15-Dec-2015 10:56 AM
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बिहार चुनाव में भाजपा को मिली हार का साइड इफ्ेक्ट जल्द देखने को मिलेगा। इसके लिए फिलहाल भाजपा तो चुप बैठी है, लेकिन संघ कवायद में जुट गया है। इसी कड़ी में संघ ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को जीवनदान

दे दिया है, लेकिन कई मंत्रियों पर गाज गिरनी तय मानी जा रही है। सत्ता के गलियारों की खुसर-पुसर पर यकीन किया जाए तो आने वाले समय में केंद्र सरकार के कई छोटे-बड़े मंत्रियों की कुर्सी छिन सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा नेतृत्व असम और उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसके लिए जल्द ही केंद्रीय मंत्रिपरिषद में बदलाव किया जा सकता है। इसमें बिहार से आने वाले कुछ मंत्रियों की जगह यूपी और असम के नए चेहरों को शामिल किया जाएगा। भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार, दलित और पिछड़े वर्गो को प्राथमिकता दी जाएगी। बता दें कि असम में 2016 और यूपी में 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आवास पर रविवार सुबह और शाम को इन चुनावों को लेकर चुनिंदा नेताओं ने चर्चा की।
सभी ने माना कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद में बदलाव का समय आ गया है। संगठन चुनावों के जरिए केंद्रीय संगठन में भी यूपी व असम के कुछ प्रमुख नेताओं को जगह दी जाएगी। शीत सत्र के बाद केंद्रीय मंत्रिपरिषद में बदलाव किया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक, बिहार से चार मंत्रियों को कम किया जा सकता है जबकि इतने ही नए मंत्री यूपी और असम से बनाए जा सकते हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पूरी पार्टी की प्रतिष्ठा जुड़ी होगी। ऐसे में पार्टी यहां अभी से तैयारियों में जुटना चाहती है। खबर तो यह भी है कि बिहार से तालुल्क रखने वाले मंत्रियों के पर निश्चित ही कतरे जाएंगे। जिनकी कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है उनमें भाजपा के रविशंकर प्रसाद, लोकजनशक्ति के रामविलास पासवान और समता दल के उपेंद्र कुशवाहा का नाम शामिल है। जानकारों की मानें तो केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह को छोड़ सभी बिहारी मंत्रियों से मुख्यमंत्री खफा हैं। अपनी लोकसभा सीट से जुड़ी छह विधानसभा सीटों में से चार पर भाजपा को विजय दिला राधा मोहन सिंह पीएम के कोप से बच निकले हैं। खबर यह भी है कि कई वरिष्ठ मंत्रियों के विभागों में भी बड़ा फेरबदल होना तय है। इन मंत्रियों में कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं का नाम शामिल है। उत्तराखण्ड से एक मंत्री का कैबिनेट में आना तय बताया जा रहा है। संघ के सूत्रों का कहना है कि लाटरी पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी की लग सकती है हालांकि हरिद्वार से सांसद डॉ.रमेश पोखरियाल निशंक ने भी सारे पत्ते खोल रखे हैं। लेकिन सबसे बड़ी खबर यह है कि जल्द ही मोदी सरकार के एक सबसे ताकतवर मंत्री का कद कम हो सकता है। ये मंत्री हैं अरूण जेटली। मोदी सरकार में नम्बर दो का वजूद रखने वाले जेटली पुराने वक्त से ही मोदी के ट्रबल शूटर रहे हैं, लेकिन फिलहाल पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इन से नाखुश हैं।
