04-Feb-2015 03:21 PM
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मध्यप्रदेश की सरकार बाजार से 1500 करोड़ रुपए का कर्ज उठाने वाली है। इससे पहले भी कर्ज लिया जा चुका है और कर्ज की राशि करीब 10 हजार करोड़ पहुंचने वाली है। यह वही सरकार है जो 2013 में विधानसभा चुनाव से पहले लगभग 8 हजार करोड़ रुपए के सरप्लस में थी। फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि खजाना खाली करना पड़ा? चुनाव के बाद लगातार विकास कार्य किया गया हो या एक वर्ष के भीतर ही कायापलट कर दिया गया हो, ऐसा तो कहीं नजर नहीं आता। लेकिन इसके बाद भी सरकार का दिवालिया होना कई सवाल खड़े करता है, वह भी ऐसे समय में जब सरकार ने आमदनी के कई तरीके निकाल लिए हैं। अब शराब की दुकानों के ठेके की नीलामी होगी, जो ज्यादा बोली लगाएगा उसे ही ठेका मिलेगा। इसके साथ ही सरकार ने पेट्रोल, डीजल पर वैट पहले ही बढ़ा रखा है। पड़ोसी राज्यों के मुकाबले मध्यप्रदेश में करारोपण कुछ ज्यादा ही है। पेट्रोल, डीजल के अलावा भी ऐसी कई वस्तुएं हैं, जिन पर कर बाकी राज्यों से अधिक है। दूसरी तरफ किसानों की सब्सिडी का भार दिनों-दिन हल्का करने की कोशिश की जा रही है। चावल और गेहूं पर तो बोनस भी खत्म हो चुका है। ऐसी स्थिति में सरकार का पैसा कहां गया? यदि यह पैसा विकास योजनाओं में खर्च नहीं हुआ है, तो इसका सीधा अर्थ है कि पैसा सरकारी खर्च में ही खत्म हो रहा है। सरकारी खर्चे को रोकने के लिए तमाम उपायों की घोषणा की जाती है, लेकिन यह खर्च बढ़ते ही रहते हैं। जब पैसा उगाने की बात आती है तो आम आदमी की जेब पर ही डाका डाला जाता है। सरकार धन कमाने के साथ-साथ खर्च रोकने के प्रभावी उपाय क्यों नहीं कर पाती? यह एक बड़ा प्रश्न है। आर्थिक मोर्चे पर सरकार की नाकामी का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि पिछले 10 वर्षों में पहली बार सरकार का कर्ज इतना बढ़ गया है। 6 हजार 150 करोड़ रुपए सरकार ले चुकी है। इससे पहले सरकार सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत से 2 प्रतिशत तक ही कर्ज उठाया करती थी, जो अब 3 प्रतिशत तक जा सकता है। इसका मतलब यह है कि कर्ज की राशि 13 हजार करोड़ तक पहुंचेगी, जो पहले के मुकाबले दोगुनी है। अब 5 करोड़ से अधिक की राशि के भुगतान पर रोक लगा दी गई है। जाहिर है इसका प्रभाव विकास कार्यों पर पड़ेगा। विकास कार्य ठप होने से राज्य की विकास दर पर भी विपरीत असर पड़ेगा। मुख्यमंत्री ने कुछ समय पूर्व ही पुणे में एक भाषण के दौरान मध्यप्रदेश की विकास दर का जमकर बखान किया था लेकिन जब सरकार के पास पैसा नहीं होगा, तो विकास के आंकड़े कैसे समृद्ध होंगे? अभी भी सरकार ने अनुपयोगी खर्चों को रोकने के लिए कोई प्रभावी उपाय नहीं किए हैं। इसके लिए कार्ययोजना बनाने की जरूरत है। नहीं तो सड़कें बनाने और आधारभूत ढांचे से संबंधित काम ठप पड़ जाने के कारण सरकार का सुशासन का सपना अधूरा ही रह जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह आम जनता को राहत पहुंचाते हुए अपना खजाना भी भरा रखे, तभी वह पूरी ताकत से काम कर पाएगी। खाली खजाने से जनता के सपनों को पूरा नहीं किया जा सकता और ना ही शराब की दुकानों की नीलामी जैसे फौरी उपायों से कुछ हासिल होने वाला है।