उसने कितनी सादगी से आजमाया है मुझे उसने कितनी सादगी से आजमाया है मुझेहै मेरा दुश्मन मगर मुन्सिफ बनाया है मुझेमैं भला उस शख्स की मासूमियत को क्या कहूँकहके मुझको इक लुटेरा घर बुलाया है मुझेउसके भोलेपन पर मिट न जाऊँ तो मैं क्या करूँकिस कदर नफरत है मुझसे यह बताया है मुझेमुझको उसकी दुश्मनी पे नाज क्यों न हो कहोहै भरोसा मुझपे जालिम ने जताया है मुझेवो कोई इल्जाम दे देता मुझे तो ठीक थाउसकी चुप ने और भी ज्यादा सताया है मुझे दीप्ति मिश्र