19-Dec-2014 04:55 AM
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दिसंबर के अंत से जनवरी के माह में दिन बड़े होने लगते हैं इसी कारण मौसम बदलता है और इस बदलते मौसम में निमोनिया तथा हृदयाघात का खतरा भी बढ़ता चला जाता है बदलते मौसम में बैक्टीरिया और वायरस को पनपने के लिए अनुकूल तापमान मिल जाता है, जिसके कारण इस तरह के मौसम में लोग अधिक बीमारियों का शिकार होते हैं।
निमोनिया अधिकतर पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों तथा 60 वर्ष की आयु के लोगों को अपनी चपेट में जल्दी लेता है। प्रत्येक वर्ष निमोनिया के कारण दो से तीन प्रतिशत बच्चे मृत्यु का शिकार हो जाते हैं। यह बीमारी सर्दी के मौसम में वायरस अथवा बैक्टीरिया के कारण अधिक फैलती है। निमोनिया से पीडि़त मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है तथा सांस लेते समय छाती से आवाज आती है। पीडि़त व्यक्ति को तेज बुखार तथा खांसी होती है। ऐसे मौसम में लोगों खासकर छोटे बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की अधिक जरूरत होती है। छोटे बच्चे वायरस की चपेट में जल्दी जाते हैं। उन्हें इस मौसम में विशेष देखभाल की जरूरत होती है। निमोनिया के बचाव के लिए संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आएं तथा खांसते समय मुंह पर हाथ अथवा रूमाल अवश्य रखें। इस मौसम में ठंडे पेय पदार्थों के प्रयोग से बचें। छोटे बच्चों के शरीर को सर्दी के मौसम में अच्छी तरह ढककर रखें तथा गर्म कपड़ों का प्रयोग करें।
बढ़ जाती है हृदय व सांस के मरीजों की तकलीफ
गर्म-ठंडा मौसम स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है। बदलते मौसम में कई बीमारियां जकड़ लेती हैं। ऐसे मौसम में एहतिहात बरतने के साथ ही स्वास्थ्य का ख्याल रखना बेहद जरूरी है। जरा सी लापरवाही से इन दिनों हृदय रोगियों व सांस के मरीजों की तकलीफ बढ़ जाती है। चिकित्सक ने लोगों को स्वास्थ्य का ख्याल रखने की सलाह दी है। इन दिनों सांस व हृदय रोगियों की संख्या बढ़ रही है। इसका प्रमुख कारण खान-पान व लाइफ स्टाइल में बदलाव होना है। ज्यादातर लोग इन बीमारियों को हल्के में लेते हैं। सांस व हृदय रोग से ग्रसित मरीज को समय पर इलाज कराना चाहिए। अस्थमा एलर्जी व दमा का रूप का होता है। एलर्जी से ग्रसित मरीज को मौसम परिवर्तन होने, धूल व धुएं में सांस लेने में दिक्कत होती है। यह बीमारी अमूमन लोगों में पैदाइसी पाई जाती है। एलर्जी से पीडि़त मरीज को अगर मौसम परिवर्तन होने पर कोई दिक्कत आती है तो उसे जल्द से जल्द चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। दमा बीड़ी, सिगरेट व तंबाकू के सेवन से होता है। जो कि फेफड़ों पर असर करता है। नशीले पदार्थ का सेवन करने वाले व्यक्ति के फेफड़े कुछ समय बाद कमजोर पड़ जाते और उनमें इंफेक्शन होना शुरू हो जाता है। सांस फूलने लगता है। धूम्रपान ही हार्ट अटैक का कारण बनता है।
शुगर के मरीजों की बढ़ी परेशानी
सांस व हृदय रोगियों के साथ-साथ शूगर के मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। इसका प्रमुख कारण लाइफ-स्टाइल, मीठे व तली हुई खाद्य वस्तु का सेवन करना है। क्योंकि लोग भारी खाने का सेवन करने के बाद एक ही जगह पर बैठे रहते है। इसका शरीर पर बूरा प्रभाव पड़ता है। शूगर से ग्रसित मरीज को लकवा, हृदय घात व गुर्दे खराब होने का डर बना रहता है। अगर किसी व्यक्ति को शूगर की शिकायत हो तो उसे चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए और साल में एक बार शरीर का हेल्थ चैकअप जरूर करवाना चाहिए। मीठी वस्तुओं, घी, चिकनाई व नमक का प्रयोग कम करना चाहिए।