18-Mar-2017 10:10 AM
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श्रीरामचिरतमानस की प्रत्येक चौपाइयों को जीवन में उतारना अत्यंत फलदाई है। यह जीवन को एक उचित दिशा देती हैं। तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस के सात कांडों का अपना महत्व है। परंतु इसमें सुंदरकांड विशेष महत्ता रखता है। श्रीरामचरितमानस में सुंदरकांड की कथा सबसे अलग है। संपूर्ण श्रीरामचरितमानस में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की महिमा का वर्णन है परंतु सुंदरकांड एकमात्र ऐसा अध्याय है जो भक्त की विजय को दर्शाता है। इसलिए सुंदर कांड का पाठ करने से व्यक्ति के आत्मविश्वास में अभूतपूर्व वृद्धि होती है। सुंदरकांड के पाठ से रामदूत हनुमान अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं और समस्त दुखों को हर लेते हैं। जिन पर हनुमान प्रसन्न हो गए उन पर भगवान श्री श्रीराम की भी कृपादृष्टि होती है।
सुंदरकांड के फल को मनोवैज्ञानिक रूप से भी देखा जाए तो यह इच्छाशक्ति को बढ़ाने वाला है। वानर जाति के हनुमान जी समुद्र लांघकर लंका पहुंच जाते हैं और वहां सीता की खोज करते हैं। अकेला प्राणी पूरी सोने की लंका को खाक कर देता है। सुंदरकांड की कथा व्यक्ति में इच्छाशक्ति को प्रबल करती है। हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त की जा सकती है। सुंदरकांड गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के सात कांडों में से एक है। इसका पाठ करने से सभी प्रकार की चिंताएं, बिगड़े कार्य, आत्मविश्वास की कमी और हर प्रकार की परेशानियां खत्म हो जाती हैं। मंगलवार और शनिवार को इस पाठ को सूरज ढलने के बाद करना अत्यंत लाभदायक होता है।
भक्त की विजय का प्रतीक
रामचरितमानस में भगवान राम के गुणों और उनके पुरुषार्थ का वर्णन है। इसके सुंदरकांड अध्याय को भक्त की विजय का काण्ड कहा जाता है। इस अध्याय में हनुमान जी के समुद्र लांघ कर लंका पहुंचने, सीता जी को श्रीराम का संदेश देने, लंका दहन और सीता जी का श्रीराम के लिए संदेश देने तक का वर्णन है।
आत्मविश्वास में बढ़ौतरी
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस पाठ को पढऩे से आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ती है। इसमें एक आम व्यक्ति की जीत का वर्णन है कि किस प्रकार एक आम आदमी अपनी इच्छाशक्ति से इतना बड़ा कार्य करता है। इससे हमें जीवन की सफलता के सूत्रों का भी पता चलता है। रामचरितमानस में सुंदरकांड को ही सबसे उत्तम माना गया है क्योंकि इसके पढऩे से आदमी के आत्मविश्वास में बढ़ौतरी होती है।
हनुमान जी की कृपा पाने के लिए हनुमान चालीसा व सुंदरकांड का पाठ किया जाता है। ये पाठ करने से जहां मन को शांति मिलती है वहीं सारे कष्ट भी खत्म हो जाते हैं। इन पाठों का जाप करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और साथ ही श्री राम जी की भी कृपा होती है। जब-जब हम रामायण की बात करते हे तो उसमें भगवान श्री राम, माता जानकी, भ्राता लक्ष्मण और वानरराज सुग्रीव के साथ-साथ एक मुख्य योद्धा का नाम भी सुनते हैं जिनका नाम हनुमानजी था। भक्ति, समर्पण, सेवा, ब्रह्मचर्य और महाबली जैसे अनेक गुणों के स्वामी थे हनुमानजी। भगवान राम और माता सीता के दुलारे कौन थे श्री हनुमान? कैसे उनका जन्म हुआ था? आइये आज हम जानते है श्री राम भक्त हनुमानजी के बारे में।
हनुमानजी को भगवान शिव का रूद्र अवतार माना जाता है। भगवान शंकर का हनुमान अवतार सभी अवतारों में श्रेष्ठ है! इस अवतार में भगवान शंकर ने एक वानर का रूप धरा था। इस घटना की पुष्टि रामचरित मानस, अगस्त्य संहिता, विनय पत्रिका और वायु पुराण में भी की गई है। हनुमान जी के जन्म को लेकर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कथा के अनुसार रावण का अंत करने हेतु जब भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया। तब अन्य देवता भी राम की सेवा हेतु अलग-अलग रूपों में प्रकट हुए। भगवान शंकर ने पूर्व में भगवान विष्णु से दास्य का वरदान प्राप्त किया था, जिसे पूर्ण करने हेतु वह भी अवतरित होना चाहते थे। अत: वह हनुमान के रूप में अवतरित हुए। हनुमान उनके ग्यारहवें रुद्र हैं। इस रूप में भगवान शंकर ने राम की सेवा भी की तथा रावण वध में सहायता भी की।
हनुमानजी का जीवन जितना महान है उतना ही महान और लीलाओं से परिपूर्ण था उनका बालपन। वानरराज केसरी और माता अंजनी के पुत्र होने के कारण वो केसरी नंदन और अंजये के नाम से भी जाने जाते हैं। हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहा जाता है क्यूंकि माता अंजनी को वायु देव की कृपा से ही हनुमानजी प्राप्त हुए थे। हनुमानजी बचपन से ही पराक्रमी और साहसी थे ये बात हम उनकी एक लीला से जान सकते है जब वे सूरज को फल समझ कर खाने चले थे और सूर्यदेव की रक्षा हेतु देवराज इंद्र ने उन पर वज्र का प्रहर किया था। अपने पुत्र की मूर्छित अवस्था देख वायुदेव ने क्रोधित होकर वायु को रोक दिया था। तब सभी देवी देवताओ ने हनुमानजी को आशीर्वाद देकर उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की शक्तियों से सुसज्जित किया था और कहा था की ये बालक आने वाले समय में एक महान कार्य में भगवान श्री विष्णु के अवतार श्री राम की धर्म स्थापना में मदद करेगा।
उन्हें जीवन के रहस्यों और अपने उद्देश्यों को जानने की बहुत जिज्ञासा रहती थी और उसी के चलते वो ऋषि, ज्ञानी, पंडितों से इसके उत्तर प्राप्त करने का प्रयास करते थे। इस अवतार से हमें यह सीख लेनी चाहिए कि यदि आप अपनी क्षमता को पहचाने तो सब कुछ संभव है ! जिस तरह हनुमान ने अपनी क्षमता को जानकर समुद्र पार किया था उसी तरह हमारे लिए भी कुछ भी असंभव नहीं है! धर्म के पथ पर चलते हुए राम का हनुमान ने साथ दिया था उसी तरह यदि हम धर्म के मार्ग पर चलें तो भगवान हमारी सहायता भी अवश्य करेंगे !!
-ओम