महाराष्ट्र में शिवसेना के कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने के बाद हिंदुत्व की राजनीति में खाली हुई जगह को भरने के लिए
राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, मनसे जो राजनीति कर रही है उस पर रोक लगनी चाहिए। अपने झंडे का रंग, निशान आदि बदलकर मनसे हिंदुत्व की जो राजनीति कर रही थी उसमें उसने एक नया अभियान जोड़ दिया है। मनसे ने कथित घुसपैठियों की पहचान करने का अभियान छेड़ा है। पार्टी ने लोगों से अपील की है कि वे घुसपैठियों के बारे में सूचना दें तो पार्टी उनको पांच हजार रुपए देगी।
एक घुसपैठिए के बारे में जानकारी देने पर मनसे पांच हजार रुपए देगी। सोचें, अगर लोगों ने इसे गंभीरता से लिया तो कैसा संकट खड़ा होगा। इस बात की क्या गारंटी होगी कि कथित घुसपैठियों की पहचान करने के बाद लोग उनके साथ मारपीट नहीं करेंगे या मॉब लिंचिंग नहीं की जाएगी? अगर ऐसा होता है तो कानून व्यवस्था बिगडऩे की जिम्मेदारी किसकी होगी? तभी सरकार को पहल करके इस पर तत्काल रोक लगानी चाहिए और मनसे के ऊपर कार्रवाई भी करनी चाहिए कि आखिर इस तरह के काम का अधिकार उसे किसने दिया? कोई भी पार्टी राज्य का काम अपने हाथ में कैसे ले सकती है?
महाराष्ट्र की राजनीति हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एक बार फिर करवट ले सकती है। गत 9 फरवरी को मुंबई के गिरगांव चौपाटी स्थित आजाद मैदान में आयोजित महारैली में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना प्रमुख राज ठाकरे का अंदाज-ए-बयां इसकी तस्दीक करती है। मनसे कार्यकर्ताओं के हाथ में भगवा रंग के नए झंडे के बीच राष्ट्रवाद से ओत-प्रोत नजर आए राज ठाकरे ने मनसे को हिंदूवादी और राष्ट्रवादी पार्टी के विकल्प के रूप में पेश किया। मनसे चीफ राज ठाकरे ने रैली को संबोधित करते हुए देश में लागू हो चुके नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और संभावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का खुलकर समर्थन करते हुए अपने तेवर साफ कर दिए। शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के अंदाज में राज ठाकरे ने रैली में बेलौस होकर देश में मौजूद अवैध घुसपैठियों को बाहर निकालने का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार से मांग की, जिनमें पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए घुसपैठिए शामिल हैं।
शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के उत्तराधिकारी कहे जाने वाले राज ठाकरे ने रैली में बेहद गर्मजोशी दिखाई और शिवसेना संस्थापक के अंदाज में एकत्रित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि आज से ईंट का जवाब पत्थर से और तलवार का जवाब तलवार से दिया जाएगा।
राज ठाकरे ने अपने तेवर से स्पष्ट कर दिया कि वह महाराष्ट्र में शिवसेना की अनुपस्थिति में हिंदूवादी और राष्ट्रवादी राजनीति की शून्य पड़ी उर्बर जमीन पर कब्जे के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहते हैं।
मनसे चीफ राज ठाकरे बहुत दिनों बाद अपने बेबाक और बेलौस अंदाज में रैली में दिखाई दिए। अपने भाषण में उन्होंने बिना लाग लपेट अपनी बातें रखीं। चाहे वह सीएए हो अथवा एनआरसी, जिसको लेकर महाराष्ट्र समेत पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन पिछले कई महीनों से चल रहा है। रैली में पाकिस्तान, सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे मुंबई के बाहरी इलाके में रहने वाले नाईजीरियाई और मुस्लिम समुदाय को भी निशाने पर लेने से भी मनसे प्रमुख नहीं कतराए।
शायद यही वह कारण था कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपनी छटपटाछट छुपा नहीं पाए और राज ठाकरे के खिलाफ बयान करते हुए कहा कि शिवसेना को अपना हिंदुत्व साबित करने के लिए झंडा बदलने की जरूरत नहीं है। उद्धव ठाकरे अच्छी तरह जानते हैं कि महा विकास अघाड़ी मोर्च में सेक्युलर पार्टियों के साथ गठबंधन के चलते उनकी सियासी जमीन खिसक सकती है इसलिए उद्धव की स्थिति महाराष्ट्र सरकार में सांप और छछूंदर जैसी हो गई है।
शिवसेना चीफ और महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें, लेकिन समान विचारधारा वाली भाजपा को छोडक़र परस्पर विरोधी दल कांग्रेस और एनसीपी के साथ पकडऩे से महाराष्ट्र में शिवसेना की सियासी जमीन कमजोर हुई है। चूंकि भाजपा और शिवसेना पिछले 30 वर्षों से साथ-साथ महाराष्ट्र में चुनाव लड़ रहीं थीं और दोनों के मुद्दे और एजेंडे भी कमोवेश एक थे, इसलिए महाराष्ट्र में दूसरी बार दोनों पार्टियों को जनादेश मिला था। इसके अलावा शिवसेना चीफ उद्धव ठाकरे पर जनादेश का अपमान करके स्वार्थ की राजनीति करने का आरोप लगता आ रहा है, जिससे पीछा छुड़ाने के लिए उद्धव ठाकरे भाजपा को निशाने पर लेते रहे हैं। हालांकि राष्ट्रवादी और हिंदूवादी दिखने की होड़ में शिवसेना चीफ नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ खड़े होने से गुरेज करती रही है। यही कारण था कि शिवसेना ने सीएबी बिल के पक्ष में लोकसभा में समर्थन किया और राज्यसभा में वॉक आउट हो गई। इतना ही नहीं, अन्य कांग्रेस शासित राज्यों से इतर चलते हुए महाराष्ट्र में सीएए के खिलाफ विधानसभा प्रस्ताव लाने से उद्धव ने गुरेज किया।
शिवसेना की जगह लेने में कामयाब होंगे राज ठाकरे
महाराष्ट्र की राजनीति में आया यह खालीपन संभवत: राज ठाकरे भरने को कोशिश कर रहे हैं। अगर राज ठाकरे अपने तेवर और तल्खी बरकरार रखने में कामयाब हो गए तो शिवसेना की छोड़ी हुई उर्वर राजनीति पर मनसे को फसल काटने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसमें भाजपा भी उनका साथ देने से नहीं हिचकेगी, क्योंकि महाराष्ट्र में चल रही नॉन एनडीए सरकार में सबसे अधिक पीडि़त कोई है, तो वह भाजपा है। हाल ही में देवेंद्र फडणवीस के 4 घंटे तक राज ठाकरे से मुलाकात इसके संकेत भी देते हैं। राज ठाकरे का यह तेवर शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे से मिलता-जुलता है। याद कीजिए, बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना महाराष्ट्र में किंग मेकर की भूमिका में होती थी। महाराष्ट्र में सरकार किसी भी पार्टी की हो, लेकिन मजमा मातोश्री में ही लगता था।
- बिन्दु माथुर