मप्र में अवैध खनन एक ऐसा रोग हो गया है, जिसकी जितनी दवा की जाती है, वह उतना बढ़ता जाता है। यानी सरकार नदियों में रेत के अवैध खनन को लेकर जितनी सख्त हो रही है, नदियों का सीना उतना ही छलनी हो रहा है। प्रदेश के कृषि मंत्री ने घोषणा की थी कि नर्मदा नदी में अवैध खनन करने वालों के ऊपर हत्या का मामला दर्ज होगा, लेकिन इसके बावजूद नदी को छलनी किया जा रहा हे। नर्मदा ही नहीं बल्कि लगभग सभी नदियों में रेत का अवैध खनन जोरों पर है। शासन-प्रशासन की नाक के नीचे लगातार अवैध खनन हो रहे हैं। कभी-कभार कुछ छोटे माफिया के खिलाफ कार्रवाई कर सरकार अपनी पीठ थपथपाती है।
मप्र उन राज्यों में शामिल है, जहां अवैध खनन बड़े स्तर पर होता है। यहां कई जगह अवैध खनन चोरी-छिपे, तो कई जगह सीना ठोककर होता है। माफिया प्रदेश की प्रत्येक नदी में सक्रिय हैं। अकेले नर्मदा नदी से करीब एक हजार डंपर रेत प्रतिदिन चोरी-छिपे निकाली जा रही है। यह सीहोर, भोपाल, रायसेन, होशंगाबाद सहित अन्य जिले के सीमावर्ती इलाकों में बेची जा रही है। इसमें से औसतन 400 डंपर रेत प्रतिदिन भोपाल आ रही है। 300 डंपर का स्टॉक किया जा रहा है। सारी रात नेशनल हाईवे-69 (औबेदुल्लागंज-नागपुर) पर रेत के डंपरों का रेला चलता है। मप्र की नदियों से रेत चोरी की यह स्थिति तब है, जब कोरोना संक्रमण के चलते पुलिस 24 घंटे मुस्तैदी से ड्यूटी कर रही है। अगर राज्य की सभी नदियों से निकलने वाली रेत की बात करें तो प्रतिदिन करीब 1600 डंपर रेत चोरी हो रही है।
प्रदेश में आम दिनों में प्रतिदिन 3500 से 4000 डंपर रेत बाजार में पहुंचती है, लेकिन खनिज निगम द्वारा नीलाम की गई 1450 खदानों में उत्खनन शुरू नहीं होने और लॉकडाउन की वजह से रेत की किल्लत शुरू हुई तो माफिया सक्रिय हो गए। नर्मदा, चंबल, पार्वती, बेतवा सहित प्रदेश की तमाम नदियों से रेत निकाली जा रही है। चोरी-छिपे आ रही रेत के दाम भी मनमाने हैं। माफिया 18 से 20 हजार रुपए में मिलने वाली एक डंपर रेत 32 से 36 हजार रुपए में बेच रहे हैं। भोपाल की ही बात करें तो यहां प्रतिदिन औसतन 400 डंपर रेत आ रही है। इसमें से महज 100 डंपर रेत बाजार में जाती है। शेष रेत बारिश के मद्देनजर स्टॉक की जा रही है ताकि वर्षाकाल में नदियों के घाट बंद होने के बाद मनमाने दामों पर बेची जा सके।
मप्र में अवैध रेत के काले कारोबार की व्यापकता का आंकलन इसी से लगाया जा सकता है कि यहां से उप्र, राजस्थान, महाराष्ट्र में अवैध तरीके से रेत जाती है। छतरपुर सहित उप्र से सटे क्षेत्र से निकली केन नदी पर स्थित घाटों से फिर एक बार माफियाओं द्वारा रेत का उत्खनन शुरू कर दिया गया है। कई घाटों पर रेत माफियाओं ने अपनी मशीनें उतार दी हैं और अब मशीनों से बड़ी मात्रा में रेत निकालकर ट्रकों तथा डंपरों में भरकर उप्र भेजा जा रहा है। इस काले कारोबार को लेकर पुलिस व खनिज महकमा पर रेत माफियाओं को संरक्षण देने के सीधे आरोप लग रहे हैं।
