16-Jan-2018 08:27 AM
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मान लीजिए एक राज्य है। भैंसों का राज्य है, गुट है। भैंसों का गुट क्यों नहीं हो सकता? भैंसे मोटी बुद्धि की नहीं हो सकती क्या? आदमी ने ही ठेका ले रखा है हर बात का? तो मान लीजिए 80 भैंसे काली हैं 20 भूरी हैं। इससे पहले कि कोई शब्द पकड़ू मुझ पर रंगवाद और नस्लवाद का आरोप चेपे, एक पेंच डाल देता हूं। समझ लीजिए कि मैं काली भैंसों को भूरी कह रहा हूं और भूरी को काली। काली भैंसों में एक भैंस ज्यादा ही बदमाश है। उस पर आदमी सवार है।
जब भी राज्य के किसी क्षेत्र में धार्मिक आयोजन होते बदमाश भैंसें तरह-तरह की अफवाह उड़ाने लगती। उसके सुर में सुर मिलाने उसकी बुद्धि की कुछ और भैंसे आ जाती। तरह-तरह के शगूफे छोड़कर भूरी भैंसों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिश करती... वह कालियों को भूरियों के खिलाफ भड़काना शुरु कर देती है। हम बहुसंख्यक हैं, यह राज्य हमारी दादियों-नानियों ने बसाया था, गुटबाजी की परंपरा हमारे चाचा के परनाना ने शुरु की थी, आज भूरियां अपनी आबादी बढ़ा रहीं हैं, हमारी परंपरा पर हक जता रहीं हैं, हमारे राज्य पर कब्जा करना चाहती हैं वगैरहा और भी कई हथकंडे हो सकते हैं। आपको ज्यादा आयडिया होगा। इसमें क्या शक हो सकता है कि यह काली भैंस सांप्रदायिकता पर उतर
आयी है। यह सांप्रदायिक भैंस है। कट्टरपंथी है।
सांप्रदायिक और कट्टरपंथी यह काली भैंस ऐसा इसलिए करती है ताकि औरों के बीच उसकी अलग पहचान हो। औरों से अलग हटकर अपना रसूख दिखाने के लिए वह तरह-तरह के हथकंडे भी अपनाती थी।
अब मान लीजिए कि इस काली भैंस का बाकी कालियों से कोई लफड़ा हो जाता है और यह भूरियों के गुट में चली जाती है। काफी सामाजिक, कर्मठ और कत्र्तव्यपरायण भैंस है, खाली नहीं बैठ सकती। अब यह भूरियों को अपनी सामाजिकता में लपेट लेती है। यही हरकतें भूरियों के साथ शुरु कर देती है। तुम कम हो इस लिए कालियां तुम्हे दबातीं हैं, मैं तो उन्हीं के बीच रहकर आयी हूं असलियत मुझसे पूछो, खुद इबादत करतीं हैं तुम्हे पूजा पर मजबूर कर रखा है, वगैरह। आप कहेंगे कि पूजा और इबादत तो एक ही चीज है। मैं कहूंगा कि होंगी मगर ये भैंसों के तर्क हैं। आपमें से कुछ कहेंगे कि नहीं, हमने कई बार आदमी को भी इस टाइप की बातें करते सुना है। मैं कुछ नहीं कहूंगा।
अब यह भैंस वही है, हर तरह से पहले जैसी। वैसे ही जुगाली करती है, वैसे ही तालाब में नहाती है, वैसे ही तर्क करती है, और यह राज की बात नहीं है कि भैंसियत से ज्यादा रंगनिरपेक्षता पर जोर देती है। भैंसों को आज भी यही समझाती है जहां तुम्हारे भूरे देव का पूजास्थल था वहीं होना चाहिए, पहले कालों को कहती थी कि जहां तुम्हारे कालेदेव का था वहां से भूरियों ने हटा दिया था, तुम्हे वहीं बनाना चाहिए।
मगर अब यह भैंस सांप्रदायिक नहीं धर्मनिरपेक्ष कहाती है। क्योंकि अब यह अल्पसंख्यक भैंसों के पक्ष में खड़ी है। इससे पता चलता है कि धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिकता, मानसिकता से नहीं संख्याबल से तय होतीं हैं। अगर इसी भैंस को इसी मानसिकता के साथ पड़ोस के किसी गांव भेज दिया जाए जहां भूरी भैंसों की संख्या अस्सी है, तो यह वहां फिर से सांप्रदायिक कहाने लगेगी।
बहरहाल, एक दिन एक पार्टी के कार्यकत्र्ता आये और उन्होंने उस भैंस पर एक बैनर भी टांग दिया- धर्मनिरपेक्ष भैंस।
अब इस भैंस पर किसी ने उंगली उठाई तो उसे सांप्रदायिक करार दिया जाएगा।Ó
कुछ मासूम टाइप भैंसों ने दबी जुबान में पूछा, आपके पास भैंसियतÓ से जुड़ा कोई स्लोगन नहीं है?Ó
कार्यकत्र्ता बोले, हम अपने समुदाय में भी इंसानियत पर धर्मनिरपेक्षता को तरजीह देते हैं।Ó
एक भैंस का उत्साह बढ़ा, वह बोली, हां एक बार घास के गुच्छे में अखबार आ गया था, उसमें पढ़कर पता चला कि आप भी इंसानियत नहीं हजार-हजार साल पुरानी इमारतों को गिराने-बनाने में सारा ध्यान लगाए हैं। पता नहीं लोग आपको दूसरों से अलग क्यों मानते हैं!Ó
भैंस हो, भैंस की तरह रहोÓ, कार्यकत्र्ता को गुस्सा आ गया। सुबह हाई कमांड बताना भूल गया होगा कि भैंसों पर गुस्सा मत करना।
किसी को उपरवाला देता है, किसी को पार्टी देती है।
एक कहावत बल्कि उलाहना है, उपरवाला जब अक्ल बांट रहा था तुम कहां थे।Ó
एक कहावत होनी चाहिए, पार्टी जब चिंतन बांट रही थी, तुम कहां थे।Ó
किसी के लिए उपरवाला पार्टी है, किसी के लिए पार्टी उपरवाला है।
एक और पार्टी के कार्यकत्र्ता आ गए। उन्होंने भैंस को गांवद्रोही ठहरा दिया।
गद्दार भैंसÓ। नारे लगने लगे।
वैसे साफ कर दूं कि भैंसों का ऐसा कोई गांव नहीं है, आदमियों के हों तो हों।
- कुमार विनोद