रावनु रथी बिरथ रघुबीरा
01-Nov-2017 07:26 AM 1236032
सामान्यत: प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ श्री रामचरितमानस के लंकाकांड को असुरों के साथ संग्राम और अंत में रावण वध की कथा से संबंधित माना जाता है और सुंदरकांड की तरह इसका बारंबार पाठ नहीं किया जाता लेकिन इसमें उच्च जीवन मूल्यों को प्रेरित करने वाला एक प्रभावी अंश है जो नीचे हिंदी भावार्थ के साथ प्रस्तुत है। रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि विभीषन भयउ अधीरा।। अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।। नाथ न रथ नहीं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।। सुनहु सखा कह कृपा निधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।। सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।। रावण को रथ पर ओर श्री रघुवीर को बिना रथ के देख कर विभीषण अधीर हो गये। प्रेम अधिक होने से उनके मन में संदेह हो गया कि वे बिना रथ के, रावण को कैसे जीत सकेंगे। श्रीराम जी के चरणों की वंदना करके वे स्नेह पूर्वक कहने लगे- हे नाथ! आपके न रथ है, न तन की रक्षा करने वाला कवच है और न जूते ही हैं। वह बलवान वीर रावण किस प्रकार जीता जायेगा। कृपानिधान श्री रामजी ने कहा हे सखे। सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है। शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिये हैं। सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम (इंन्द्रियों का वश में होना) और परोपकार- ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं। ईश्वर का भजन ही उस रथ को चलाने वाला चतुर सारथि है। वैराग्य ढाल है और सन्तोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है। निर्मल (पाप रहित) और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना), (अहिंसादि) यम और (शौचादि) नियम, ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरू का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है। हे सखे। ऐसा धर्ममय रथ जिसके हो उसके लिये जीतने को कहीं शत्रु ही नहीं है। हे धीर बुद्धि वाले सखा। सुनो, जिसके पास ऐसा दृढ़ रथ हो, वह वीर संसार (जन्म-मृत्यु) रूपी महान् दुर्जय शत्रु को भी जीता जा सकता है, (रावण की तो बात ही क्या है)। हर किसी को कामयाबी चाहिए। जो कामयाब हैं, वे इसे बरकरार रखने का उपाय ढूंढते हैं। पर सफलता के रास्ते में समस्याएं हैं। बड़ा लक्ष्य, तो चुनौतियां भी बड़ी। कई बार चुनौतियों के आगे मन हारने लगता है। अपने पास मौजूद साधन मामूली जान पड़ते हैं। ऐसे में मन में संदेह उठना एकदम स्वाभाविक है। इस तरह के संदेहों से उबरने और कामयाबी हासिल करने का एक अचूक उपाय रामचरित मानस के लंकाकांड में बताया गया है। प्रसंग है राम-रावण युद्ध का। रणभूमि में लंकापति रावण के पास हर तरह के साधन मौजूद हैं, जबकि राम वनवासी के वेष में हैं। पैरों में जूते तक नहीं। ऐसे में विभीषण के मन में जीत को लेकर संदेह हो गया। जब राम ने विभीषण को समझाया, तब जाकर विभीषण को ज्ञान हुआ। आज के दौर में जीत के इस अचूक मंत्र की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। इसमें बताए गए रास्ते पर चलने के प्रयास भर से जीत की राह आसान हो जाती है। यह पूरी तरह से कर्म और आचरण से जुड़ा मामला है। जब भी मन में संदेह आए, तो इसके पाठ से संदेह अवश्य ही दूर हो जाते हैं। नीचे रामचरित मानस की पंक्तियां और उसके अर्थ बताए गए हैं। कहानी खुद स्पष्ट हो जा रही है... रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।। अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।। रावण को रथ पर सवार और श्रीराम को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। श्रीराम से अधिक प्रीति होने के कारण उनके मन में यह संदेह पैदा हो गया कि वे भला इस रावण को जीतेंगे कैसे। नाथ न रथ नहिं तन पद त्राणा। केहि बिधि जितब वीर बलवाना।। सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होई सो स्यंदन आना।। विभीषण ने रामजी की वंदना करके कहा, हे नाथ, आपके पास न तो रथ है, न तन पर कवच है, न पैरों में जूते हैं। ऐसे में आप रावण को कैसे जीत सकेंगे?Ó इस पर श्रीराम ने कहा, हे मित्र! सुनो, जिस रथ से जीत मिलती है, वह रथ कुछ दूसरी तरह का होता है।Ó सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।। बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।। जिस रथ से जीत मिलती है, उसके दो पहिए होते हैं- शौर्य और धैर्य। रथ पर लहराने वाली ध्वजा और पताकाएं हैं- सत्य- और शील (सदाचार)। बल, विवेक, दम (इंद्रियों का वश में होना) और परोपकार- ये उस रथ के चार घोड़े हैं। ये घोड़े क्षमा, दया और समता रूपी रस्सीं से रथ में जोड़े हुए हैं।Ó ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।। दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।। ईश्वर का भजन उस रथ को चलाने वाला सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचंड शक्ति है, श्रेष्ठा विज्ञान कठिन धनुष है।Ó अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।। कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।। निर्मल और स्थिर मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना), यम और नियम आदि बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद कवच है। जीत के लिए इससे बड़ा दूसरा कोई उपाय नहीं है।Ó सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहं न कतहुं रिपु ताकें।। हे मित्र, ऐसा धर्ममय रथ जिसके पास हो, उसके लिए जीतने को कहीं शुत्र ही नहीं है।Ó रामजी ने कहा कि हे विभीषण, जिसके पास ऐसा मजबूत रथ हो, वह दुर्जय शत्रु को भी आसानी से जीत सकता है। यह सुनने के बाद विभीषण का संदेह दूर हो गया। आगे की कहानी सबकों मालूम ही है। द्यओम
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