04-Apr-2013 08:59 AM
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पिछले दिनों एक पत्रकार वार्ता में मुलायम सिंह का दर्द चेहरे पर दिखाई दे रहा था। वे कह रहे थे कि कांग्रेस चालाक है लेकिन इसके बाद भी वे यूपीए से समर्थन वापस नहीं लेंगे। दुनिया जानती है कि मुलायम के कंधों पर ही अब केंद्र सरकार टिकी हुई है। इसीलिए मुलायम के रुख को लेकर सरगर्मियां सदैव तीव्र हो जाया करती हैं। पर लोहिया के भक्त और लोहिया वादी राजनीति के अग्रज मुलायम सिंह यादव की यह मजबूरी समझ से परे है। लोहिया कबीर को उद्धृत कर कहा करते थे कि जो घर जाड़े आपनो चले हमारे साथ। लोहिया की राजनीति का अर्थ था कि जिसमें अपना सब कुछ खो देने की सामथ्र्य हो उसे ही राजनीति करनी चाहिए। लेकिन यहां तो घर भरने वाले और वंश चलाने वाले राजनीति कर रहे हैं। खुद मुलायम सिंह यादव के विशाल परिवार के बड़े-छोटे हर सदस्य को राजनीति में देखा जा सकता है। उनकी बहु तो इतनी सामथ्र्यवानÓ हैं कि निर्विरोध चुनाव जीत जाती हैं। ऐसे लोगों को सीबीआई से भय नहीं होगा तो किसे होगा। जाहिर है सीबीआई भी उसे ही डरा सकती है जिसकी काली करतूतों की सूची लंबी हो और मुलायम से लेकर मायावती तथा करुणानिधि तक हर एक के दामन में भ्रष्टाचार के दाग तो हैं ही। इसी कारण यह बार-बार कहना कि कांग्रेस चालाक है, लेकिन वे कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ेंगे बड़ा अजीब लगता है। इसके बजाय यह कहा जाना चाहिए कि सीबीआई सतर्क है इसलिए कितने भी कुतर्क देने के बावजूद सत्ता से चिपके रहना विवशता है। सवाल यह है कि इन विवशताओं और सीबीआई की ब्लैकमेलिंग के चलते यह सिद्धांतहीन रिश्ते देश का कितना भला करेंगे। क्या कांग्रेस की नीतियां समाजवादी पार्टी के समाजवाद से मेल खाती है? क्या मुलायम समर्थित यूपीए का बजट समाजवादी सिद्धांतों के एक प्रतिशत भी निकट है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर ज्ञात नहीं है तो फिर इस सिद्धांतहीन गठबंधन को मजबूरी का गठबंधन न कहा जाए तो क्या कहा जाए। इसी कारण मुलायम की मजबूरी और करुणानिधि की कमजोरी साफ दिखाई देती है। सीबीआई छापों के बाद करुणानिधि के रुख में भी नरमी आ गई और उन्होंने साफ कर दिया कि मौजूदा हालात में वे केंद्र की यूपीए सरकार को गिरने नहीं देंगे। क्योंकि सांप्रदायिक ताकतों का सत्ता में आने का खतरा है। अपने निजी खतरे को ढांक कर जनता को सांप्रदायिकता का खतरा दिखाना कहा तक जायज है क्या जनता इतनी ना समझ है। भले ही चिदंबरम से लेकर मनमोहन सिंह तक ने सीबीआई के दुरुपयोग की बात अस्वीकार की है, किंतु रामदेव बाबा से लेकर मायावती तक ऐसे अनेक उदाहरण है जब सीबीआई ने बदले की कार्रवाई की। सीबीआई को भले ही निष्पक्ष बताया जाए, लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि जिसकी भी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार से ठन जाती है सीबीआई उसके द्वार पहुंच जाती है। इसी कारण राजनीति के इस गंदे खेल को बंद करने की मांग उठने लगी है। सीबीआई जैसी संस्थाओं की स्वायत्ता ही इस मांग का जवाब है।