04-Apr-2013 08:37 AM
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दिल्ली में जघन्य हत्याकांड के बाद स्त्री संवेदनाÓ का दौर बदस्तूर जारी है। न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका जी-जान से इस बात को सुनिश्चित कराना चाहती है कि स्त्रियां सुरक्षित रहें और स्त्रियों को प्रताडऩा देने वालों को कठोर से कठोर सजा मिले। इस सिलसिले मेें देशभर में कई फांसी की सजा भी देखने को मिली हैं। जहां जघन्य अपराध करने वालों को 15 दिन के अंदर सजा सुनाई गई। लेकिन इन सबके बावजूद देशभर से ऐसे समाचारों में कोई कमी नहीं आई हैं, बल्कि छह माह की बच्ची से लेकर 70 वर्ष की वृद्धा तक हर महिला बलात्कार झेल रही है और इसी दौरान केंद्र सरकार ने संसद में एक बहुत कड़ा विधेयक महिलाओं के पक्ष में पारित करा दिया है। सरकार इस विधेयक में जो प्रमुख संशोधन लेकर आई है उसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 326, 354, 370 और 376 में या तो संशोधन किया है या उसमें नया नियम नत्थी किया है। धारा 326 की एक उपधारा जोड़ी गई है 326 ए। इस उपधारा के तहत यह प्रावधान होगा कि अगर कोई व्यक्ति किसी महिला पर या फिर कोई महिला किसी व्यक्ति पर एसिड अटैक करता है या करती है तो ऐसे मामले में उस महिला या पुरुष को 10 वर्ष की सजा सुनाई जा सकती है। धारा 326 के तहत सिद्ध पाये गये अपराध के लिए अधिकतम सजा 10 साल की है जबकि एसिड अटैक के लिए जो नया उपबंध जोड़ा गया है उसके लिए भी 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है।
आईपीसी की धारा 354 में सबसे ज्यादा बदलाव किये गये हैं। इसी एक धारा में चार उपबंध जोड़े गये हैं। ए बी सी और डी। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 पूरी तरह से महिला के सम्मान और सुरक्षा के लिए समर्पित है। किसी भी कारण से अगर महिला की शील (बलात्कार छोड़कर), लज्जा, मर्यादा या सुरक्षा पर हमला होता है तो इस धारा के तहत दो साल तक की सजा का प्रावधान है। सरकार आईपीसी की इस धारा में चार महत्वपूर्ण उपधाराएं जोड़ रही है। इसमें पहली उपधारा 354 ए, सेक्सुअल ह्रासमेन्ट को परिभाषित करती है, दूसरी उपधारा 354 बी, महिला के मान की सुरक्षा से जुड़ी है, तीसरी उपधारा 354 सी पुरुष के नयनसुख को अपराध बताती है, और चौथी उपधारा 354 डी, औरत का पीछा करने को अपराध मानती है। इन चारों प्रस्तावित संशोधनों के स्वीकार हो जान के बाद इन अपराधों के लिए दोषी पाये जाने पर एक से लेकर सात साल की कठोर सजा का प्रावधान है। इन उपधाराओं में मर्दों के अपराध की जो परिभाषा दी गई है वह परिभाषाएं ऐसी हैं जिनके लिए कभी कोई गवाह या सबूत जुटाने की जरूरत नहीं है। जहां दोष लगा देना ही अपराध हो, और पूरी प्रशासनिक मशीनरी मजबूरी वश दोष लगानेवाले के साथ खड़ी हो, वहां कैसे तय होगा कि तथाकथित अपराध हुआ भी है या नहीं?
जाहिर है, सरकार ने प्रस्तावित विधेयक में जो बदलाव किये हैं उसके बाद न सिर्फ महिला के मर्यादा की परिभाषा व्यापक हुई है बल्कि उसके लिए अलग अलग सजाओं का प्रावधान भी किया गया। मसलन, किसी को उसकी मर्जी के खिलाफ छूने की सजा पांच साल है तो फब्तियां कसने की सजा एक साल। इसी तरह अब पोर्नग्राफी दिखाने को भी अपराध बना दिया गया है और उसके लिए एक साल की सजा का प्रावधान किया गया है।
इन बदलावों के अलावा आईपीसी की धारा 370 में भी बदलाव किया गया है और मानव तस्करी की परिभाषा को भी नये सिरे से लिखा गया है। हालांकि इस धारा में उपबंध 370 ए जरूर जोड़ा गया है लेकिन सजा के प्रावधान में कोई बदलाव नहीं किया गया है। हां, मानव तस्करी में शामिल सभी लोगों को अब दोषी माना जाएगा भले ही वह एजेन्ट हो, ट्रांसपोर्टर हो कि खुद तस्कर। बलात्कार को परिभाषित करने वाली आईपीसी की धारा 375 और 376 में भी बदलाव किये गये हैं। आईपीसी की धारा 375 में पुरुष द्वारा महिला के साथ जबर्दस्ती संभोग के अलावा अन्य दूसरी सेक्सुअल गतिविधियों के अपराध को परिभाषित किया गया है। इसमें मुख्य रूप से स्त्री के निजी अंगों को छूने और उसे संभोग के लिए उकसाने तथा मुख मैथुन व गुदा मैथुन को अपराध मानकर उसके लिए न्यूनतम सात साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा निर्धारित की गई है। इसी धारा में सहमति से संभोग की उम्र 18 साल रखी गई है, जो पूर्व में 16 साल कही गई थी। इसी तरह धारा 376 में बदलाव करके बलात्कार के दौरान महिला के जननांगों या शरीर को क्षति पहुंचाने को भी जोड़ दिया गया है। ऐसी अवस्था में बलात्कार को जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा और दोषी व्यक्ति को न्यूनतम बीस साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा अब 7 साल से बढ़ाकर 20 साल कर दी गई है। गैंगरेप में शामिल लोगों के लिए अब न्यूनतम बीस साल और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। गंभीरतम मामलों में फांसी की सजा भी सुनाई जाएगी।
दिल्ली ब्यूरो