कोरोना वायरस के इस संक्रमणकाल में पूरा विश्व त्राहि-त्राहि कर रहा है। ऐसे दौर में भी भारत की स्थिति अन्य देशों की अपेक्षा बेहतर है। इसके लिए पूरा विश्व समुदाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व क्षमता को सराह रहा है। दरअसल, भारत में जिस तरह लॉकडाउन का पालन किया जा रहा है, उससे यही संदेश जा रहा है कि भारत की 135 करोड़ जनता को मोदी पर विश्वास है।
पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस के संकट से जूझ रही है। इस बीच अमेरिकी डेटा रिसर्च कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट ने दुनिया के टॉप 10 नेताओं पर तुलनात्मक अध्ययन किया है। इस रिसर्च के मुताबिक दुनिया के दस बड़े देशों के राष्ट्रप्रमुखों में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सबसे प्रभावशाली नेता बताया गया है। दरअसल, कोरोना के खिलाफ हो रही जंग में अमेरिका में एक ओपिनियन पोल किया गया। जिसमें दुनियाभर की सरकारों द्वारा उठाए जा रहे कदमों को लेकर राय ली गई। इस पोल में प्रधानमंत्री मोदी को सबसे अधिक मत प्राप्त हुए हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना से निपटने के लिए सबसे ज्यादा प्रभावी कदम उठाए हैं। इस आधार पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले स्थान पर हैं।
दरअसल, अमेरिका की एक वेबसाइट ने इस दौरान अमेरिकी लोगों के बीच आर्थिक, सामाजिक, भावनात्मक और राजनीतिक पक्षों को लेकर सर्वे किया है। इस सर्वे में एक दिलचस्प बात निकलकर सामने आई है। सर्वे के मुताबिक राजनीतिक प्रभाव के मामले में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के अन्य ताकतवर नेताओं से कहीं ज्यादा लोकप्रिय बनकर उभरे हैं। दुनिया की सबसे अमीर हस्ती बिल गेट्स ने खत लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोरोना की जंग में उनके कार्यों की खूब तारीफ की है। प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में गेट्स ने लिखा है कि कोरोना के खिलाफ आपने और आपकी सरकार ने जो जरूरी कदम उठाए हैं, उसकी हम सराहना करते हैं। बता दें कि बिल गेट्स हेल्थ और सामाजिक कार्यों में योगदान के लिए भारत को फंड मुहैया कराते रहे हैं।
भारत खुद भी कोरोना वायरस से जूझ रहा है लेकिन इस वक्त भी प्रधानमंत्री मोदी को अपने देशवासियों के साथ-साथ अन्य देशों की भी चिंता सता रही है। मोदी ने 'वसुधैव कुटुंबकम’ और 'सर्वे भवन्तु सुखिन:’ की भारतीय संस्कृति को जिंदा रखते हुए करीब 55 देशों की मदद की है। भारत ने दुनिया के 55 से ज्यादा देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और पैरासिटामोल दवाइयां भेजी हैं।
भारत की इस मदद के बाद पूरे विश्व में प्रधानमंत्री मोदी के नाम का डंका बजने लगा है। बता दें कि भारत तो उन देशों में से है जिसने चीन की भी मदद की है जब वो अपने शहर वुहान में फैले कोरोना वायरस के सामने बेबस खड़ा था। कोरोना वायरस ने लगभग विश्व के हर कोने में अपने पैर पसार लिए हैं। सभी देश एकजुट होकर इस वायरस से लड़ रहे हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने इस सकंट की घड़ी में सभी देशों को एक साथ लाने के लिए एक अहम पहल की जिसमें उन्होंने साउथ एशियन असोसिएशन फॉर रिजनल को-ऑपरेशन यानी सार्क राष्ट्राध्यक्षों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस पर मीटिंग की। इस वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान कई बड़े मुद्दों पर चर्चा हुई और कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत ने इमरजेंसी फंड की घोषणा की। इस घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी वो पहले नेता बन गए जिन्होंने इस वायरस से