16-Jan-2016 10:45 AM
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अगर यह कहा जाए की दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सही मायने में आम आदमी की चिंता में दुबले होते जा रहे हैं तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पहले बिजली और पानी की छूट और अब स्कूलों में कैटिगरी वाइज सीट

फिक्स करने के फॉर्मूले को बैन कर उन्होंने दिल्ली के आम लोगों को बड़ी राहत दी है। वहीं मैनेजमेंट के नाम पर अवैध कमाई करने वाले स्कूलों पर लगाम भी लगाई है। केजरी के इन क्रांतिकारी कदमों से जहां आम आदमी को राहत मिली है वहीं विपक्षी दलों के नेताओं के होश उड़े हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के निजी स्कूलों में अपने बच्चे को एडमिशन दिलाना यहां के अभिभावकों के लिए किसी किले के फतह से कम नहीं था। यहां ऐसे स्कूलों की कमी नहीं है, जो सिबलिंग, एलुमनी और दूसरी कैटिगरी में सीट फिक्स कर देते हैं। मसलन कोई स्कूल एंट्री लेवल पर 25 पर्सेंट सीटें सिबलिंग कैटिगरी के लिए फिक्स कर देता है तो कोई 25 पर्सेंट एलुमनी के लिए। लेकिन सरकार ने इस फॉर्मूले को पूरी तरह से बदल दिया है। अब ओपन कैटिगरी की 75 पर्सेंट सीटों में कोई सीट फिक्सिंग नहीं होगी। सिबलिंग, एलुमनी, गर्ल चाइल्ड के लिए सीट फिक्स नहीं होगी, लेकिन इन कैटिगरी में पॉइंट दिए जाएंगे। स्कूलों को अपना एडमिशन क्राइटेरिया तय करने का अधिकार होगा। डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया का कहना है कि नर्सरी एडमिशन की गाइडलाइंस में कोई बदलाव नहीं किया गया है, लेकिन एडमिशन क्राइटेरिया के नाम पर स्क्रीनिंग करने वालों पर लगाम लगाई गई है। स्क्रीनिंग को खत्म किया गया है।
कई स्कूल 100 पॉइंट एडमिशन फॉर्मूला अपनाते हैं। कुछ स्कूल सीट फिक्स करते हैं, जो अब नहीं होगी। 100 पॉइंट फॉर्मूले में सिबलिंग, एलुमनी, गर्ल चाइल्ड को पॉइंट दिए जा सकते हैं। स्कूल पॉइंट तय करेंगे कि इन कैटिगरी में कितने पॉइंट होंगे। इसके अलावा सरकार ने 62 कैटिगरी को भी हटाया है और उन कैटिगरी के पॉइंट्स भी नहीं दिए जा सकेंगे। मसलन स्कूल नोबल कॉज के पॉइंट रखते थे, जो नहीं होंगे। बहुत से स्कूल सरकारी कर्मचारियों को भी पॉइंट देते थे, लेकिन अब इस कैटिगरी के भी कोई पॉइंट नहीं दिए जा सकेंगे। एज के भी कोई पॉइंट नहीं होंगे। अब नर्सरी एडमिशन में डिस्टेंस कैटिगरी के पॉइंट काफी अहम होने वाले हैं। अब स्कूल के पास रहने वाले बच्चों के एडमिशन के बेहतर चांस बनेंगे। सीएम अरविंद केजरीवाल का कहना है कि स्टाफ के बच्चों को एडमिशन में पॉइंट दिए जा सकते हैं। स्कूल इसके लिए उन्हें जितने चाहें पॉइंट दे सकते हैं, लेकिन स्टाफ के लिए कोई कोटा तय नहीं कर सकते हैं। सरकार भी चाहती है कि स्कूल में काम करने वाले टीचर्स, कर्मचारियों के बच्चों को उसी स्कूल में एडमिशन मिले, लेकिन इसके लिए पॉइंट दिए जाएं और कोई कोटा तय न हो। सरकार के इस कदम की हर ओर सराहना हो रही है।
महाराष्ट्र को भी भाया ओड एण्ड ईवन फार्मूला
दिल्ली में सफल हो रहे ऑड-ईवन के फार्मूले पर कई राज्यों की नजर है। महाराष्ट्र सरकार ने तो इस फार्मूले की मॉनिटरिंग करनी शुरू कर दी है। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि अगर दिल्ली में यह प्रयोग सफल रहा ता वह इसे मुंबई में अपना सकती है। दिल्ली इस योजना के लागू होने के बाद एक तरफ जहां सड़कों पर ट्रैफिक कम नजर आने लगा है, वहीं दूसरी तरफ मेट्रो की सवारी करने वालों में मात्र दो फीसदी का इजाफा देखा गया। मेट्रो सर्विस का रोजाना इस्तेमाल करने वालों की संख्या जहां औसतन 26 लाख की रहती है, चार जनवरी को ये आंकड़ा 28 लाख 20 हजार के आसपास रहा। हालांकि ये एक लंबी प्रक्रिया है, जिसके कई आयाम हैं, जिनमें वातावरण, साइंस, आंकड़े और काफी हद तक राजनीति शामिल है, लेकिन मेरी नजर में इसका सबसे बड़ा पहलू इस योजना की सामाजिकता है। दिल्ली-एनसीआर की एक बड़ी आबादी मिडिल क्लास वालों की है, वो वर्ग जो नौकरी पेशा और सेल्फ इंप्लॉयड है, और जिनके लिए साफ हवा में सांस लेना उतना ही जरूरी है, जितना ट्रैफि क की अधिकता से निजात पाना। ट्रैफिक के कारण यहां के आम लोगों के काम करने का समय औसतन डेढ़ से दो घंटे बढ़ जाता है, सुबह समय पर दफ् तर पहुंचना और शाम को घर लौटना एक लगातार चलने वाला संघर्ष है, ऐसे में परिवार, पड़ोस, रिश्तेदार और समाज से रिश्ता जोडऩा न के बराबर हो गया था। इसलिए ऐसे समय में ऑड-ईवन की प्रासंगिकता हम जैसे लोगों के लिए और बढ़ जाती है।
अक्स ब्यूरो