02-Jan-2016 07:55 AM
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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में सरकार ने मैट्रो चलाने की जिद पाल रखी है। जबकि देखा जाए तो इस शहर का ढांचा मैट्रो के संचालन के लिए उचित नहीं है। यहां न तो जिला प्रशासन और न ही पुलिस प्रशासन इतना सशक्त है कि वह यहां

की ट्रैफिक व्यवस्था को दुरुस्त बना सके। इसी का परिणाम है कि यहां बीआरटीएस कॉरीडोर का कॉसेप्ट सक्सेज नहीं हो सका है। इसके बावजूद राजधानी सहित इंदौर में सरकार लाइट मैट्रो चलाने का सपना देख रही है। लेकिन सरकार का खजाना खाली है इसलिए लाइट मेट्रो को दौड़ाने का सपना कर्ज के भरोसे ही पूरा होगा। सरकार ने खजाने की खस्ता हालत के बाद भोपाल और इंदौर में मेट्रो चलाने के लिए सौ फीसदी कर्ज लेने की तैयारी शुरू कर दी है। मेट्रो के लिए करीब 40 हजार करोड़ का कर्ज लेना पड़ेगा। जायका के अलावा बाकी फंडिग़ पीपीपी प्रोजेक्ट पर कर्ज लेकर पूरी होगी। जापान इंटरेनशनल कार्पोरेशन एजेंसी से 6 हजार करोड़ रुपए की पहली किस्त हासिल करने के लिए भोपाल मेट्रो रेल परियोजना के लिए जियोलॉजिकल सर्वे शुरू कर दिया है। करोंद से एम्स तक प्रस्तावित 28 किमी लंबे रूट पर एलीवेटेड कॉलम खड़े करने के लिए सर्वे टीम मिट्टी और जमीन (ठोस स्थिति) का परीक्षण कर रही है। वर्ष 2016 से शुरू होने वाले निर्माण कार्य के तहत सबसे पहले इसी रूट को तैयार करने की योजना है। जियोलॉजिकल सर्वे के नाम पर रूट पर रेंडम तरीके से नमूने जुटाए गए हैं, जिनकी प्रयोगशाला में जांच की जाएगी। चालू वित्तीय वर्ष 2015-16 की समाप्ति से पहले सरकार को रिपोर्ट जाइका कंपनी को सौंपनी है। इसके बाद 12 हजार करोड़ में से 6 हजार करोड़ की पहली किस्त जारी की जा सकती है।
भोपाल और इंदौर में पहले चरण में 25 से 30 किलोमीटर के हिस्से में मैट्रो की शुरुआत होगी। रोहित एंड एसोसिएट्स कंपनी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार कर चुकी है। डीपीआर केंद्र के पास भेजा जा चुकी है। इसके बाद शहरी आवास एवं पर्यावरण ने मेट्रो रेल कंपनी और वित्त विभाग के पास वित्त मंजूरी के लिए डीपीआर भेज दी है। भोपाल में मेट्रो के लिए कुल 18 हजार 873 करोड़ का खर्च प्रस्तावित है। इसमें ट्रैक बिछाने में 2774.02 करोड़, जबकि जमीन की कीमत 622.82 करोड़ रुपए है। इस तरह प्रति किमी लागत 198.60 करोड़ रुपए आएगी। इंदौर में मेट्रो पर कुल 22 हजार 173 करोड़ रुपए खर्च लगेगा। वहां ट्रैक बिछाने में 3271.26 करोड़ और जमीन की कीमत 630.56 करोड़ रुपए रहेगी। इस तरह इंदौर में प्रति किमी लागत 214.35 करोड़ रुपए लगेगी। डीपीआर बनने और प्रोजेक्ट की लेटलतीफी से भी कुछ करोड़ की लागत बढ़ सकती है। यही फंड जुटाना सबसे बड़ी परेशानी है। मेट्रो के लिए जापान की जायका से 12 हजार करोड़ का कर्ज मिलेगा। जायका ने डीपीआर को परख लिया है। इसके प्रतिनिधि रूट्स बीते दिनों भोपाल-इंदौर आए थे और रिपोर्ट से संतुष्ट हुए हैं। इनके वित्तीय मंजूरी के लिए जनवरी में प्रतिनिधिमंडल आएगा और उनकी हामी के बाद कर्ज की मंजूरी मिल जाएगी। इस योजना में केंद्र और राज्य सरकार को 20-20 फीसदी अंशदान देना है। केंद्र से मदद नहीं मिलने पर राज्य सरकार को 40 फीसदी राशि का इंतजाम करना होगा। यह राशि भी कर्ज लेकर जुटाई जाएगी। विभाग ने इसका प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है, क्योंकि यह सरकार के खजाने से जुटाना संभव नहीं है। करीब 24 हजार करोड़ की व्यवस्था पीपीपी मोड पर होगी। सरकार दूसरे प्रदेशों के मेट्रो प्रोजेक्ट की तरह पीपीपी मोड पर आर्थिक इंतजाम करेगी। इसमें निजी हाथों में जमीन देकर कामर्शियल कॉम्पलेक्स बनवाए जाएंगे। इसे बेचकर कंपनी पैसा जुटा सकेगी। कमिश्नर नगरीय प्रशासन विवेक अग्रवाल कहते हैं कि जाइका को मेट्रो रेल प्रोजेक्ट की वायबिलिटी रिपोर्ट के साथ सभी रूट की जानकारी दी गई है। रूटीन सर्वे के बाद कंस्ट्रक्शन का काम शुरू किया जाना है।
250 करोड़ प्रति किमी लागत
करोंद से एम्स तक बनने वाले मेट्रो रेलवे ट्रैक की निर्माण लागत 250 करोड़ प्रति किमी आंकी गई है। राजधानी में ऐसे सात रूट तैयार होने हैं। जमीन की आसान उपलब्धता की वजह से करोंद से एम्स वाले हिस्से का चयन किया गया है। इस रूट पर लो फ्लोर बसें चलती हैं और मार्ग के ऊपर से ही मेट्रो रेल एलीवेटेड कॉलम के जरिए गुजरेगी। प्रोजेक्ट के इस फेज का काम समाप्त करने के लिए दिसंबर 2018 की समय सीमा तय की गई है।
-भोपाल से राजेश बोरकर