लड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता पर जोर दिया। इस फैसले पर कई देश के नेताओं ने उनकी तारीफ भी की। भारत हमेशा से अपने पड़ोसी देशों के मदद के लिए खड़ा रहता है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में नेपाल को इस महामारी से बचाने के लिए 23 टन जरूरी दवाएं भेजी हैं। जिसके बाद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी भारत की तरफ से मेडिकल राहत सामग्री भेजने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद व्यक्त करते हुए ट्वीट कर कहा था, 'मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए नेपाल को 23 टन आवश्यक दवाएं दी है। आज भारतीय राजदूत के द्वारा हमारे स्वास्थ्य मंत्री को दवाईयां सौंपी गईं।’
कोरोनावायरस महामारी के खिलाफ लड़ाई में पिछले एक महीने में तैयारी का सूचकांक (इंडेक्स ऑफ रेडीनेस) तेजी से बढ़ा है, आत्मसंतुष्टि का सूचकांक नीचे चला गया है, जबकि महामारी से निपटने के लिए सरकारों के प्रयासों में लोगों का विश्वास न केवल ठोस बना हुआ है, बल्कि अप्रूवल (अनुमोदन) रेटिंग में वृद्धि जारी है। आईएएनएस/सी-वोटर के सर्वे में गत दिनों यह बात सामने आई। 16 मार्च से 20 अप्रैल के बीच किए गए इस सर्वे में इंडेक्स ऑफ रेडीनेस के माध्यम से पता चला है कि आगे की योजना बनाने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। वह राशन, दवाइयों और इनकी खरीद के लिए अलग से धन रख रहे हैं।
सर्वे में 20 अप्रैल तक 42.9 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने तीन सप्ताह से अधिक समय तक राशन और दवाओं का स्टॉक किया है, जबकि 2 सप्ताह से कम वाले लोगों की संख्या अभी भी 56.9 प्रतिशत से अधिक हैं। हालांकि 4,718 व्यक्तियों के नमूने के आकार वाले सर्वेक्षण में एक हफ्ते से भी कम समय के लिए तैयारी करने वालों की संख्या केवल 12.1 प्रतिशत है। 16 मार्च को तीन सप्ताह से कम राशन रखने वाले लोगों की संख्या 90 प्रतिशत थी और लगभग तीन सप्ताह से अधिक राशन किसी के पास नहीं था। वहीं, अब विशेष रूप से अप्रैल में लॉकडाउन के विस्तार की घोषणा के बाद के समय लगभग हर दिन यह संख्या बढ़ रही है।
इंडेक्स ऑफ पैनिक की बात करें तो 20 अप्रैल तक के आंकड़े बताते हैं कि 41.1 प्रतिशत उत्तरदाताओं को ऐसा लगता है कि उनके परिवार में किसी को भी यह महामारी हो सकती है। वहीं, 56.3 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इससे इतर कहा कि उन्हें या उनके परिजनों को यह वायरस प्रभावित नहीं करेगा। सर्वे की शुरुआत में पहले कुल 35.1 प्रतिशत को लगता था कि उन्हें संक्रमण हो सकता है। ट्रैकर में सबसे कंसिस्टेंट रीडिंग ट्रस्ट इन द गवर्नमेंट इंडेक्स पर आई है। देश में 93.5 फीसदी लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप को प्रभावी ढंग से संभाल रही है और इससे अच्छे से निपट लेगी।
केंद्र सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के मद्देनजर 25 मार्च को लागू किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की अवधि को 15 अप्रैल के बाद भी संभावित चुनौतियों को देखते हुए 3 मई तक के लिए बढ़ा दिया था। आईएएनएस/सी-वोटर कोविड-19 ट्रैकर (सर्वे) के अनुसार, मोदी सरकार महामारी के प्रकोप की स्थिति को प्रभावी ढंग से संभाल रही है। लॉकडाउन के पहले दिन इस बात को लेकर विश्वास रखने वाले लोगों की कुल संख्या 76.8 प्रतिशत थी, जबकि वर्तमान में 21 अप्रैल तक यह आंकड़ा बढ़कर 93.5 प्रतिशत हो गया है।
केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 को और भी अधिक फैलने से रोकने की अप्रत्याशित चुनौती का सामना करते हुए देश ने अद्भुत एकजुटता एवं संयम का परिचय दिया है। जब पहली बार लॉकडाउन किया गया था तो यह इस देश में एक असंभव सा विचार प्रतीत हो रहा था, पर अब लोग स्वयं के साथ अपने साथी लोगों को भी कोरोना वायरस से बचाने के अपने संकल्प में दृढ़प्रतिज्ञ हो गए हैं। देशवासियों ने इस महामारी के खिलाफ जैसी एकजुटता दिखाई वह विश्व इतिहास में अभूतपूर्व है। आने वाली पीढ़ियों को आश्चर्य होगा कि भारत जैसे विविधता वाले देश में यह आखिरकार कैसे संभव हो पाया? यह सब देश में असाधारण नेतृत्व की बदौलत ही संभव हो पाया है।
कोरोना का संक्रमण बेशक फैल रहा है, फिर भी हम विश्वास से भरे हैं, क्योंकि दुनिया के अन्य हिस्सों में संक्रमित रोगियों की निरंतर बढ़ती संख्या की तुलना में भारत में इसका प्रकोप काफी सीमित है। यह इसलिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि भारत न केवल अधिक जनसंख्या घनत्व वाला एक विकासशील देश है, बल्कि यहां सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी ढांचागत सुविधाएं एवं संसाधन भी सीमित हैं।
जब कोरोना जैसी आपदा आकर घेर ले तो उससे उबारने के लिए दूरदर्शी और निर्णायक नेतृत्व की दरकार होती है। इस भूमिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी तरह खरे साबित हो रहे हैं। यह उनके आव्हान का ही असर था कि देश के आम जनमानस ने पहले जनता कर्फ्यू के दिन ताली-थाली बजाकर और उसके बाद 5 अप्रैल को मोमबत्ती-दीया जलाकर कोरोना के खिलाफ मुहिम में जुटे योद्धाओं के प्रति सम्मान व्यक्त करने के साथ ही संकट के समय राष्ट्रीय एकजुटता का भाव प्रदर्शित किया।
मदद के लिए हमेशा आगे
भारत एक ऐसा देश है जो दूसरे देशों की मदद के लिए हमेशा अपने हाथ आगे बढ़ाता है। नेपाल, अफगानिस्तान, मालदीव, श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों में फैली इस महामारी के रोकथाम के लिए दवाई भिजवाना हो या फिर विदेशों में फंसे उनके नागरिकों को सुरक्षित निकालवाना, भारत ने उनकी पूरी मदद की। आपको बता दें कि चीन, ईरान, इटली समेत दुनिया देशों के नागरिकों को एयर लिफ्ट करके भारत ने उनके देशों तक पहुंचाया है। चूंकि इतने बड़े पैमाने पर लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियों का प्रभावित होना स्वाभाविक है। ऐसे में सरकार ने 1.76 लाख करोड़ रुपए के पैकेज से राहत देने का प्रयास किया है। इसमें 80 करोड़ से अधिक जरूरतमंदों को गेहूं और चावल मुफ्त मिलेगा। वहीं 20 करोड़ से अधिक महिलाओं के जन-धन खातों में सीधे रकम पहुंचाई जा रही है। साथ ही पीएम-किसान योजना के तहत 9 करोड़ किसानों को राहत के अलावा 20 लाख से अधिक स्वास्थ्यकर्मियों के लिए 50 लाख रुपए का बीमा और 63 लाख स्वयं सहायता समूहों के लिए प्रोत्साहन दर्शाता है कि कोरोना आपदा से निपटने के लिए मोदी सरकार किस कदर कमर कसे हुए है।
विदेशों ने भी माना मोदी की लोकप्रियता का लोहा
मोदी कोई साधारण नेता नहीं हैं। यहां तक कि उनके घोर आलोचक भी यह स्वीकार करते हैं। उनकी असाधारण अपील देश में धार्मिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक सहित तमाम विभाजक रेखाओं को भेदकर राष्ट्र को एक कड़ी में जोड़ देती है। कोरोना को रोकने के लिए उनकी सरकार ने शुरुआती दौर में ही कई मोर्चों पर कदम उठाए, पर सबसे ज्यादा लॉकडाउन कहीं अधिक कारगर साबित होता दिख रहा है। यह विविधता में एकता की सबसे उम्दा मिसाल बनकर उभरा है। भारत के अनुभव से सिंगापुर ने महीनेभर के लॉकडाउन का फैसला किया। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, पोलैंड और अमेरिका के तमाम हिस्सों में भी अघोषित लॉकडाउन जारी है। फिर भी मोदी ने जिस व्यापक स्वरूप और सख्ती से लॉकडाउन को लागू किया उसकी तो किसी वैश्विक नेता ने उनसे पहले कल्पना तक नहीं की थी।
- इन्द्र कुमार