क्या निर्भया से न्याय नहीं हुआ?
02-Jan-2016 07:16 AM 1234792

निर्भया गैंगरेप कांड के दोषी जुवेनाइल की रिहाई के बाद आखिरकार जुवेनाइल जस्टिस बिल को राज्यसभा से पास कर दिया गया। अब जघन्य अपराधों में नाबालिग की उम्र 18 से घटा कर 16 वर्ष कर दी गई है। इस बिल के पास होने से अब ऐसे अपराध के केस में नाबालिगों पर भी बालिग की तरह केस चलेगा। बताते चलें कि राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए वोटिंग कराई गई थी। वोटिंग प्रक्रिया शुरू होने से पहले सीपीएम राज्यसभा से वॉकआउट कर गई। सीपीएम शुरू से ही जुवेनाइल जस्टिस बिल के विरोध में खड़ी थी। आखिरकार किशोर न्याय (बाल देखरेख एवं संरक्षण) बिल-2015 को आखिरकार राज्यसभा ने पास कर दिया। लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या इस बिल के पास होने से निर्भया के साथ न्याय हुआ है।
निर्भया को न्याय नहीं मिल सका। हमारी न्याय व्यवस्था की यह कैसी विडंबना है। 16 दिसंबर, 2012 को अमानवीयता की सारी हदें पार करने वाला नाबालिग अपराधी कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर रिहा हो गया। लेकिन उस निर्भया का क्या होगा, जिसने इस दरिंदगी के बाद 29 दिसंबर, 2012 को सिंगापुर में अंतिम सांस ली थी। दिल्ली उच्च न्यायालय उसकी रिहाई पर रोक नहीं लगा सका, क्योंकि कानूनी नियमों के तहत उसे उसके किए की सजा मिल चुकी है। लेकिन वास्तव में उसका गुनाह उसे माफी देने लायक नहीं है। कानून की बारीकियों का लाभ उठा वह बाल सुधार गृह से भले बाहर आ गया, लेकिन उसकी आत्मा और समाज उसे क्या कभी माफ करेगा? वह समाज में सिर उठाकर नहीं चल सकेगा। समाज में उसका परिवार भी सिर उठाकर नहीं जी सकेगा। लेकिन सवाल उठता है कि निर्भया को आखिर न्याय कैसे मिलेगा? इस कू्ररतम घटना के जितने भी गुनाहगार थे, तीन साल बीतने के बाद भी उन्हें सजा नहीं मिल पाई है। निर्भया कांड के बाद जिस तरह दिल्ली की सड़कों पर जैनसैलाब उमड़ा था, उससे यही प्रतीत हुआ था कि अब देश में कोई दूसरी लड़की निर्भया नहीं बनेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस मामले में आरोपी मुकेश, विनय और पवन को निचली अदालत से मौत की सजा सुनाई गई है। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। अभी यह मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है, जबकि एक आरोपी राम सिंह 11 मार्च को तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। पांचवां आरोपी यह किशोर आखिरकार सुधार गृह से छूट गया, लेकिन निर्भया की आत्मा न्याय के लिए भटकती रही, उसे न्याय नहीं मिल सका।
देश की सहिष्णु कानून व्यवस्था दरिंदगी जैसे अपराधों में भी सजा दिलाने में नाकाम रही है। समाज के लिए यह सबसे बड़ा अपराध हैं। पीडि़ता के माता-पिता ने कहा है कि जुर्म जीत गया और हम हार गए। सच बात है। पांच दरिंदे कानूनी फंदे का लाभ उठा जेल में मौज कर रहे हैं, जबकि जिस मां-बाप के सपने को इन्होंने कुचल दिया, उन्हें न्याय नहीं मिल सका।

बदला कानून, खूंखार किशोरों पर चलेगा बड़ों जैसा केस

अंतत: जघन्य अपराधों में शामिल 16 वर्ष तक  आयु के किशोरों के साथ वयस्क जैसा बर्ताव करने का प्रावधान करने वाले जुवेनाइल जस्टिस (बाल न्याय) विधेयक 2015 को पारित करने के लिए 22 दिसम्बर को राज्यसभा में पेश कर दिया गया जिसे कांग्रेस, बसपा व तृणमूल आदि ने समर्थन प्रदान किया और उसे बिना संशोधन के पारित कर दिया गया। जिसके अनुसार गंभीर नाबालिग अपराधियों की आयु 18 साल से घटा कर 16 साल कर दी गई। विधेयक पर बहस की शुरूआत करते हुए मेनका गांधी ने कहा कि विधेयक में संशोधन देश की मांग है क्योंकि ठोस कार्रवाई न होने का भरोसा होने के कारण बच्चे जानबूझ कर ऐसे अपराध करते हैं। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने भी कहा कि सुधार घरों में किशोर अपराधियों को शिक्षा देने की आवश्यकता है और यदि निर्भया का मुजरिम जेल से रिहा न हुआ होता तो शायद सरकार आज भी न जागती। संसदीय कार्य मंत्री वैंकेया नायडू ने कहा कि इस बिल का पारित होना ही निर्भया को सच्ची श्रद्धांजलि है। हालांकि इस विधेयक के पास होने का असर निर्भया केस पर नहीं पड़ेगा लेकिन आने वाले समय में दूसरे अपराधी आसानी से नहीं छूट सकेंगे अन्तत: आवश्यकता इसे यथाशीघ्र कानून में बदलने की है।
-दिल्ली से रेणु आगाल

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^