19-Sep-2020 12:00 AM
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पिछले 2 साल से भारत का अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध कटु होते जा रहे हैं। ऐसे में चीन अपने आपको मजबूत करने में लगा हुआ है। इसको देखते हुए भारत ने नेबरहुड फर्स्ट नीति का नया खाका तैयार किया है। अब देखना यह है कि भारत सरकार के यह नीति कितनी कारगर होती है।
मोदी सरकार के कार्यकाल में नेबरहुड फर्स्ट की नीति का नया रंग अब देखने को मिलने वाला है। एक तरफ भारत जहां सीमाओं से परे दिल के करीब देशों के साथ व्यवहार गहराएगा। वहीं छोटे-छोटे देशों को आर्थिक सहायता के साथ-साथ विभिन्न ढांचागत परियोजनाओं की भी नींव रखेगा। गत दिनों पहले ही मालदीव की सबसे बड़ी ढांचागत परियोजना लगाने का ऐलान करने के बाद भारत की तरफ से जल्द ही नेपाल को लेकर इस तरह की घोषणा होगी। भारत की इकोनोमी खुद मंदी की गिरफ्त में है, लेकिन मदद पर इसका असर नहीं पड़ेगा।
सूत्रों के मुताबिक इन सभी परियोजनाओं को लेकर भारत की तरफ से होने वाली तैयारियां लगभग पूरी हैं। जैसे वर्ष 2017 में भारत की तरफ से जो रेलवे परियोजनाओं की मदद का ऐलान किया गया था और अब दोनों की संभाव्यता रिपोर्ट जल्द ही पूरी होने वाली है। भारतीय अधिकारी स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि हाल के महीनों में नेपाल की तरफ से राजनीतिक मानचित्र को लेकर जो बयानबाजी की गई है उससे इन परियोजनाओं की प्रगति पर कोई असर नहीं पड़ा है। सनद रहे कि 15 अगस्त को नेपाली प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली व मोदी के बीच बात हुई है। चीन से बांग्लादेश की बढ़ती नजदीकियों की खबरों के बीच भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद से मिलने पिछले महीने ढाका पहुंचे तो उन्हें लगभग 3-4 घंटे तक इंतजार कराया गया। इससे पहले बांग्लादेश में भारत की हाई कमिश्नर रीवा गांगुली दास ने अपनी अर्जी लगा रखी थी। लेकिन चार महीनों के इंतजार के बाद भी शेख हसीना ने उन्हें मुलाकात का समय नहीं दिया। बांग्लादेश के अखबार 'भोरेर कागोज’ ने खबर छापी कि 2019 में शेख हसीना के दोबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद बांग्लादेश में भारतीय प्रोजेक्ट धीमे पड़ गए हैं लेकिन चीनी इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को खूब बढ़ावा मिल रहा है।
भारत के दूसरे पड़ोसी देश नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने एक इंटरव्यू में कहा था कि लिपुलेख-लिंप्याधुरा और कालापानी विवाद को बातचीत से सुलझाया जा सकता था। लेकिन हमारी सरकार की ओर से कोशिश के बावजूद भारत ने विदेश-सचिव लेवल की बातचीत के हमारे आग्रह का कोई जवाब नहीं दिया। जाहिर है दोनों देशों के संबंध इस दौरान लगातार खराब हुए हैं और सीमा पर टकराव तक की घटना हो गई, जिसकी पहले कल्पना तक नहीं की जा सकती थी।
एक अन्य पड़ोसी देश श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दरख्वास्त की थी कि उनके देश पर भारत के लगभग 96 करोड़ डॉलर कर्ज की अदायगी की मियाद आगे बढ़ा दें। लेकिन पांच महीने बाद भी भारत की ओर से इस मांग पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। श्रीलंका ने चीन से मदद मांगी। चीन ने उसे आसान शर्तों पर 50 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया। ये तीनों मामले यह बताने के लिए काफी हैं कि 2014 में अपने पहले कार्यकाल के दौरान मोदी सरकार ने दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों से रिश्ते मजबूत करने के लिए जिस 'नेबरहुड फर्स्ट’ पॉलिसी की स्क्रिप्ट लिखनी चाही थी, वो अब एंटी क्लाइमेक्स में पहुंचती दिख रही है।
