04-Mar-2015 12:27 PM
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वाइन फ्लू सबसे पहले 1998 में एक संक्रमण के रूप में सामने आया था। ये पहला समय था जब सुअरों के बीच में रहने वाले इंसानों के भीतर

इस वायरस ने हमला किया। हालांकि इस वायरस से उतने ज्यादा लोगों की मौत की खबरें सामने नहीं आई थीं। पिछले दशकों में स्वाइन फ्लू के कम मामलों के सामने आने के पीछे बड़ा कारण अंडर रिपोर्टिंग रहा है। हाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि राजधानी दिल्ली में स्वाइन फ्लू के जरा से लक्षण सामने आने पर भी आम लोग अपनी जांच करा रहे हैं। समय पर जांच हो जाने के कारण सही समय पर इलाज भी शुरू हो रहा है। यही कारण है कि इतने ज्यादा मामले बढऩे के बावजूद मृत्यु दर कम है। लेकिन इसके उलट इस साल राजस्थान (1631 मामले/500 मौत), गुजरात (1233 मामले/560 मौत), तेलंगाना (969 मामले/45 मौत), महाराष्ट्र (352 मामले/95 मौत) और मध्यप्रदेश में (192 मामले/70 मौत) के मामले सामने आए हैं। लेकिन अगर इस साल के कुल स्वाइन फ्लू के संक्रमित और मार गए लोगों की बात करें, तो 2009 और 2010 में हुए मामलों से कोई तुलना नहीं है। मई-दिसंबर, 2009 में स्वाइन फ्लू से लगभग 27236 लोग प्रभावित हुए थे। इनमें से 981 लोगों की मौत भी हुई। इसी तरह 2010 में 20604 लोग संक्रमित हुए और 1763 लोगों ने दम तोड़ा। इलाज की बात करें तो 2009 में बाजार में आई टेमीफ्लू ही सबसे कारगर दवा साबित हो रही है। भले गुजरात और राजस्थान में दवाओं की कमी की बात लगातार खबरों में आती रही है। लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारों की माने तो ये ही दो ऐसे राज्य हैं, जो न सिर्फ अपने स्थानीय मरीजों तक दवा पहुंचा रहे हैं, बल्कि अन्य राज्यों को भी दवाई मुहैया करा रहे हैं। अब चुनौती इस बात की है कि क्या सरकारी मशीनरी स्वाइन फ्लू से लडऩे में नाकाम हो रही है या आम जनता के बीच जागरूकता की भारी कमी है। अखबारों और टीवी में आ रही खबरों से परे बहुत ही कम लोग जानते हैं कि स्वाइन फ्लू के लक्षण क्या हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वाइन फ्लू को पहचानने के कुछ बड़े ही आसान तरीके हैं। पहला, इसे ए-श्रेणी कहते है- अगर किसी व्यक्ति को जुकाम हो रहा हो, नाक बह रही हो, सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, गले से ऊपर दर्द और हल्का बुखार हो तो एक बार डॉक्टरी जांच जरूर करा लेना चाहिए। बी-श्रेणी में ऐसे मरीज आते हैं जिनकी इम्युनिटी बहुत कम होती है और दर्द गले से छाती तक फैली हो और सांस लेने में ज्यादा तकलीफ हो रही हो। तीसरे यानी सी श्रेणी में ऐसे लोग आते हैं, जो डायबटीज के मरीज हों या फिर 50 साल से ज्यादा उम्र के हों या एचआईवी/एड्स के मरीज हों। डॉक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि पहली श्रेणी का स्वाइन फ्लू आम मौसमी फ्लू जैसा ही है। सही खान-पान और आराम करने से अपने आप चला जाता है। दूसरी श्रेणी के लोगों के लिए किसी भी तरह के फ्लू को गंभीरता से लेने की जरूरत होती है और ऐसे लक्षण पाए जाने पर तुरंत डॉक्टरी सलाह लेना जरूरी है। इसके अलावा आखिरी श्रेणी के लोग वो हैं जिन्हें सबसे ज्यादा स्वाइन फ्लू से खतरा हो सकता है। सी श्रेणी के लेागों को हमेशा डॉक्टरी सलाह होती है कि ऐसे किसी भी लक्षण के दिखाई देने पर तुरंत अस्पताल जाएं। इन सबके बावजूद ज्यादातर फैमिली डॉक्टर सीधी सलाह देते हैं कि स्वाइन फ्लू के संक्रमण के समय भीड़भाड़ वाले इलाके जैसे बाजार, मेला, शॅपिंग मॉल्स, सिनेमा हॉल जैसी जगहों पर जाने से बचें। एक मामूली और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कुछ भी खाने से पहले साबुन से हाथ जरूर धोना चाहिए। सभी राज्य सरकारों ने स्वाइन फ्लू के लक्षण पाए जाने पर मुफ्त जांच की सुविधा सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में मुहैया कराई है। इसके अलावा संदेह होने पर भी इन स्वास्थ्य केन्द्रों में जांच के लिए जाया जा सकता है।
-प्रदीप सुरीन