गौरिहार थाना की पहरा चौकी क्षेत्र में स्थित केन नदी के बरुआ परेई रेत खदान पर पोकलेन मशीनों से बड़े पैमाने पर रेत का उत्खनन चल रहा है। यह रेत निकालकर उप्र भेजी जा रही है, रोज करीब 30 ट्रकों व डंपरों में रेत लोड कर उत्तर प्रदेश की सीमा में भेजी जा रही है। रेत के इस काले कारोबार को लेकर पहरा चौकी पुलिस सहित खनिज अधिकारियों द्वारा संरक्षण देने के आरोप लग रहे हैं। हालांकि पहरा चौकी प्रभारी प्रदीप सर्राफ किसी भी प्रकार रेत माफियाओं को संरक्षण देने के आरोप को नकारते हुए कहते हैं कि वह लगातार अवैध उत्खनन के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं।
गोयरा थाना क्षेत्र ग्राम पंचायत हाजीपुर से निकली केन नदी के महुआ कछार गांव के केवट समाज के गरीब लोग सब्जी की फसल लगाते हैं। इसे बेचकर अपने परिवारों का भरण पोषण करते हैं। रेत माफिया ने रेत उत्खनन के लिए इन गरीब किसानों की फसलें मशीनों से उजाड़ दी हैं। केन नदी के महुआ कछार घाट से शाम होते ही एलएंडटी मशीनें उतारकर रेत निकाली जाती है और रोजाना करीब डेढ़ दर्जन ट्रकों से यह रेत नदी के दूसरी ओर नरैनी होकर उप्र के लखनऊ और कानपुर शहरों में भेजी जाती है। इसके लिए रेत माफिया द्वारा पहले से पुलिस से सेटिंग कर ली जाती है। यही कारण है कि एक तो इन पर कार्रवाई नहीं होती, अगर कार्रवाई की नौबत आती है तो इन्हें पहले से अलर्ट कर दिया जाता है।
अवैध खनन की अनदेखी की सबसे बड़ी वजह है इसमें होने वाला भारी मुनाफा। लागत के मुकाबले इस धंधे में कई गुना लाभ है। पुलिस, प्रशासन, नेताओं को मुनाफे का हिस्सा देने के बावजूद इससे जुड़े लोग जल्द ही करोड़पति हो जाते हैं। असल में, पिछले एक-डेढ़ दशक में महानगरों के इर्द-गिर्द जिस तेज गति से बहुमंजिली इमारतों, विशाल शॉपिंग मॉल्स और शानदार आवासीय परियोजनाओं के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ है, उसके लिए कच्चे माल यानी रेत, बजरी और अन्य भवन निर्माण सामग्रियों की मांग बढ़ी है। इस जरूरत को साधने के लिए राज्य सरकारें खनन के वैध ठेके आवंटित करती हैं, पर उससे माल महंगा हो जाता है और पुलिस, प्रशासन व नेतागण समेत खनन माफिया के लिए भारी कमाई के अवसर भी सिकुड़ जाते हैं। लिहाजा, अवैध खनन कभी तो चोरी-छिपे और कभी गठजोड़ कर खुलेआम किया जाता है।
सरकार पर दोहरी मार
प्रदेश के रेत कारोबार में माफिया हमेशा से सक्रिय रहे हैं पर उनकी मौजूदा सक्रियता राज्य सरकार को भी भारी पड़ रही है। सरकार की आर्थिक स्थिति पहले से खराब है। कोरोना ने भी कमर तोड़ दी है। ऐसे में रेत से बड़ा राजस्व मिलने की उम्मीद थी तो माफिया ने कब्जा कर लिया। अब इस मामले में सरकार जल्दी नहीं चेती तो खदानों को तीन साल के लिए ठेके पर लेने वाले भी हाथ खड़े कर देंगे। मप्र सरकार की खनिज पॉलिसी धरी की धरी रह गई है। विभाग ने रेत ट्रकों की मॉनीटरिंग, चोरी की रेत पर अंकुश लगाने के लिए जीपीएस, पोर्टल सहित तमाम प्रबंध किए पर अब कुछ काम नहीं आ रहा।
- रजनीकांत पारे