याद कीजिए, 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान समेत सभी दक्षिण एशियाई यानी सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम ने भी हिस्सा लिया था। इसके कुछ दिनों बाद ही नरेंद्र मोदी सीधे विमान से पाकिस्तान पहुंच गए थे। ऐसा लग रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण एशिया में विदेश नीति का कोई नया अध्याय लिखने जा रहे हैं। लेकिन जल्द ही पठानकोट पर हुए आतंकी हमलों ने साबित कर दिया कि पाकिस्तान के साथ उलझे रिश्तों को सुलझाना इतना आसान नहीं है। पाकिस्तान को लेकर कम ही लोगों की उम्मीद थी कि वह अपनी चाल बदलेगा। अलबत्ता नेपाल और बांग्लादेश के साथ रिश्ते मजबूत करने में प्रधानमंत्री को शुरुआत में अच्छी सफलता मिली। 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने नेपाली संसद को संबोधित किया तो पूरा नेपाल मानो अभिभूत हो गया। लेकिन जल्द ही मजबूत होते दिख रहे इस रिश्ते में कड़वाहट घुलने लगी क्योंकि भारत ने उप्र और बिहार से सटे तराई वाले इलाकों में रहने वाले मधेशियों का साथ देना शुरू किया। तराई की मधेशी पार्टियों ने भारत से आ रहे सामानों की 2015 में नाकेबंदी शुरू कर दी और इससे नेपाल में हाहाकार मच गया।
भारत नेपाल के लोगों के लिए दुश्मन नंबर एक बनकर उभरा। इस बीच केपी ओली और उनकी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी भारत के खिलाफ उभरे आक्रोश को भुनाने में सफल रही। लेकिन ओली जब सत्ता में आए तो मोदी सरकार उनसे बेहतर संबंध बनाने में जुट गई। तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को तुरंत काठमांडू भेजा गया। ओली को खुश करने के चक्कर में भारत ने मधेशी दलों और अपने पुराने सहयोगी नेपाली कांग्रेस पार्टी दोनों को छोड़ दिया। आज ओली चीन की शह पर भारत के खिलाफ आग उगल रहे हैं। मधेशियों की नाकेबंदी हाल के दिनों में भारत-नेपाल रिश्तों का सबसे खराब प्रसंग बन गई और यही वह दौर था, जब चीन को नेपाल को पूरी तरह अपने पाले में करने का मौका मिल गया। अब चीन नेपाल की राजनीति से लेकर इसकी अर्थव्यवस्था, इन्फ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं से लेकर इसके लोगों के दिलो-दिमाग पर पूरी तरह छा गया है।
चीन और नेपाल के बीच कारोबार अब तक के सर्वोच्च स्तर 1.5 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। चीन नेपाल को आर्थिक मदद देने वाला सबसे बड़ा देश बनकर उभरा है। नेपाल किस कदर चीन के पाले में चला गया है इसका सबूत तो उसी समय मिल गया, जब चीनी राजदूत ने खुलकर नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में प्रचंड और ओली गुट के बीच मध्यस्थता की। नेपाल में हालात अब पूरी तरह भारत के नियंत्रण से बाहर लग रहे हैं। बांग्लादेश के साथ भी भारत के रिश्ते ढलान पर दिख रहे हैं। हाल के दिनों में बांग्लादेश के साथ मनमुटाव को खत्म करने के लिए इसने काफी फुर्ती दिखाई। बांग्लादेश को लगातार मदद की खेप पहुंचाने से लेकर विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला की अचानक प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद से मुलाकात ने साफ कर दिया है कि भारत उस पर बढ़ते चीन के प्रभाव से किस कदर परेशान दिख रहा है। मोदी सरकार को अपने पहले दौर में बांग्लादेश से रिश्तों को मजबूत करने में खासी सफलता मिली थी। दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक जमीन समझौता हुआ था। तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर सहमति बनती दिखी, कुल 22 समझौते हुए थे। लेकिन पिछले साल भारत में सीएए और एनसीआर लागू होने के साथ ही बांग्लादेश के साथ रिश्तों की रंगत बदलने लगी। सरकार के मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने जिस तरह से बांग्लादेशी विरोधी बयान दिए उनसे बांग्लादेश के लोगों के तन-बदन में आग लग गई।
