05-Dec-2014 02:59 PM
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महासचिव जेपी नड्डा, राजीव प्रताप रूडी, रामशंकर कठेरिया जैसे महासचिवों तथा मुख्तार अब्बास नकवी और बंगारू दत्तात्रेय जैसे उपाध्यक्षों के केंद्रीय मंत्रीमण्डल में जाने तथा किरण महेश्वरी के राजस्थान में मंत्री बन जाने के बाद भाजपा में आला दर्जे की कई प्रमुख सीटें खाली हो चुकी हैं और इन अहम पदों को भरने के लिए भरपूर लॉबिंग चल रही है।
भाजपा में महिलाओं को 33 प्रतिशत स्थान दिए जाते हैं, इस लिहाज से संगठन में महिलाओं का आना भी तय है। हालांकि जिन लोगोंं के नाम चल रहे हैं, उनमें से ज्यादातर पुरुष ही हैं। ओम माथुर, अरुण सिंह, सुनील बंसल, भूपेन्द्र यादव, शिवप्रकाश, श्रीकांत शर्मा, अनुराग ठाकुर, महेन्द्र नाथ पांडे, विनय सहस्त्रबुद्धे और सोदान सिंह जैसे कुछ नाम उतने चर्चित नहीं हैं, लेकिन इन सब को संगठन में लाकर इन्हें जिम्मेदारी संभालने योग्य बनाया जा रहा है ताकि भविष्य में यह सब योग्य प्रशासक की तरह काम कर सकें। यह बदलाव संघ की रणनीति का एक हिस्सा है, इसकी शुरुआत कृष्णगोपाल को भाजपा में संघ और भाजपा के बीच सेतु की जिम्मेदारी सौंपने के साथ ही हो गई थी।
सुरेश सोनी एक दशक से यह जिम्मेदारी संभाल रहे थे। अब उनकी जगह पहुंचे कृष्णगोपाल ने मनोहर पर्रिकर, बंडारू दत्तात्रेय, हंसराज अहीर, साध्वी निरंजन ज्योति और रामशंकर कठेरिया को मंत्री बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जहां तक जेपी नड्डा का प्रश्न है, वे कभी भाजपा अध्यक्ष के पद के लिए आरएसएस की पहली पसंद थे, लेकिन बाद में अमित शाह मोदी के कारण दमदार बनकर उभरे। अब कृष्ण गोपाल ने संगठन में संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से नड्डा को केंद्रीय मंत्रिमंडल में भेज दिया है। लेकिन शीर्ष स्तर पर ज्यादातर पद पुरुषों के पास हैं। जो महिलाएं संगठन में थीं, वे अब सरकार में हैं। ऐसी स्थिति में महिलाओं का कोटा पूरा करना भी अमित शाह के लिए एक चुनौती है। 2019 के आम चुनाव के लिए अभी से तैयारी में जुटे अमित शाह का पहला लक्ष्य यूपी और बिहार में भाजपा को मजबूत बनाना है। इन दोनों राज्यों के युवा नेतृत्व को आगे लाना ही होगा।
विशेषकर यूपी में यह चुनौती इसलिए भी अधिक है क्योंंकि वहां लोकसभा चुनाव मोदी लहर के चलते जीता गया था, पर विधानसभा चुनाव में काडर की मजबूती मायने रखेगी। बसपा और समाजवादी पार्टी के मजबूत ढांचे के समक्ष भाजपा को चुनौती बनकर खड़ा होना होगा। इसीलिए चंदोली से सांसद महेन्द्रनाथ पांडे और यूपी में पार्टी उपाध्यक्ष रहे विनय सहस्त्रबुद्धे को आगे लाया जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में अमित शाह के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले सुनील बंसल की यूपी में दखलअंदाजी अब बढ़ सकती है। बंसल उत्तरप्रदेश में भाजपा के संगठन महासचिव हैं, युवा हैं और शाह उनकी ऊर्जा का नमूना महाराष्ट्र चुनाव के दौरान देख चुके हैं, जहां उन्होंने दिन-रात मेहनत की थी। बंसल के साथ-साथ पश्चिमी उत्तरप्रदेश में भाजपा की रणनीति संघ के समर्पित कार्यकर्ता शिवप्रकाश ने बनाई थी। हरियाणा में भी वे सफल रहे। इसलिए शिवप्रकाश को संगठन में अहम भूमिका दी जा सकती है। उत्तरप्रदेश में सक्रिय कार्य करने के लिए अन्य राज्यों के युवा नेताओं को भेजने की रणनीति भी भाजपा ने बनाई है, लेकिन इस बार चुनाव से काफी पहले से यह सक्रियता दिखाई देगी। जहां तक बिहार का प्रश्न है, वहां भाजपा के पास राज्य स्तर पर नेताओं का उतना अभाव नहीं है। फिर भी राष्ट्रीय संगठन में कुछ नेताओं को सक्रिय किया जा रहा है, जिनमें से एक नाम भूपेन्द्र यादव का है। सुप्रीम कोर्ट के वकील यादव बिहार में प्रभारी होने के साथ-साथ पार्टी महासचिव भी हैं। शाहनवाज हुसैन को भी फिर से सक्रिय किया जाएगा। एमजे अकबर, फग्गन सिंह कुलस्ते का नाम भी चल रहा है।
राम माधव भी आरएसएस से बीजेपी में आए थे। इन्हें बड़ा रोल मिल सकता है। पहले चर्चा चली थी कि माधव को विदेश नीति से जुड़ी मोदी की प्लानिंग में जगह मिलेगी। हालांकि, पार्टी के फॉरेन सेल के अध्यक्ष के रूप में विजय चौथाईवाले की नियुक्ति कर दी गई। चौथाईवाले के परिवार की चार पीढिय़ों का आरएसएस से नाता रहा है। मनमोहन वैद्य के जमाने में जब गुजरात में आरएसएस के साथ मोदीजी की नहीं बन रही थी तो दोनों के बीच चौथाईवाले ही संपर्क सूत्र हुआ करते थे। छह महीना पहले केंद्र में सरकार बनने पर नौकरशाही की नियुक्ति में माधव का जैसा रुतबा था, अब वैसा नहीं रहा।
हालांकि अब भी जम्मू-कश्मीर की चुनावी रणनीति के लिए माधव को अहम माना जा रहा है। मोदी-सज्जाद लोन मीटिंग में उनका भी योगदान था।
