आधुनिक भारत की चौथी ऋतु
01-Nov-2017 09:23 AM 1234808
आज नींद मुर्गे ने नहीं एक लाउडस्पीकर के शोर ने खोली जो सप्ताह भर बाद की एक चुनावी रैली का आव्हान कर रहा था, कॉलेज जाते वक्त देखा की शहर की जिन जर्जर सड़कों के गड्ढों में हिचकोले खाना लोगों की आदत बन गयी थी, उन पर काली चमकीली डाबर का मरहम लगाया जा रहा था, किनारे बनेे सरकारी भवनों पर रंग-रोगन किया जा रहा था, आगे गया तो चौराहे पर कभी ईद के चांद से दिखने वाली ट्रैफिक पुलिस बड़ी मुस्तैदी से तैनात थी, और सालों से शहर की शोभा बने बड़े-बड़े कचरे के ढेरों को नगर परिषद के कर्मचारी बड़ी कर्तव्यपरायणता से बाहर फंेकने का काम कर रहे थे और गजब की बात तो ये कि जो डॉक्टरों के दर्शन का पिपाशु सरकारी अस्पताल आज डॉक्टरों और स्टाफ के होने से जगमगा रहा था। पहले तो हमें ऐसा मालूम हुआ की हम कोई दिवास्वपन देख रहे है, परंतु सामने के मैदान में बज रहे भोपू की आवाज सुनकर ये भृम भी टूट गया। जाकर देखा तो वो कुछ दूध से स्वेत वस्त्रधारियों और कोट पेंट वाले प्रशासनिक मुलाजिमों की एक आम जन सभा थी जिसमें हर आदमी के दु:ख दर्दों और सालों से अटके कामों को वे एक छोटा सा हस्ताक्षर करके जादुई तरीके से सुलझाया जा रहा था, इनमें कुछ वे भी थे जिनको पिछले हफ्ते ही मैंने अपना एक काम निपटाने के लिए मिठाई की रस्म अदा की थी, आज वे सब बिना कोई रस्म लिए कार्यरत थे, ये नजारा देख हमने तो दांतों तले उंगली दबा ली की, अच्छे दिन आखिर आ ही गए। सप्ताह भर बाद आलाकमान के बड़े नेताजी हमारे क्षेत्र में आये और उन्होंने घोषणा की कि पानी को तरसते लोगों को पानी के साथ-साथ आरओ उपलब्ध कराया जायेगा, जिन सड़कों पर कालू का टम्पू भी सही से नहीं निकलता है, उनको फोरलेन के साथ चमकीला बनाया जायेगा, तथा पन्द्रह सो छात्रों पर पांच शिक्षकों वाले स्कूल को डिजिटल बनाया जायेगा, बेरोजगारी को फांसी की सजा दी जायेगी, किसान को राजगद्दी पर बैठाया जायेगा, उद्योगों का बीज बोया जायेगा, आलाकमान के दो धुंआधार दौरों में उद्घाटन और शुभारम्भों की मानो लड़ी सी लग गयी थी, अब आपको क्या बताये हमारी कपड़े की दुकान से इतने लाल फीते बिके की टर्न ओवर आठ गुना होने से सरकारी एजेंसी ने छापा मार डाला, इन घोषणाओं द्वारा तो नेताजी कुबेर का सारा खजाना ही जनता की जेब में जबर्दस्ती ठूसने का सा यत्न कर रहे थे। ऐसे में मचती लूट में हमने अपनी बाटियां सेक ली की मतदाता सूची में नाम जुडऩे से पहले ही वृद्धावस्था पेंशन सूची में अपना नाम जुड़वाकर अपनी मु_ी गरम कर ली। इन दिनों तो हमारा गंगा मैया में डुबकी लगाकर स्वर्ग जाने का सपना भी इस रामराज्य के सामने बोना नजर आने लगा था। ठगदान सम्पन्न हुआ, क्या रहमत का बहुमत दिया था हमने भी नेताजी को वो भी याद करेंगे, नेताजी और उनकी टोली का राज्य में राज्याभिषेक हुआ, लेकिन बहुमत के बाद माहौल तो बिलकुल विपरीत था सारे वादे और दावे खोकले के साथ अपरिग्रही भी महसूस हुए। नेताजी ने तो अपनी खटियां पर अपना मुंह तो छोडि़ए पैर तक हमारी ओर करके सोना ही छोड़ दिया था, इस रहस्य के समाधान में, हमारे एक प्रबुद्ध ने हमें मूर्ख और ज्ञानहीन की संज्ञा देकर बताया कि चुनावÓ आधुनिक भारत की चौथी ऋतु है, जिसमें झूठे वादों और लालच की बौछार होती, जिसमें प्रबुद्ध और महाज्ञानियों एवं तुम जैसे कलम घसीटों को अगूंठाछापों द्वारा ठगा जाता है, उन्होंने बताया कि इसमें विकासÓ पर्व का समय चार माह होता है, हम उनसे इस ऋतु से बचने के कपड़ों की पूछने ही वाले थे कि उन्होंने हमें टरका दिया। - दिपेन्द्र सिंह चौहान
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