नेतापुत्रों की राजनीति पर ग्रहण...
20-Nov-2021 12:00 AM 545

 

देश की राजनीति में परिवारवाद तेजी से बढ़ रहा है। चाहे कांग्रेस हो या भाजपा, सपा, बसपा, जदयू, राजद या अन्य कोई दल, हर पार्टी का नेता अपने परिजनों को राजनीति में आगे बढ़ाने की कवायद में लगा हुआ है। मप्र भी इससे अछूता नहीं है। मप्र कांग्रेस और भाजपा में कई नेताओं ने अपने पुत्रों की राजनीतिक लॉन्चिंग कर दी है। भाजपा में नेतापुत्रों की बाढ़ सी आई हुई है। सबको उम्मीद है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिल सकता है, लेकिन पार्टी की नई रणनीति ने उनकी उम्मीदों पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

मप्र भाजपा के दिग्गज नेताओं के पुत्रों को भविष्य की चिंता सताने लगी है। क्योंकि भाजपा ने हाल ही में हुए उपचुनाव में खंडवा और रैगांव में अपने दिवंगत सांसद, विधायक के पुत्रों को टिकट न देकर यह संदेश दे दिया है कि पार्टी में अब परिवारवाद नहीं चलेगा। इससे पहले भाजयुमो में भी नेतापुत्रों को जगह नहीं दी गई थी। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भाजयुमो में एक भी नेता पुत्र पदाधिकारी नहीं बना।

गौरतलब है कि मप्र के कई क्षेत्रों में भाजपा हो या कांग्रेस, राजनीति में सफल नेताओं के पीछे पुत्र-पुत्री की सक्रिय भूमिका रही है। निर्वाचन क्षेत्र में सियासत के सारे सूत्र ये ही संभाल रहे हैं। अब भाजपा नेताओं को अपने पुत्रों की चिंता सताने लगी है। हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों में भाजपा ने खंडवा और रैगांव में अपने दिवंगत सांसद, विधायक के पुत्रों को टिकट न देकर बड़ा संदेश दिया है। इस संदेश से कई नेता सकते में हैं। वहीं कई नेताओं के पुत्रों ने अपनी राह भी बदलनी शुरू कर दी है।

पार्टी के इस कदम से भाजपा के दिग्गज नेताओं को अपने पुत्रों के लिए नई राह तलाशनी होगी। गौरतलब है कि पिछले एक दशक से प्रदेश की राजनीति में भाजपा के दिग्गज नेताओं के पुत्र अपनी जगह बना रहे थे। इनमें से कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय और मंत्री हर्ष सिंह के बेटे विक्रम सिंह की राजनीतिक लॉन्चिंग 2018 में हो चुकी है और वे विधायक भी बन चुके हैं। लेकिन इनके अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र सिंह तोमर, राज्यसभा सदस्य प्रभात झा के बेटे त्रिशमूल झा, स्व. नंदकुमार चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह, मंत्री नरोत्तम मिश्रा के बेटे सुकर्ण मिश्रा, मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव, जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया, सुमित्रा महाजन के बेटे मंदार महाजन, पूर्व मंत्री करणसिंह वर्मा के बेटे विष्णु वर्मा, गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम बिसेन, गौरीशंकर शेजवार के बेटे मुदित शेजवार, सत्यनारायण जटिया के बेटे राजकुमार जटिया, माया सिंह के बेटे पितांबर सिंह, मालिनी गौड़ के पुत्र एकलव्य, मंत्री यशोधराराजे सिंधिया के पुत्र अक्षय भंसाली, विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के पुत्र राहुल गौतम, दीपक जोशी के बेटे जयवर्धन जोशी, अर्चना चिटनीस के बेटे समर्थ चिटनीस सहित कई नेता पुत्र राजनीति में अवतरित होने को बेताब हैं। लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के फॉर्मूले में ये फिट नहीं बैठते हैं। इसलिए माना जा रहा है कि इन नेतापुत्रों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अधूरी रह जाएगी।

उपरोक्त नेतापुत्र 2013 से प्रदेश की राजनीति में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। इनमें से कुछ नेता पुत्रों को भाजयुमो के रास्ते राजनीति में प्रवेश दिया गया था। वहीं कुछ अपनी पिता की विरासत संभालने के लिए तैयारी कर रहे थे। 2018 में जहां दो नेतापुत्रों ने विधानसभा के लॉन्चिंग पैड से उड़ान भरी वहीं अन्य नेता पुत्रों को उम्मीद थी कि 2023 में उन्हें विधानसभा का टिकट मिल जाएगा। लेकिन हाल ही में हुए उपचुनाव में भाजपा ने दिवंगत नेताओं के पुत्रों को टिकट न देकर यह संदेश दे दिया है कि प्रदेश भाजपा में परिवारवाद नहीं चलेगा। यदि पार्टी इसी नीति पर चली तो अगले चुनाव में भाजपा नेतापुत्रों के लिए पार्टी का दरवाजा पूरी तरह बंद हो जाएगा।

गौरतलब है कि भाजपा में कई नेताओं के पुत्र और परिजन आज सक्रिय राजनीति में मुख्य भूमिका में हैं। वर्तमान सरकार में विश्वास सारंग मंत्री हैं। वे भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद स्व. कैलाशनारायण सारंग के पुत्र हैं। वहीं ओमप्रकाश सकलेचा भी मंत्री हैं। वे पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा के पुत्र हैं। इनसे पहले कई नेतापुत्र मंत्री रह चुके हैं। इसी तरह कई नेतापुत्र विधायक हैं, लेकिन अब जिस तरह प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने उपचुनाव में नेतापुत्रों को टिकट नहीं दिया है, उससे पार्टी में संदेश गया है कि भविष्य में नेतापुत्रों की राह आसान नहीं है।

