17-Jan-2015 10:45 AM
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सुबह की उस घटना के बाद शिल्पा का मन बहुत उदास था। किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। उसका मन बार-बार आशंकित हो उठता। आखिर मेरी परवरिश में ऐसी कौन सी कमी रह गई जो

आज मेरे बेटे ने झूठ बोला! झूठ बड़ा या छोटा नहीं होता, झूठ झूठ होता है बस। मैंने मेरे बच्चों को बचपन से ही यही सीख दी है कि चाहे कुछ भी हो जाए झूठ नहीं बोलना चाहिए। फिर आज मेरे बेटे ने झूठ क्यों बोला? आज एक बार झूठ बोला, कल को दुबारा और फिरÓ शिल्पा बेसब्री से शाम को बेटे का स्कूल से आने का इंतजार करने लगी ताकि उससे पूछ सके! सुबह सबके सामने पूछना उसे उचित नहीं लगा।
शाम को बेटे के स्कूल से आने पर बेटा स्कूल की बातें बताने लगा। शिल्पा के कोई प्रतिक्रिया न देने पर उसने पूछा मम्मी, क्या बात है? आप नाराज हो?Ó आज दादाजी का श्राद्ध है। तू ने दादी माँ से झूठ क्यों बोला कि कौए ने रोटी खा ली? जबकि हमारे बहुत इंतजार करने पर भी, एक भी कौआ छत पर आया ही नहीं थाÓ ओफ हो मम्मी, आप ही कहती हैं न कि किसी और के भले के लिए झूठ बोला जाए तो वो झूठ नहीं होता। आजकल शहरों में कौओं के दर्शन ही कहां होते है जो वे श्राद्धों में खाना खाने आए? ये बात मैं दादी माँ को नहीं समझा सकता था। हर बार की तरह वे आप ही को दोषी ठहराती! तू ने सर पर पल्लू डालकर खाना नहीं बनाया, दादाजी को दही-बड़े पसंद थे वो तुमने नहीं बनाये, तुमने खाना मनसे नहीं बनाया और भी न जाने क्या क्या!! अब शहरों में कौए ही नहीं है इसमें आपकी क्या गलती? आपको दादी माँ की बातें सुनना न पड़े इसलिएÓ प्रेमातिरेक में शिल्पा की आँखें भर आई। उसे अपनी परवरिश पर नाज हो उठा।
सु बह की उस घटना के बाद शिल्पा का मन बहुत उदास था। किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था। उसका मन बार-बार आशंकित हो उठता। आखिर मेरी परवरिश में ऐसी कौन सी कमी रह गई जो आज मेरे बेटे ने झूठ बोला! झूठ बड़ा या छोटा नहीं होता, झूठ झूठ होता है बस। मैंने मेरे बच्चों को बचपन से ही यही सीख दी है कि चाहे कुछ भी हो जाए झूठ नहीं बोलना चाहिए। फिर आज मेरे बेटे ने झूठ क्यों बोला? आज एक बार झूठ बोला, कल को दुबारा और फिरÓ शिल्पा बेसब्री से शाम को बेटे का स्कूल से आने का इंतजार करने लगी ताकि उससे पूछ सके! सुबह सबके सामने पूछना उसे उचित नहीं लगा।
शाम को बेटे के स्कूल से आने पर बेटा स्कूल की बातें बताने लगा। शिल्पा के कोई प्रतिक्रिया न देने पर उसने पूछा मम्मी, क्या बात है? आप नाराज हो?Ó आज दादाजी का श्राद्ध है। तू ने दादी माँ से झूठ क्यों बोला कि कौए ने रोटी खा ली? जबकि हमारे बहुत इंतजार करने पर भी, एक भी कौआ छत पर आया ही नहीं थाÓ ओफ हो मम्मी, आप ही कहती हैं न कि किसी और के भले के लिए झूठ बोला जाए तो वो झूठ नहीं होता। आजकल शहरों में कौओं के दर्शन ही कहां होते है जो वे श्राद्धों में खाना खाने आए? ये बात मैं दादी माँ को नहीं समझा सकता था। हर बार की तरह वे आप ही को दोषी ठहराती! तू ने सर पर पल्लू डालकर खाना नहीं बनाया, दादाजी को दही-बड़े पसंद थे वो तुमने नहीं बनाये, तुमने खाना मनसे नहीं बनाया और भी न जाने क्या क्या!! अब शहरों में कौए ही नहीं है इसमें आपकी क्या गलती? आपको दादी माँ की बातें सुनना न पड़े इसलिएÓ प्रेमातिरेक में शिल्पा की आँखें भर आई। उसे अपनी परवरिश पर नाज हो उठा।
बच्चे को क्या मालूम
लिबलिबी दबी-पिस्तौल से झुंझलाकर गोली बाहर निकली। खिड़की में से बाहर झांकने वाला आदमी उसी जगह दोहरा हो गया। लिबलिबी थोड़ी देर के बाद फिर दबी-दूसरी गोली भिनभिनाती हुई बाहर निकली। सड़क पर माशकी की मश्क फटी, वह औंधे मुंह गिरा और उसका लहू मश्क के पानी में मिलकर बहने लगा। लिबलिबी तीसरी बार दबी-निशाना चूक गया, गोली एक गीली दीवार में जज्ब हो गई। चौथी गोली एक बूढ़ी औरत की पीठ में लगी, वह चीख भी न सकी और वहीं ढेर हो गई। पाचवीं और छठी गोली बेकार गई, कोई हलाक हुआ न जख्मी। गोलियां चलाने वाला भिन्ना गया। दफ्अतन सड़क पर एक छोटा-सा बच्चा दौड़ता हुआ दिखाई दिया। गोलियां चलाने वाले ने पिस्तौल का मुंह उसकी तरफ मोड़ा। उसके साथी ने कहा, यह क्या करते हो? गोलियां चलाने वाले ने पूछा- क्यों? गोलियां तो खत्म हो चुकी हैं! तुम खामोश रहो.. इतने-से बच्चे को क्या मालूम?
ज्योति