भगवत गीता केवल अर्जुन को ही क्यों सुनाई दी?
17-Apr-2017 05:54 AM 1235248
महाभारत युद्ध में जान और माल का भारी नुकसान हुआ। इसे विश्व का सबसे बड़ा और पहला विश्व युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में विश्व के अनेक क्षेत्र के योद्धा शामिल हुए थे। परंतु इस युद्ध से सबसे कीमती और मानवता को मार्गदर्शन हेतु एक ग्रन्थ प्राप्त हुआ, वह है भगवत गीता। यह विश्व में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाला ग्रन्थ भी है। भगवत गीता किसी विशेष धर्म के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए है। इसमें 18 अध्याय और 700 श्लोक है। इसे आत्मा का विज्ञान कहा जाना ज्यादा उचित होगा। अर्जुन ही ऐसे पहले व्यक्ति नहीं है, जिसे गीता का साक्षात ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवत गीता का ज्ञान सृष्टि के उत्पति के समय से है। सबसे पहले इसका साक्षात ज्ञान सूर्यदेव विवस्वान को हुआ था। उन्होंने इसे अपने पुत्र मनु को दिया, मनु ने अपने पुत्र ईक्षवु को दिया, इस तरह से यह ज्ञान चलता रहा। लेकिन धीरे-धीरे यह ज्ञान विलुप्त हो गया। इस ज्ञान को पुन: मूल रूप में प्रस्तुत करने के लिए श्री कृष्ण ने अर्जुन का चयन किया। गीता का ज्ञान महाभारत युद्ध के पहले दिन पांडवों और कौरवों की सेना के मध्य में श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया था। युद्ध भूमि में सबके सामने गीता का ज्ञान दिया जा रहा था, लेकिन अर्जुन के सिवाय कोई सुन या श्री कृष्ण का विराट रूप देख नहीं पाया। आखिर क्यों? भगवत गीता (अघ्याय 4.3) में श्रीकृष्ण कहते है — हे अर्जुन! आप मेरे प्रिय मित्र और भक्त होने के साथ-साथ आप ज्ञान प्राप्त करने के इच्क्षुक भी हो, आप यह ज्ञान प्राप्त करने के उचित पात्र है, इसीलिए यह ज्ञान मैं आपको देना चाहता हूं । यहां पर अर्जुन एक पवित्र आत्मा के प्रतीक है, जो की विपरीत परिस्थिति में भी सच्चे ज्ञान की तलाश में है, हर घटित होने वाली घटना का उद्देश्य और कारण जानना चाहते है। कोई भी कार्य स्वार्थ, लालच या किसी को नुकसान पहुंचाने के मकसद से नहीं करना चाहते है। कोई भी क्रिया करने से पहले उचित और अनुचित का भेद जान जाना चाहते है। उनका ज्ञान जानने का प्रयास अहम् रहित और ईश्वर के प्रति समर्पित है। दूसरी तरफ युद्ध क्षेत्र में खड़ी सेना सामान्य जनसमुदाय को दर्शाती है, जिन्हें कोई भी क्रिया करने से पहले उचित या अनुचित का जानना जरूरी नहीं होता। उन्हें तात्कालिक लाभ ज्यादा लुभाता है। उनकी आत्मा घमण्ड और लालच के मजबूत दीवार में घिरा रहता है। जो व्यक्ति लालच और घमण्ड का शिकार है उसको गीता का ज्ञान, जो कि आत्मा का विज्ञान है, प्राप्त नहीं हो सकता, चाहे क्यों न स्वयं ईश्वर ही इसे प्रदान कर रहे हो। सिवाय अर्जुन के उस युद्ध क्षेत्र में सारे लोग लालच या घमण्ड या बदले की भावना से एक-दूसरे के समक्ष खड़े थे। यही कारण था कि गीता का ज्ञान सबके सामने प्रस्तुत होने के वावजूद भी अर्जुन के सिवाय किसी को सुनाई नहीं दिया। सामान्त: इंसान वही देख या सुन सकता है, जो वह सुनना या देखना चाहता है। अर्जुन के सिवाय गीता का ज्ञान संजय और धृष्टराष्ट्र को प्राप्त हुआ था। यह दर्शाता है कि ज्ञान तीन तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है :- 1. अर्जुन विधि — प्रत्यक्ष ज्ञान 2. संजय विधि — पढऩे या देखने से 3. धृष्टराष्ट्र विधि — श्रवण करने से, यानि सुनने से। पाण्डवों के रक्षक के रूप में, कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन के रथ के सारथी बने श्रीकृष्ण की उदारता तथा उनका दिव्य संदेश, शाश्वत व सभी युगों के लिए उपयुक्त है। शोकग्रस्त व व्याकुल अर्जुन को श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया यह दिव्य संदेश ही गीता में लिखा है। धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:, इस श्लोकांश से भगवद् गीता का प्रारंभ होता है। गीता मनुष्य के मनोविज्ञान को समझाने, समझने का आधार ग्रंथ है। हमारी संस्कृति के दो ध्रुव हैं- एक है श्रीराम और दूसरे श्रीकृष्ण। राम अनुकरणीय हैं और कृष्ण चिंतनीय। भारतीय चिंतन कहता है पृथ्वी पर जहां-जहां जीवन है, वह विष्णु का अवतरण है। सभी छवियां महाकाल की महेश की, और जन्म लेने को आतुर सारी की सारी स्थितियां ब्रह्मा की हैं। ऊर्जा के उन्मेष के यही तीन ढंग हैं चाहे तो हम इस सारे विषय को पावन त्रिमूर्ति भी कह सकते हैं। इसी परम तत्व का ज्ञान श्रीकृष्ण ने आज से पांच हजार वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र के मैदान में, हताश अर्जुन को दिया था। गीता श्रीकृष्ण का भावप्रवण हृदय ग्रंथ है। इस पूरे विराट में जो नीलिमा समाई है और लगातार जो स्वर ध्वनि सुनाई पड़ती है, वह श्रीकृष्ण की वंशी है। उन्हें सद्चित आनंद का संगम माना गया है। सत् सब तरफ भासमान है चित मौन और आनंद अप्रकट है, जिस प्रकार दूध में मक्खन छिपा रहता है, उसी प्रकार श्रीकृष्ण की शरण में गया आदमी, आनंद से पुलकित हो जाता है। कृष्ण भी कुछ ऐसे करुण हृदय हैं कि डूबकर पुकारो तो पलभर में, कृतकृत्य कर देते हैं। श्रीकृष्ण रसेश्वर भी हैं और योगेश्वर भी हैं। कृष्ण, जिसके जन्म से पूर्व ही उसके मार देने का खतरा है। अंधेरी रात, कारा के भीतर, एक बच्चे का जन्म, जिसे जन्म के तत्काल बाद अपनी मां से अलग कर दिया जाता है। जन्म के छ: दिन बाद पूतना (पूतना का अर्थ है पुत्र विरोधन नारी) जिसके पयोधर जहरीलें हैं, उसे मारने का प्रयत्न करती है। -ओम
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