सहमति पर राजनीति
19-Mar-2013 10:11 AM 1234808

केंद्र सरकार एक सहमी हुई सहमतिÓ को अमली जामा पहनाने के लिए कानून बनाने की हठ कर बैठी है। दिल्ली सहित देश के अन्य भागों से मिल रहे जघन्य, वीभत्स और दानवीय बलात्कार प्रकरणों के बाद देश यह आशा लगाए बैठा था कि इन गंभीर अपराधों में लिप्त किशोर अपराधियों को सख्त सजा देने के लिए सरकार बाल अपराधी की उम्र घटाकर 16 वर्ष करेगी ताकि इस कानून का लाभ उठाने वाले सजा में छूट के बाद समाज के बीच फिर से आतंक पैदा करने न आ पाए। लेकिन हुआ उल्टा ही। सरकार ने आनन-फानन में सहमति से यौन संबंध बनाने की वैध उम्र 18 से घटाकर 16 करने की पहल की है। सरकार को इतनी जल्दबाजी है कि उसने कैबिनेट में 5 मिनट के भीतर इस मामले पर सहमति प्राप्त कर ली और अब संसद में भी इस पर बहस की जाएगी। दुनिया भर में इस बात पर वाद-विवाद चल रहा है कि यौन संबंधों के मामलों में किशोरों को किस सीमा तक छूट दी जानी चाहिए। शारीरिक विज्ञान के जानकारों से लेकर समाज शास्त्रियों तक यह निष्कर्ष प्रस्तुत कर चुके हैं कि कम उम्र के यौन संबंध दर्दनाक बीमारियों के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक टूटन जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं। आगे बढऩे, कैरियर बनाने में भी कम उम्र का सेक्स बाधक है। दूसरी तरफ भारत जैसे देशों में स्वैच्छिक यौन संबंधों की आयु 16 वर्ष करने से बाल विवाह की बाढ़ आ जाने का खतरा भी है। क्योंकि यह कानून बनने के बाद बाल विवाह कानून को भी न्यायालय में चुनौती देने का रास्ता खुलेगा। इसीलिए पृथक दृष्टया यह लगता है कि सरकार की यह जल्दबाजी राजनीति प्रेरित है। 16 वर्ष की आयु में मतदान नहीं किया जा सकता। देश में ज्यादातर सरकारी, गैर सरकारी संस्थाओं में नौकरी नहीं मिलती है।  हायर सेकेंड्री की परीक्षा भी बच्चा 18 वर्ष में पास कर पाता है। क्या वह भी 16 वर्ष के पहले ही पास कर लेगा, इसका मतलब यह हुआ कि बच्चा 2 वर्ष की उम्र से ही स्कूल जाने लगेगा। यानी कि सब कुछ बदल जाएगा। अब वह गाड़ी चलाने से लेकर सब चीजें 15 साल की उम्र से ही हासिल कर लेगा।  सिर्फ यौन संबंधों को वैधता प्रदान करने के लिए कानून का प्रस्ताव कहां तक उचित है। अभी तक बाल वेश्यावृत्ति पर रोक के लिए 18 वर्ष में स्वैच्छिक यौन संबंध बनाने वाला कानून कहीं न कहीं प्रभावी था किंतु अब इसका भय भी समाप्त होने जा रहा है। सबसे प्रमुख बात तो यह है कि भारत जैसे परंपरावादी देश में जहां भी परिवार और समाज का आश्रय बच्चों को बड़े होने तक मिलता है वहां इस तरह के स्वैच्छिक यौनाचार को बढ़ावा कैसे दिया जा सकता है। मध्यप्रदेश के एक मंत्री ने तो इस बारे में कहा कि इटालियन संस्कृति भारत में कैसे लागू हो सकती है। इससे तो सामाजिक अराजकता ही फैलेगी। यह कानून लाने के बजाए पोर्नोग्राफी से लेकर तमाम माध्यमों के द्वारा फैल रही अश्लीलता को रोकने का कानून लाया जाता तो ज्यादा बेहतर रहता। क्योंकि अश्लीलता के प्रसार के कारण ही आज बलात्कारों की वीभत्स घटनाएं दिन-प्रतिदिन सुनने को मिल रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि सरकार महिलाओं के प्रति अपराध रोकने के लिए कोई प्रभावी पहल कर दिखाए अन्यथा इस तरह के कानून देश की तरुणाई को भटका सकते हैं।

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