गीता को राष्ट्रीय धार्मिक ग्रंथ बनाने पर विवाद
20-Dec-2014 03:53 PM 1237802

हिंदुओं के धर्मग्रंथ भगवद् गीता में लिखा है कि कर्म करो किंतु फल की आकांक्षा न करो। अर्थात जो भी करो वह अकर्ता भाव से करो। स्वाभाविक है कि व्यक्ति उसी कर्म के प्रति निश्चिंत और निरपेक्ष रह सकता है जो सत्कर्मों की श्रेणी में आता हो। किंतु भाजपा नीत केंद्र सरकार फल पाने की आकांक्षा से ही भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित कराने की मुहिम पर काम कर रही है। नजर है करोड़ों हिंदू वोटों पर।

भाजपा का विश्वास है कि भगवद् गीता को राष्ट्रीय गं्रथ घोषित करवाकर वह हिंदुओं में अपने वोट बैंक को और पुख्ता कर लेगी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, जो नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं के चलते सुर्खियों से ओझल हो चुकी हैं अचानक भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की पैरोकार बनकर फिर से मीडिया की नजरों में आ गई हैं। यह पहली दफा नहीं है, अतीत में भी कई बार इस तरह की मांग उठती रही है और भाजपा के भीतर से ही विरोध के स्वर भी सुनाई पड़ते हंै। सुषमा स्वराज की इस मुहिम पर सबसे पहले पलीता लगाया सुब्रह्मण्यम स्वामी ने, जिन्होंने कहा कि गीता को राष्ट्रीय गं्रथ घोषित करने से भारत के संविधान का उल्लंघन होगा और संविधान में लिखे धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाना पड़ेगा। कांगे्रस ने भी अपना विरोध प्रकट किया।

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि देश वासियों का राष्ट्रीय गं्रथ संविधान है। ओबामा के हाथ में गीता देने से वह राष्ट्रीय ग्रंथ नहीं हो जाता है, खुद ओबामा भी इसे पसंद नहीं करेंगे। उधर योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि भगवद् गीता को राष्ट्र और धर्म के दायरे से बाहर निकलकर देखना चाहिए। बाबा रामदेव की मानें तो उनके कथन का यही अर्थ निकलता है कि भगवद् गीता राष्ट्रीय नहीं बल्कि वैश्विक ग्रंथ है, लेकिन सवाल यह है कि वैश्विक ग्रंथ के रूप में भगवद् गीता को मान्यता कैसे दिलाई जाएगी और यदि मान्यता मिल भी गई तो हिंदुओं के वोट कैसे मिलेंगे? इसीलिए भारत में हिंदूवादी संगठनों को खुश करने के लिए सुषमा स्वराज ने यह नया मुद्दा उठाया है।  जाहिर है वे एक तीर से दो शिकार करना चाहती हैं। इससे हिंदू संगठनों में उनकी स्वीकार्यता भी बढ़ेगी और नरेंद्र मोदी पर भी दबाव आएगा। यदि मोदी इसका विरोध करते हैं तो बात उलझ जाएगी। देखना है मोदी का रुख इस विषय में क्या रहता है।
लेकिन सर्वाधिक दुविधा में मुलायम सिंह यादव फंस सकते हैं, क्योंकि गीता का हर एक श्लोक एक यदुवंशी भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकला है और इसीलिए भगवद् गीता की पैरवी करके भाजपा ने एक तरह से मुलायम सिंह यादव को मुश्किल में डाल दिया है। यहां विचारणीय तथ्य यह है कि भाजपा ने जानबूझकर ज्ञानवापी मस्जिद का मसला ठंडे बस्ते में डाल रखा है, क्योंकि उसकी नजर मुस्लिम वोटों पर भी है। जानकार मानते हैं कि भगवद् गीता का विवाद अंतत: भाजपा को यूपी में फायदा ही पहुंचाएगा।
सवाल दूसरे भी हैं। कोई धर्मग्रंथ राष्ट्रीय गं्रथ तभी बन सकता है, जब देश धर्म निरपेक्ष न होकर किसी विशेष धर्म को राजधर्म के रूप में स्वीकार करे। दुनिया में कई इस्लामी तथा कुछ ईसाई देश कहलाते हंै। यह दोनों धर्म अलग-अलग देशों में राजधर्म हैं। कुछ तो धार्मिक कानूनों के अनुसार ही देश चलाते हैं। जैसे ईरान में पत्थर मारकर मौत की सजा देने से लेकर कोड़े मारने तक तथा चार पत्नियां रखने से लेकर मौखिक तलाक तक तमाम कानून इस्लामी हैं, जिन्हें दुनिया के कई हिस्सों में बर्बर भी कहा जाता है।
जहां तक भाजपा का प्रश्न है, भाजपा समान नागरिक संहिता की बात कर रही है, जिसका अर्थ है सभी के लिए एक से कानून। समान नागरिक संहिता धर्म निरपेक्ष देश में ही संभव है। यदि भगवद् गीता को राष्ट्रीय गं्रथ बनाने का प्रयास किया गया, तो भाजपा की इस मुहिम को धक्का पहुंचेगा। इसीलिए भाजपा के भीतर ही एक मत नहीं है। उम्मीद है कि देर-सवेर इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। लेकिन सवाल वही है कि बार-बार इस तरह के मुद्दे क्यों उठाए जाते हैं? भारत में हिंदू बहुलता है, इसलिए स्वाभाविक रूप से यहां की संस्कृति, राजनीति और संविधान पर भी कहीं न कहीं हिंदुत्व की छाप दिखाई देती ही है।
संविधान में सत्य मेव जयते लिखा हुआ है। लेकिन संविधान से लेकर देश के कानूनों और तमाम परंपराओं में हिंदुत्व का समावेश कुछ इस तरह का है कि उससे अन्य धर्मावलंबियों को न तो कोई समस्या है और न ही कोई भय है। पर अब जिस तरह की कोशिशें हो रही हैं, उससे एक नए वातावरण का जन्म हो सकता है, जिसमें अविश्वास और अनिश्चितता हो। दुनिया में हिंदू ही गर्व से कह सकते हैं कि वे पूर्णत: लोकतांत्रिक हैं, क्योंकि कोई हिंदू राष्ट्र इस पृथ्वी पर नहीं है। एक मात्र हिंदू देश नेपाल भी अब धर्म निरपेक्ष है। जबकि इस्लाम और ईसाईयत को मानने वाले कई देश अभी भी धार्मिक ही हैं। भारत अपनी धर्म निरपेक्षता को आगे बढ़ाए उसी में सार है, पीछे मुड़ कर देखना उचित नहीं है। जहां तक भगवद् गीता का प्रश्न है, उसे राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाए अथवा नहीं, इससे उसकी महानता, सारगर्भिता, लोकप्रियता और विराटता पर कोई आंच नहीं आने वाली।

