21-Apr-2015 04:52 AM
1235262

मेरा नन्हा बेटा स्कूल से घर आकर रोज से कुछ ज्यादा ही खुश था। पता चला जनाब की इस खुशी के पीछे कारण था स्कूल मैं उसके दोस्त का जन्मदिन और जन्मदिन पर मिली एक खास टॉफी। टॉफी को देख कर 25 साल पहले की यादें तरोताजा हो गई।
एक बार जब मैं दादाजी के साथ घर का सामान लेने गई थी तब टीवी में पहली बार मैंने इस टॉफी का विज्ञापन देखा था। मैंने जिद कर दादाजी से वह टॉफी ली थी। तब से वे जब भी सामान लेने जाते मेरे लिए वही टॉफी जरूर ले कर आते।
जैसे ही वे घर पहुंच जाते, बाहर से मेरा नाम पुकारते- शिखा, देखो मैं तुम्हारी मनपसंद टॉफी लाया हूं। उनके चेहरे पर उतनी ही खुशी रहती थी जितनी आज मेरे बेटे के चेहरे पर टॉफी को लेकर है।
मैं जैसे ही उनके पास आती वे मेरे आगे दोनों हाथों की मु_ी बंद कर कहते- अच्छा चलो बताओ मेरी कौन-सी मु_ी में तुम्हारी मनपसंद टॉफी हैं? और दादाजी व मेरा यह खेल चलता रहता जब तक मैं सही जवाब नहीं बता देती। फिर थैंक्यू दादाजीÓ कह कर मैं खुशी से चली जाती। उनकी हंसी से समझ में आ जाता था कि उन्हें इस थैंक्यू का ही इंतजार था।
चीजें तो वही रह जाती हैं लेकिन उनसे जुड़ी यादें जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाती हैं। मैं इन्हीं मीठी यादों मैं खोई हुई थी कि मेरे बेटे ने दोनों हाथों की मु_ी बंद कर मेरे सामने हाथ बढ़ाए और कहा मम्मा बताओ मेरी कौन-सी मु_ी में टॉफी है? मेरी आंखें मधुर यादों से नम हो गई।
भीतर का दु:ख
उसका दोस्त गुजर गया था। वैसे तो उसने जिंदगी में कइयों से दोस्ती की थी, पर अधिकतर से वह दोस्ती का निर्वाह नहीं कर पाया था। मुँह पर सच्ची बात कह देने की आदत ने उसे दोस्तों से दूर कर दिया था। उससे तो कई रिश्तेदार भी मुँह मोड़ गए थे। एक यही दोस्त रह गया था। आज इसकी मौत की खबर सुन कर तो उसके पाँवों के नीचे से जैसे जमीन ही खिसक गई थी।
वह बहुत ही भरे मन से पत्नी सहित दोस्त के घर पहुँचा था। पत्नी औरतों में बैठी मृतक दोस्त की पत्नी के गले लग कर रो रही थी। वह मर्दों में जा बैठा था। वहाँ दोस्त के ताऊ-चाचे, उनके बेटे व बाहर से आए लोग बैठे थे। वह सिर झुकाए बैठा आँसू बहाता रहा, किसके गले लगकर रोता? वहाँ बैठे लोगों की बातें सुन-सुनकर वह हैरान होता रहा। सब कारोबार की बातें कर रहे थे।
पिछले साल की बात है, इस दोस्त के पिता जी का देहांत हो गया था। तब वह दोस्त के गले लग कर बहुत देर तक रोया था। वहाँ बैठे लोगों खुसुर-फुसुर शुरू हो गई थी। यह कौन है? इसे हमसे ज्यादा दुख है क्या! किसी ने अपना दुख दिखाने के लिए बहुत ऊँची आवाज भी निकाली थी। दोस्त की माँ तो बहुत पहले ही मर चुकी थी।
दाह-संस्कार के पश्चात वह पत्नी के साथ घर लौट आया। मन भरा हुआ था। शाम को पत्नी जब भोजन के लिए पूछने आई तो मृतक दोस्त की बातें छिड़ गईं। मन को फोड़ा फिस पड़ा। उसने पत्नी के गले लग कर ऊँची चीख मारी, हाय दोस्त! तू मुझे अकेला छोड़ गयाÓ!
पत्नी भी सिसकने लगी। कितनी ही देर तक वे एक-दूसरे के गले लग कर रोते रहे।
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ
आँखों में सशंक जिज्ञासा
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
सबमें अपनेपन की माया
अपने पन में जीवन आया
चमकेगा मेरा कल..
संयोग कहे या कर्मों का फल।
रहा विजेता हुआ सफल।
पहचान अनोखी बन चुकी है।
चमकेगा अब मेरा कल।
अभिमान नहीं स्वाभिमानी हूं।
करता नहीं हूं उथल-पुथल।
आनंद संग मैं उत्सव करता।
लोगों से मिलता है बल।