पीले सोने पर मौसम की मार
07-Oct-2020 12:00 AM 1012

 

भारत की एक बड़ी प्राथमिकता देश की कृषि और किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है। कृषि में भारत काफी हद तक आत्मनिर्भर बन भी चुका है। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसानों ने अपनी मेहनत के बलबूते से भारत को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन अभी भी देश के किसानों की जो स्थिति है, वह चिंताजनक ही है। इसकी वजह यह है कि आज भी यहां की खेती मौसम के भरोसे है। यही कारण है कि जब मौसम अच्छा रहता है तो उत्पादन का रिकार्ड बनता है और जब खराब हो जाता है तो किसान की किस्मत मारी जाती है।

अनाज के रिकार्ड उत्पादन में पांच बार कृषि कर्मण अवार्ड पा चुके मप्र में इस बार पीले सोने यानी सोयाबीन की फसल पर मौसम की मार पड़ी है। प्रदेश में इस बार अनुकूल मौसम को देखते हुए किसानों ने रिकॉर्ड 58.46 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बोवनी की थी। इसके कारण उम्मीद जताई जा रही थी कि गेहूं की तरह इस तिलहन फसल का भी बंपर उत्पादन होगा, लेकिन फसल येलो मोजेक वायरस और बारिश की चपेट में आ गई है। अधिकांश जगह सोयाबीन के पत्ते पीले पड़ गए और पौधे सूख चुके हैं। कई जगह अफलन (फली न लगना) की शिकायतें सामने आ रही हैं। मालवा, निमाड़, महाकौशल सहित अन्य क्षेत्रों में करीब 25 फीसदी तक फसल के प्रभावित होने की आशंका है। नरसिंहपुर में 40, दमोह में 10, सिवनी में पांच फीसदी तक नुकसान की बात सामने आई है।

देश में सर्वाधिक सोयाबीन उत्पादन करने वाले मप्र में इस साल कई जिलों में सोयाबीन फसल को भारी नुकसान हुआ है। पहले कीड़ों ने फसल बर्बाद की तो अब लगातार हो रही बारिश मार रही है। बची फसल किसान समेटना चाहते हैं, लेकिन बारिश के कारण मुश्किल हो रही है। कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में इस बार कुल 141 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से ज्यादा में खरीफ फसलों की बोवनी की गई है। बारिश में लंबा अंतराल और तापमान अधिक होने के कारण सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई है। सरकार ने नुकसान का आंकलन करने के लिए कलेक्टरों को निर्देश दे दिए हैं। वहीं, दूसरी ओर अभी तक किसानों का फसल बीमा नहीं हो पाया है। बीमा के लिए कंपनी तय करने में समय लगने के कारण अब प्रीमियम जमा करने की समयसीमा 17 अगस्त से बढ़ाकर 31 अगस्त कर दी है।

फसल खराब होने की सूचनाओं को देखते हुए कृषि मंत्री कमल पटेल ने गत दिनों भोपाल के पास बैरसिया विधानसभा क्षेत्र के गांव तारा सेवनिया और बगोनिया में निरीक्षण किया। यहां सोयाबीन की 100 फीसदी तक फसल बर्बाद हुई है। सोयाबीन की फलियों में दाने नहीं हैं। पूर्व कृषि संचालक डॉ. जीएस कौशल के अनुसार येलो मोजेक वायरस का असर सोयाबीन में बड़े पैमाने पर नजर आ रहा है। मालवा, निमाड़ और महाकौशल से फसल प्रभावित होने की सूचनाएं आ रही हैं। रतलाम जिला पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष डीपी धाकड़ ने बताया कि पूरे क्षेत्र में सोयाबीन की फसल येलो मोजेक, सफेद कीट सहित अन्य बीमारियों से प्रभावित हुई है। सोयाबीन इतना बढ़ गया कि उसमें फलियां ही नहीं लगीं। मालवा-निमाड़ में सोयाबीन की फसलों में दो तरह के कीट सफेद मक्खी (व्हाइट फ्लाई) और तनाछेदक मक्खी (स्टेम फ्लाई) का प्रकोप हो रहा है। ये दोनों कीट सोयाबीन की पत्तियां और तना दोनों को खोखला कर रहीं हैं। सोयाबीन पकने से पहले ही पत्ते पीले पड़ रहे हैं। इस साल मालवा-निमाड़ में 29.80 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बोवनी हुई है। कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार अधिकांश रकबा इंदौर, धार, उज्जैन, रतलाम, देवास, खंडवा, शाजापुर, नीमच जिले में है। कीट के प्रकोप का आंकलन अभी नहीं हुआ है। किसानों का कहना है कि इंदौर में कुछ इलाकों में 10 से 50 फीसदी तक असर हुआ है। वहीं देवास में करीब 50 फीसदी फसलों पर असर है।

सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन (सोपा) के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक के मुताबिक हमारे त्वरित सर्वेक्षण के अनुसार इंदौर, देवास, उज्जैन, धार, सीहोर, हरदा, शाजापुर, मंदसौर और नीमच में फसल को सबसे ज्यादा 10 फीसदी तक नुकसान हुआ है। शुरुआत में बोई गई फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचा।

कैसे आत्मनिर्भर होगा किसान

देश और प्रदेश की सरकारें किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान में जुटी हुई हैं। लेकिन हर साल जिस तरह किसानों की फसलों का नुकसान हो रहा है, वैसे में किसान आत्मनिर्भर कैसे बन पाएगा? आज भी देश का किसान खुशहाल नहीं है। सरकार खुद मान रही है कि देश के हर किसान पर औसतन सैंतालीस हजार रुपए का कर्ज है। हर किसान पर औसतन बारह हजार रुपए कर्ज साहूकारों का है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि किसानों की बदहाली व्यवस्था की देन है। करीब अट्ठावन फीसदी अन्नदाता कर्जदार हैं। एनएसएसओ के मुताबिक साहूकारों से सबसे ज्यादा 61,032 रुपए प्रति किसान औसत कर्ज आंध्र प्रदेश में है। दूसरे नंबर पर 56,362 रुपए औसत के साथ तेलंगाना है और तीसरे नंबर पर 30,921 रुपए के साथ राजस्थान है। हमारे नीति नियंता ऐसी स्थिति कब पैदा करेंगे कि किसानों को अपनी उपज का अच्छा और पूरा दाम मिले और कर्ज लेने की नौबत ही न आए। इन आंकड़ों को देखने से साफ होता है कि किसानों को स्वावलंबी बनाने के लिए ज्यादा काम नहीं हुआ। नतीजा यह है कि कर्ज किसानों के लिए मर्ज बन रहा है और वे आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था का एक कड़वा सच यह है कि हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा आजीविका के लिए किसानी और उससे जुड़ी गतिविधियों पर निर्भर है। लेकिन कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि और इससे संबंधित गतिविधियों का योगदान लगातार घटता जा रहा है। उदारीकरण के दौर में खेतिहर आबादी की आमदनी अन्य पेशेवर तबकों की तुलना में बहुत ही कम बढ़ी है। यह हकीकत है कि खेती घाटे का सौदा बन गई है। ज्यादातर किसान परिवार जीविका का कोई अन्य विकल्प मौजूद न होने की मजबूरी में ही खेती में लगे हैं।

- विकास दुबे

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