सूत्रों के मुताबिक सरकार बनते ही जेटली ने जो ब्लू प्रिंट पीएम मोदी को दिया उससे खुद मोदी और शाह ने सराहा लेकिन अब हालात कुछ अलग ही हैं। मोदी और अमित शाह दोनों ही जानते हैं कि भले ही जेटली जमीनी नेता ना हों पर मीडिया, कॉरपोरेट में उनकी अच्छी पकड़ जरूर है। जेटली समय-समय पर विपक्ष में रहकर भी बड़े नेताओं को बचाते रहे और सरकार बनते ही उनको इसका इनाम भी मिला। सूत्रों कि माने तो जेटली के कहने पर प्रमुख मत्रांलयों में उनके करीबी अधिकारियों की पोस्टिंग की गई। बीजेपी के एक पूर्व सांसद की मानें तो भूमि अधिग्रहण कानून को बदलने का प्रस्ताव इन्हीं का था जिसकी वजह से बाद में सरकार की किरकिरी हुई। पीएमओ में रहे एक पूर्व नौकरशाह की मानें तो ये जेटली अब राजनाथ सिंह के कामों में भी दखल देने लगे हैं, हांलाकि वो ये सब पीएमओ से ही करवाते हैं। सूत्रों की माने तो राजनाथ और मोदी के बीच हुई गलतफहमियों की वजह अक्सर जेटली ही हुआ करते थे और मोदी हमेशा इन्हीं की बातों को ही तवज्जो देते रहे। एक घटना का हवाला देते हुए उस नौकरशाह ने बताया कि राजनाथ सिंह यूपी कैडर के आईएएस अधिकारी सौरव चंद्रा को होम सेके्रटरी बनाना चाहते थे लेकिन आखिरी वक्त में एल सी गोयल का नाम आना उन्हीं की ताकत को बता रहा था, बाद में गोयल ने सरकार की भद पिटवाई और उनकी छुट्टी कर दी गई। बाद में मौजूदा होम सेक्रेटरी राजीव महर्षि की पोस्टिंग करवा कर मिस्टर मिनिस्टर राजनाथ सिंह की राह में बड़ा रोड़ा बन गए। राजनाथ सिंह गृह मंत्री तो हैं लेकिन मंत्रालय पीएम के नाम पर यही मिस्टर मिनिस्टर चला रहे हैं।
सूत्रों कि माने तो राजनाथ के बेटे पंकज से जुड़े विवाद को लीक करने में भी इनका हाथ था। जेटली अब सरकार में मोदी की आंख, नाक और कान बन चुके थे! सरकार में मौजूद एक मंत्री की माने तो ये जेटली का मीडिया कनेक्शन ही था जिसने सुषमा स्वराज की रातों कीं नींद गायब कर दी थी, हालांकि कुछ दिन बाद सुषमा समेत बीजेपी के बड़े नेताओं को इसकी भनक लग गई.. बाद में ये बात पार्टी में आम हो गई कि जेटली ने ही मुंबई में डिनर पर अंग्रेजी के एक बड़े चैनल की मंैनेजिंग एडिटर को इसका जिम्मा सौंपा था.. धीरे धीरे पार्टी में कई बड़े नेताओं में इनके खिलाफ नाराजगी बढऩे लगी। सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ती आजाद ने तो जेटली के क्रिकेट प्रेम पर आवाज उठानी शुरु कर दी। हालांकि इनके के मीडिया मैनेजमेंट के जरिये ये बात दबी रही। कीर्ती ने अब ना केवल खुले मंच से इनपर सवाल उठाए बल्कि प्रधानमंत्री को चि_ी लिखकर इनकी शिकायत भी की.. डेढ़ साल तक पीएम मोदी हर बार चुप्पी साधते रहे लेकिन अब मोदी को सरकार की खराब होती छवी और देश की बिगड़ती अर्थ व्यवस्था पर अबतक कुछ काम होते नहीं दिख रहा है, मोदी ये बखूबी जानते हैं कि केवल मीडिया मैनेजमेंट के जरिये सरकार नहीं चलाई जा सकती। जिस तरीके से पार्टी के बड़े नेता उनसे नाराज हैं और देश की मौजूदा हालत में कोई सुधार नहीं है प्रधानमंत्री को ये एहसास हो चुका है कि ज्यादा दिनों तक ऐसे माहौल के सहारे नहीं चला जा सकता। सूत्रों की माने तो प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और संघ के एक बड़े नेता के बीच गुपचुप तरीके से जेटली को लेकर चर्चा हुई और तीनों ने ही इनके बढ़े हुए पर कतरने का मन बनाया है। संघ के इशारे और वक्त की मांग दोनों ने मिलकर मोदी को मंत्रिमंडल में फेरबदल को मजबूर किया है। वैसे मंत्रिमंडल में फेरबदल की आवश्यकता तो काफी समय से महसूस की जा रही है। स्मृति ईरानी के कामकाज के तरीकों से आरएसएस नाराज है। चर्चा तेज हो रही है कि जल्द ही उनका