साक्षी महाराज को गोडसे से हमदर्दी

भारतीय जनता पार्टी अपने मंचों पर भले ही महात्मा गांधी का फोटो लगाकर भोली-भाली जनता से वोट मांगती हो किंतु उसके नेताओं के अवचेतन में अभी भी नाथुराम गोडसे जैसे हत्यारों के प्रति सहानुभूति और सम्मान है। सोशल मीडिया पर तो नाथुराम गोडसे को ग्लोरिफाई करने का अभियान चल ही रहा है, लेकिन अब साक्षी महाराज ने खुलकर कह दिया है कि नाथुराम गोडसे राष्ट्रवादी और देशभक्त था और उसने गलती से महात्मा गांधी को मार दिया। साक्षी महाराज के इस कथन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खासा परेशान कर दिया। सद्भावना उपवास से लेकर स्वच्छता अभियान तक हर जगह मोदी महात्मा गांधी का जिक्र करना नहीं भूलते, लेकिन उन्हीं के दल के एक सांसद जब महात्मा गांधी की हत्या को गलती बताते हुए उनके हत्यारे के प्रति सार्वजनिक रूप से सहानुभूति प्रकट करे तो कई सवाल खड़े होते हैं। आने वाले दिनों में सरकार को ऐसे ही कई सवालों से जूझना पड़ेगा, क्योंकि बहुमत से जीतने के बाद मोदी के कई मंत्री और भाजपा के कई सांसद बेलगाम बयानबाजी कर रहे हैं जिससे सरकार परेशान हो चुकी है। साक्षी महाराज ने माफी भले ही मांग ली हो, लेकिन उनके इस कथन ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है।  संसद का वक्त ऐसे ही मसलों पर जाया हो चुका है। आने वाले दिनों में यह परेशानी और बढ़ेगी।

  • सुनील सिंह
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