केंद्र और राज्य सरकार से मिले बजट के बावजूद कई विभाग परियोजनाओं को पूरा नहीं कर पा रहे रहे हैं। इस कारण हर साल करोड़ों का बजट लैप्स हो जाता है। ऐसे ही विभागों में पीडब्ल्यूडी सबसे आगे है। विभाग के पास पर्याप्त बजट है, लेकिन सड़कें आधी-अधूरी पड़ी हुई हैं।
पंचायत चुनाव के शंखनाद के साथ ही आधी-अधूरी सड़कों का मुद्दा गर्मा गया है। जब नेता ग्रामीण क्षेत्रों में जा रहे हैं तो उन्हें मतदाताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में लोकनिर्माण विभाग और मंत्री गोपाल भार्गव केंद्र सरकार से पर्याप्त बजट नहीं मिलने की बात कह रहे हैं। लेकिन जब इसकी पड़ताल की गई तो यह तथ्य सामने आया कि विभाग के पास पर्याप्त बजट है। निष्क्रियता और सुस्ती के कारण लोनिवि पूरा बजट खर्च नहीं कर पाया है और ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ रहा है।
गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में लोक निर्माण मंत्री गोपाल भार्गव के विभाग ने बजट से अधिक यानी 105 प्रतिशत खर्च करके वाहवाही लूटी थी। खर्च बजट आवंटन से ज्यादा होने की वजह लोक निर्माण विभाग ने जिन विभागों का काम किया, उसे उनसे जो राशि प्राप्त हुई, लेकिन उसे मूल बजट में नहीं दिखाया गया। अब विभाग की हकीकत सामने आने लगी है। यही नहीं विभाग के पास पर्याप्त स्टाफ भी नहीं है। गांवों की सड़कों के निर्माण, मेंटेनेंस से लेकर मॉनिटरिंग का सारा काम जीएम और एजीएम के भरोसे रहता है। प्रदेश में जीएम के 75 में से 22 पद खाली पड़े हैं। विभाग ने इनके लिए भर्ती की प्रक्रिया 6 महीने पहले शुरू कर दी थी। इंजीनियरों के इंटरव्यू भी हो चुके हैं पर विवादों के चलते अक्टूबर 2021 में नियुक्तियां रोक दी गई। इसका असर मेंटेनेंस पर पड़ रहा है।
लोकनिर्माण मंत्री गोपाल भार्गव भले ही आधी-अधूरी सड़कों के लिए केंद्र से पर्याप्त राशि नहीं मिलने का ठीकरा फोड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी विभाग में पास 522 करोड़ रुपए पड़े हुए हैं। इसके लिए विभाग के पास कोई कार्ययोजना ही नहीं है। विभाग के रिकॉर्ड बताते हैं कि सड़कों के विकास के लिए पिछले साल मिले 1,252 करोड़ में 730 करोड़ ही खर्च हो पाए हैं। अनुसूचित जाति क्षेत्रों में 1,113 करोड़ के स्थान पर 737 करोड़ रुपए खर्च हुए। आदिवासी बहुल झाबुआ, अलीराजपुर, धार, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट और शहडोल जिलों में निर्माण कार्य प्रभावित हुए हैं। प्रदेश के 20 आदिवासी जिलों में विभिन्न विकास कार्य के लिए हर साल एक हजार करोड़ से ज्यादा की राशि आदिवासी उपयोजना में आवंटित होती है। इन जिलों के पिछले 6 साल के आंकड़े देखें, तो वहां शत-प्रतिशत बजट राशि खर्च नहीं हुई। झाबुआ, अलीराजपुर, धार अनुसूचित जाति क्षेत्रों बड़वानी, खंडवा, खरगोन, केमजरे-टोलों में बुरहानपुर, रतलाम, मंडला, निर्मित होने वाली सिवनी, डिंडोरी, अनूपपुर की सड़कें नहीं बन पा रहीं। छिंदवाड़ा, शहडोल, बालाघाट, उमरिया, सीधी, श्योपुर, होशंगाबाद, बैतूल जिलों के 89 विकासखंडों में सड़कों के लिए बजट जाएगा। बजट जारी किया जाता है, लेकिन उपयोजना में आवंटित होने वाली राशि का पूरा उपयोग इन जिलों में नहीं हो रहा है।
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि गांव को जोड़ने वाली 20 हजार किमी से अधिक सड़कें उधड़ गई हैं। इनके अब चुनाव के बाद ही ठीक होने की संभावना है, क्योंकि पंचायत चुनावों की आचार संहिता लागू हो गई है। ये सड़कें 16 जिलों की हैं। ऐसे में खस्ताहाल सड़कें बारिश में आफत बन सकती हैं। सड़कों के ठीक नहीं होने के पीछे बड़ी वजह बजट और अमले की कमी बताई जा रही है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सूत्रों का कहना है कि इन सड़कों के लिए उपरोक्त 16 जिलों के सांसद और विधायकों ने भी पत्र लिखे हैं। चुनाव से पहले इन सड़कों को दुरुस्त करने के भी निर्देश दिया जा चुके हैं। सीएस की साधिकार समिति की बैठक में भी मेंटेनेंस का मुद्दा उठ चुका है। हाल ही में विभागीय बैठक में शिकायतों के चलते इंदौर जीएम को विभागीय मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया ने फटकार लगाई है। इसके बाद बजट के लिए फंड जारी किए गए हैं।
20 हजार किमी से अधिक ग्रामीण सड़कें बदहाल
मप्र में एक-एक गांव को सड़कों को जोड़ने के लिए प्रदेश सरकार ने करीब 90 हजार किमी सड़कों का जाल बिछा दिया है। इससे गांवों में आने-जाने की व्यवस्था सुगम हो गई है। लेकिन भारी वाहनों की धमाचौकड़ी और मरम्मत नहीं होने के कारण करीब 20 हजार किमी सड़कें खराब हो गई हैं। अब इन सड़कों की मरम्मत पंचायतों में 'सरकारÓ बनने के बाद की संभव है। ऐसे में इस साल मानसून में ये सड़कें ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं। क्योंकि मानसून के दौरान सड़कों का मरम्मत होना संभव नहीं है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कें पिछले कुछ साल से खराब होती जा रही है। राजनीतिक उठापटक, कोरोना संक्रमण और बजट के अभाव के कारण सड़कों की मरम्मत नहीं हो पा रही थी। अब जाकर स्थिति सामान्य हुई है तो पंचायत चुनाव की आचार संहिता लग गई है। ऐसे में सड़कों के सुधार का काम अब पंचायतों के गठन के बाद ही होगा। तब तक प्रदेश में मानसून आ चुका होगा। ऐसे में करीब 20 हजार किमी खराब सड़कों की मरम्मत मानसून के बाद होने की ही संभावना है।
-बृजेश साहू