मंत्रालय बदल सकता है। संघ और पार्टी के लोगों का मानना है कि उनके मंत्रालयों में काम नहीं हो रहा, फैसले नहीं लिए जा रहे। उनके बदले डॉ. हर्षवर्धन को ये विभाग दिया जा सकता है। स्मृति ईरानी भी मानव संसाधन मंत्रालय में अपने को असहज महसूस कर रहीं हैं। उनकी फर्जी डिग्री के मामले ने भी मोदी मंत्रिमंडल की छवि को नुकसान पहुंचाया है। शिक्षामंत्री की खुद की शिक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगे तो यह एक उपहास की बात है। गिरिराज सिंह जैसे हिन्दुत्ववादी नेताओं को मंत्रिमंडल से हटाना या उनका दर्जा कम करना भी नरेन्द्र मोदी के लिए समस्यामूलक हो सकता है। उनको सत्ता में लाने में हिन्दुत्ववादी संघ परिवार ने बहुत बड़ा योगदान दिया है।
बीजेपी और संघ की मनोदशा उस सेना जैसी है, जो ये कैसे मान सकती है कि उसके हथियार कमजोर थे? इसीलिए सारा आँकलन इसी बात पर केन्द्रित हो गया कि हथियार तो बेहतरीन और आजमाये हुए थे। जरूर निशाना लगाने वाले सैनिकों से कोई चूक हुई होगी। ये चूक भी कार्यकर्ता से लेकर नेता तक सभी से हुई। लिहाज़ा, किसी को अवसादग्रस्त होने की कोई दरकार नहीं है। ऐसे सोचने से ही विचारधारा के प्रति आत्मविश्वास टिकाऊ होता है। लिहाजा, पुराने हथियारों को नया रंग-रोगन करके अगली जंग में इस्तेमाल के लायक बनाया जाएगा। इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है। जिसके पास जो सम्पदा है, वो उसी का तो प्रदर्शन करेगा! औरों की देखा-देखी चलेंगे तो विचारधारा का मतलब ही क्या रह जाएगा? उल्टा, पीढिय़ों से समर्पित कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा। लोग कहेंगे, कौआ चला हंस की चालÓ। इससे तो दशकों से संजोयी पूँजी रातों-रात स्वाहा हो जाएगी। विचारधारा के धनी लोग चाहे जितने नाकाम साबित होते रहें, अपनी सोच पर अटल रहते हैं। यही राजनीति है। वामपन्थी भी इसके अहम उदाहरण हैं? सारी दुनिया में साम्यवादी सोच पस्त पड़ती रही। लेकिन माक्र्स और लेलिन के बौद्धिक वंशजों ने क्या कभी हार मानी? इसी तरह, संघवंशियों ने बीते 91 साल में न जाने कैसे-कैसे उतार-चढ़ाव देखे, देश का विभाजन देखा, दंगे-फसाद देखे, तुष्टिकरण और वोट-बैंक का ताना-बाना देखा, रथयात्रा-राममन्दिर और अयोध्या देखा, गठबन्धन की सरकारें देखीं और दो सीटों से लेकर तीस साल बाद मिले स्पष्ट जनादेश का जलवा देखा। इस सफर में वक्त के साथ बहुत कुछ बदला, सिवाय विचारधारा के। मानो, यही आत्मा है। तभी तो अजर और अमर है।
जुमले काम नहीं आए, अब रणनीति में बदलाव
बीजेपी अब समझ चुकी है कि जुमले काम नहीं आए। इसलिए बिहार चुनाव के नतीजोंं से बीजेपी और संघ ने कुछ बदलाव करने की तैयारी कर रही है, क्योंकि 17 महीने में मोदी सरकार की कोई उपलब्धि ऐसी नहीं है, जिससे छह महीने बाद होने वाले असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, केरल और पुडुचेरी के चुनावों में जनता को भरमाया जा सके। संघ जानता है कि पूर्वोत्तर में प्रसार के लिए असम-विजय जरूरी है। बांग्लादेशी घुसपैठ ने असम को साम्प्रदायिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील बना रखा है। साल भर बाद 2017 में, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में भी बेहद महत्वपूर्ण संघर्ष होना है। इसको देखते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत की निगरानी में रणनीति बन रही है। अब यह देखना दिलचस्प होगा की आने वाली चुनौतियों से भाजपा कैसे निपटती है।
-अरविंद नारद