गृहमंत्री अमित शाह ने 2018 में असम में रह रहे बांग्लादेशियों को दीमक करार दिया। बंगाल भाजपा के चीफ दिलीप घोष ने कहा कि उनके राज्य में एक करोड़ बांग्लादेशी दो रुपए किलो वाले चावल पर पल रहे हैं। इन सभी बांग्लादेशियों को वापस भेजा जाएगा। लगभग 7 से 8 फीसदी की दर से विकास कर रहे और कई सोशल और डेवलपमेंट इंडेक्स में भारत से बेहतर प्रदर्शन वाले बांग्लादेश के सम्मान पर यह बड़ी चोट थी। सीएए के मामले में बांग्लादेश पर हमले इतने बढ़े कि उसके विदेश मंत्री अब्दुल मोमिन ने अपना भारत दौरा रद्द कर दिया। शेख हसीना को यह चिंता भी हुई कि मुकदमे और जेल भेजे जाने के डर से भारत में रह रहे लाखों बांग्लादेशी वापस देश लौट सकते हैं। रोहिंग्या शरणार्थियों का बोझ ढो रहे बांग्लादेश के लिए यह नई मुसीबत बन सकती थी। बांग्लादेश के स्वाभिमान पर जिस तरह चोट की गई, उसने इसे चीन की ओर झुकने को मजबूर किया। बांग्लादेश ने हाल में सिलहट में एक नए एयरपोर्ट टर्मिनल का निर्माण का ठेका बीजिंग अर्बन कंस्ट्रक्शन ग्रुप को दे दिया। चीन ने बांग्लादेश की नौसेना को मजबूत करने के लिए कई डिफेंस डील की हैं। हाल में बांग्लादेश से निर्यात होने वाले 97 फीसदी सामान चीन में ड्यूटी फ्री कर दिए।
भारत श्रीलंका में भी मौके गंवाता जा रहा है। पिछले साल जब प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के भाई गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने थे तो चीन से बढ़त लेने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर तुरंत कोलंबो पहुंच गए थे। इसके बाद राजपक्षे भारत दौरे पर आए थे। इसके बावजूद भारत ने जिस तरह से कर्ज भुगतान की मियाद बढ़ाने के श्रीलंका के अनुरोध की अनदेखी की उससे उसके सामने एक बार फिर साफ हो गया कि बड़े दावों के बावजूद भारत की दोस्ती पर भरोसा नहीं किया जा सकता। पिछले डेढ़-दो साल से इन तीनों अहम पड़ोसियों के साथ भारत के खराब रिश्तों ने इसकी 'नेबरहुड फर्स्ट’ पॉलिसी पर सवालिया निशान लगा दिया है। कोविड-19 ने पड़ोसियों को पैसे से जीतने की भारत की ताकत को और कमजोर कर दिया है। चीन इस स्थिति का बेजा फायदा उठा सकता है। अमेरिका और अरब देशों से संबंध मजबूत करने में पूरी तरह व्यस्त मोदी सरकार की विदेशी नीति नजदीकी पड़ोसी देशों से रिश्ते मजबूत करने के मामले में मात खाती दिख रही है।
पड़ोसी देशों को मदद करने की भारत की मंशा
पड़ोसी देशों को मदद करने की भारत की मंशा का पता मालदीव के लिए तीन दिन पहले की गई घोषणा से भी चलता है। भारत ने वहां के तीन द्वीपों को कनेक्ट करने वाली मालदीव की सबसे बड़ी ढांचागत परियोजना शुरू करने का ऐलान किया है। इसके लिए अभी 40 करोड़ डॉलर की मदद दी जा रही है जिसे बाद में बढ़ाया भी जा सकता है। 6.72 किलोमीटर लंबी यह हाईवे परियोजना चीन की मदद से तैयार फे्रंडशिप परियोजना तकरीबन चार गुना बड़ी होगी। पिछले कुछ महीनों में भारत मालदीव के लिए 2.50 अरब डॉलर की परियोजनाओं का ऐलान कर चुका है। असलियत में भारत द्वारा हिंद महासागर के तीनों पड़ोसी देशों मालदीव, श्रीलंका और मॉरीशस को अभी 7.5 अरब डॉलर की परियोजनाओं व आर्थिक मदद दी जा रही है। आगे इसे बढ़ाने को भी भारत तैयार है और कई दूसरी परियोजनाओं पर भी विमर्श हो रहा है। श्रीलंका की पस्त इकोनोमी व स्थानीय मुद्रा को राहत पहुंचाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने 40 करोड़ डॉलर की मदद देने की व्यवस्था की है। इसके अलावा 1.1 अरब डॉलर की दूसरी परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है जिसकी घोषणा भी जल्द की जा सकती है।
भारत पड़ोसी देशों पर अपनी पसंद की परियोजनाओं को नहीं थोपेगा
भारतीय कूटनीति की यह भी कोशिश होगी कि बांग्लादेश और भूटान की इस तरह से मदद की जाए ताकि वो कोविड-19 के प्रभाव से जल्द से जल्द निकल सके। कोविड-19 के बावजूद इन देशों के साथ भारतीय मदद से चलाई जा रही परियोजनाओं पर लगातार विमर्श चल रहा है और उनकी समीक्षा की जा रही है। भारतीय विदेश मंत्रालय के अधिकारी पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत इन देशों पर ना तो अपनी पसंद की परियोजनाओं को थोपेगा और ना ही इन्हें शर्तो के साथ मदद दी जाए। इस बारे मेंं सारा फैसला इन देशों को ही करना है। यह तरीका चीन की तरफ से दी जाने वाली मदद से अलग है। सनद रहे कि कई देशों में चीन से मिलने वाली आर्थिक मदद को लेकर काफी बेचैनी है। चीन पर मदद के बहाने के ऋण से जाल में फंसाने के आरोप लग रहे हैं।
- इन्द्र कुमार