतरफा फायदा मिलता है, मोटी कमाई वाली ट्यूशन फीस, किताब बेचकर कमाई, यहां तक की ड्रेस में कमीशन, महंगी डायरी, जबरजस्ती लोगों को महंगे दाम पर बेचा जाता है, भाई टाई तो मिल जाएगी पर लोगों कहां तो झक मारकर आपको स्कूल से ही खरीदन होगा, किताब के साथ कवर निशुल्क नहीं है उसका भी पैसा वसूलते है, स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम की फोटों, सीडी, मैगजीन वगैरह से भी कमाई करता है मैनेजमेंट। वहीं कई अंग्रेजी माध्यम स्कूल महंगी फीस वसूलकर मुनाफा कमा रहे है, शिक्षा के नाम पर ट्रांसनेलशन वाली शिक्षा दे रहे हैं। इसमें कौन सी समाज सेवा है? सफल व समाज सेवाभाव वाले एंटरप्रिन्योर की उपाधि देकर ऐसे लोगों को अखबार के न्यूज में जगह देकर चाटुकारिता ही हो रही है, सच्ची पत्रकारिता नहीं।Ó अमन मियां की समझदारी की बात सुन मैं सिर खुजलाता रह गया। - अभिषेक कांत पाण्डेय
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