मौके की नजाकत को भांपते हुए नेतापुत्र राजनीति के सहारे नहीं रहना चाहते हैं। उन्हें भविष्य की चिंता सताने लगी है, इसलिए कई नेतापुत्र व्यवसाय जमाने में सक्रिय हो गए हैं। कुछ नेताओं ने अपने पुत्रों को अपने पारिवारिक कारोबार में लगा दिया है, तो कोई नेतापुत्र ठेकेदारी करने की तैयारी कर रहा है तो किसी ने उद्योग धंधों का रुख किया है। वहीं कुछ नेतापुत्र खेती-किसानी और डेयरी का व्यवसाय करने की तैयारी कर रहे हैं। वहीं कुछ मॉल और मार्ट में निवेश करने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए बकायदा विशेषज्ञों से सलाह भी ली जा रही है। कई नेतापुत्र बड़े-बड़े ठेकेदारों के साथ पार्टनरशिप करने में लग गए हैं। यह भी खबर आ रही है कि भाजपा के कुछ नेता अपने ही पुत्रों के राजनीतिक भविष्य के लिए कांग्रेस की ओर निहारने लगे हैं।

कमलदल में वंशवाद के लिए बंद होते दरवाजे को देखते हुए दो नेतापुत्र केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से प्रभावित हुए हैं। गौरतलब है कि गडकरी ने पेट्रोलियम पदार्थों की जगह इथेनॉल से वाहन चलाने पर जोर दिया है। ऐसे में दो नेतापुत्रों ने भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए इथेनॉल बनाने की फैक्ट्री डालने की तैयारी कर ली है। इनमें से एक हैं ग्वालियर-चंबल संभाग के एक कद्दावर नेता और मंत्री के पुत्र और दूसरे हैं भोपाल संभाग क्षेत्र के एक मंत्री के सुपुत्र। बताया जाता है कि राजनीति में नेतापुत्रों की कठोर डगर को देखते हुए दोनों मंत्रियों ने अपने-अपने बेटे के लिए लगभग 100-150 करोड़ की फैक्ट्री शुरू करने की तैयारी कर ली है। वहीं बुंदेलखंड से आने वाले एक पूर्व मंत्री के बेटे ने अपना सारा पैसा राजधानी भोपाल के एक होटल में लगा दिया है।

भाजपा में नेतापुत्रों के लिए दरवाजे बंद होते देख कांग्रेस में भी हलचल तेज हो गई है। सूत्र बताते हैं कि कई कांग्रेसी नेता अपने पुत्रों के लिए राजनीति के साथ ही अन्य क्षेत्रों में संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं। उधर, भाजपा के कई दिग्गज नेता अभी भी हार मानते नहीं दिख रहे हैं। खासकर ग्वालियर-चंबल अंचल के नेताओं को विश्वास है कि आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी उनके पुत्रों को टिकट दे सकती है। इसलिए नेतापुत्र क्षेत्रों में सक्रिय हैं और लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं।

देवेंद्र ने पूरे प्रदेश में खड़ा किया नेटवर्क

भाजयुमो के सहारे प्रदेश की राजनीति में प्रवेश करने वाले केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बेटे देवेंद्र सिंह तोमर को भले ही इस बार भाजयुमो में जगह नहीं मिली, लेकिन उन्होंने भावी राजनीति को देखते हुए प्रदेशभर में अपना नेटवर्क खड़ा कर लिया है। आलम यह है कि वे प्रदेश में जहां भी जाते हैं, उनके साथ 50-60 लग्जरी गाड़ियों का काफिला जुट जाता है। उनका भोपाल और इंदौर से खास लगाव है। युवाओं में उनकी दिन पर दिन पैठ बढ़ती जा रही है। लेकिन जिस तरह नेतापुत्रों के लिए भाजपा के दरवाजे बंद हो रहे हैं, उससे देवेंद्र सिंह तोमर का राजनीतिक भविष्य भी अधर में दिख रहा है।

भाजयुमो में एक भी नेता पुत्र नहीं

भाजपा ही एकमात्र ऐसी राजनीतिक पार्टी है, जिसमें बड़े नेता बनने का रास्ता भाजयुमो से होकर ही गुजरता है। पार्टी में आज जितने भी बड़े नेता हैं, वे भाजयुमो के पदाधिकारी रहे हैं। ऐसे में दिग्गज नेताओं के बेटा-बेटी राजनीति में आने के लिए भाजयुमो में एंट्री पाने को लालायित रहते हैं। अगर यह कहा जाए कि भाजयुमो नेतापुत्रों का लॉन्चिंग पैड है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन इस बार भाजयुमो में एक भी नेतापुत्र को जगह नहीं दी गई है। यानी प्रदेश संगठन ने नेतापुत्रों की सियासी तरक्की पर रोक लगा दी है। जबकि एक दर्जन से ज्यादा नेताओं के पुत्र अपने पिता की राजनीतिक पिच पर सियासी प्रैक्टिस कर रहे थे।

- कुमार राजेन्द्र

FIRST NAME LAST NAME MOBILE with Country Code EMAIL
SUBJECT/QUESTION/MESSAGE
© 2025 - All Rights Reserved - Akshnews | Hosted by SysNano Infotech | Version Yellow Loop 24.12.01 | Structured Data Test | ^