हृदय की पुकार
05-May-2015 03:11 PM 1236030

 

सुबह पांच बजे का समय। वह सिर झुकाए सेंट्रल जेल की काल कोठरी के आगे बैठा था। कोई पैंतीस-छतीस साल का लंबी कद-काठी का गोरा-चिट्टा युवक। उसके उदास चेहरे पर मौत की छाया तैरती स्पष्ट दिखाई दे रही थी। बीस-पच्चीस मिनट बाद उसे वहाँ फाँसी दी जाने वाली थी। बतौर मजिस्ट्रेट फाँसी देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था।
भाई साहब माफ करना। इस वक्त आपसे कोई सवाल करना मुनासिब तो नहीं है, फिर भी यदि बुरा न मानें तो क्या आप बतलाएँगे कि आपके खिलाफ जो फाँसी का फैसला हुआ वह सही है या नहीं?ÓÓ झिझकते हुए मैंने उससे पूछा।
रब करदा है सो ठीक ही करदा है।ÓÓ उसने कुछ क्षण बाद एक लंबी आह भर आकाश की ओर देखते हुए कहा।
यानी कि सुपारी लेकर दो आदमियों की हत्या करने का आरोप आप पर सही लगा था?ÓÓ मैंने उससे खुलासा जवाब की अपेक्षा की।
की करना है, साबजी, कहा न, रब करदा है सो ठीक ही करदा है।ÓÓ उसने मुझ पर एक उदास दार्शनिक दृष्टि डालते हुए वही बात दोहराई।
मेरी उत्सुकता अभी भी शांत नहीं हुई थी।
रब वाली आपकी बात तो सही है। फिर भी नीचे सेशन कोर्ट से राष्ट्रपति तक जो आपके खिलाफ फैसला हुआ है, वह तो सही है न।ÓÓ फिर भी मैं जिद कर बैठा।
फैसले की बात छोड़ो साब। वह तो बिलकुल गलत हुआ है। मैंने उन बंदों को नहीं मारा। न उनके लिए कोई सुपारी ली। हाँ वे बन्दे हमारी आपसी गैंगवार की क्रास फायरिंग में जरूर मारे गए थे। लेकिन मेरे दुश्मनों ने मेरे खिलाफ झूठी गवाही देकर मुझे फँसा दिया।ÓÓ अचानक वह झल्ला उठा। लेकिन उसके इस खुलासे से हम सभी स्तब्ध थे।
फिर आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि रब करदा है सो ठीक ही करदा है।ÓÓ अब मुझसे यह पूछे बिना नहीं रहा गया।
इससे पहले मैंने सुपारी लेकर चार कत्ल किए थे और उन सब मुकदमों में बरी हो गया था।ÓÓ उसने बेझिझक स्वीकार किया।

  • मुरलीधर वैष्णव

महँगाई

बीयर-बार के एक कैबिन की चर्चा- पहला यार महँगाई इतनी बढ़ गई है कि घर चलाना मुश्किल हो गया है आजकल। मैंने आज वाइफ को बोल दिया है कि दूध आधा कर दो।ÓÓ
दूसरा तू ठीक कह रहा है यार! मैंने मीठे तेल में कटौती कर दी है, फिर भी हमारे यहाँ.. किराने वाले का बिल पहले से भी ज्यादा आ रहा है। मैं तो परेशान हूँ इस महँगाई से।ÓÓ
तीसरा महँगाई ने तो सच में नाक में दम कर दिया है यार! आज ही बीवी ने बच्चों के लिए कपड़े लाने को कहा तो मैंने डपट दिया कि अभी जो हैं उन्हीं से काम चलाओ।ÓÓ
चौथा पहले ही वेतन में पूरा नहीं पड़ता। ऊपर से बीवी तो सामान की रोज ऐसे लिस्ट पकड़ा देती है, जैसे रुपए झाड़ पर लग रहा हो। इन औरतों को तो भगवान् जाने कब अक्ल आएगी!ÓÓ
बेयरा साहब बिल।ÓÓ
पहला कितने का है रे।ÓÓ
बेयरा पाँच सौ रुपए का साहब।ÓÓ
चारों की आवाज मैं दूँगा,मैं दूँगा।ÓÓ से बीयर बार गूँजने लगा।

  • सुरेश शर्मा

शब्दों से परे

शब्दों से परे-परे
मन के घन भरे-भरे
वर्षा की भूमिका कब से तैयार है
हर मौसम बूंद का संचित विस्तार है
उत्सुक ॠतुराजों की चिंता अब कौन करे
पीड़ा अनुभूति है वह कोई व्यक्ति नहीं
दुख है वर्णनातीत संभव अभिव्यक्ति नहीं
बादल युग आया है जंगल हैं हरे-हरे
मन का तो सरोकार है केवल याद से
पहुँचते हैं द्वार-द्वार कितने ही हादसे
भरी-भरी आँखों में सपने हैं डरे-डरे

  • वीरेंद्र मिश्र

 

विगत

वह एक वीरान सड़क थी
उसमें विगत की हँसी के कुछ पद-चिन्ह थे
वह निकली थी घर से
गुम हो जाने के लिए
उसके पास एक झोला था
जिसमें एक ख़ुदकुशी किया हुआ समंदर था
वह उसे बहुत आत्मीय था
वह दर्द को सम्हाल कर रख सकती थी
और रोयेंदार घास की तरह बिछा कर अपनी जि़न्दगी को मुलायम कर लेती थी
उसने चुनी थी कसक
हालांकि प्रेम उसे उपलब्ध था क्योंकि वह सुन्दर थी
लेकिन उसने चुनी थी कसक और प्रतीक्षा
ताकि वह ख़ुद से प्रेम कर सके
और चुना एक अजनबी शहर
जहाँ सब लोग निर्वासित कर दिए गए थे
और पेड़ों का मेला लगा था
और यहाँ वह कुछ दिन सुकून से जी सकती थी
यहाँ उसे कोई नहीं जानता
कोई यह भी नहीं जानता कि सीजोफ्रेनिक है वह
और उसके साथ क्या हुआ था
जब उसका बच्चा रोता है तो पता है उसे
कि उसे दूध पिलाना है ।

  • लीना मल्होत्रा
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