कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन में मजदूरों की दिक्कतें और बढ़ गई हैं। एक तो घर से बाहर दूसरे शहरों में फंसे, तो परिवार के पास पहुंचने की चिंता और परेशानी। दूसरे जैसे-तैसे घरों को लौट भी गए तो अब काम न मिलने की चिंता सता रही है। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में करीब 68 लाख जॉब कार्डधारी परिवार हैं। जिसमें से 30 अप्रैल तक 10 लाख परिवारों ने ही काम मांगा था। हालांकि पंचायत विभाग ने इन मजदूरों को उनके घर के पास ही काम उपलब्ध करा दिया था।
दरअसल, कोरोना के कारण हो रही मजदूरों के घर वापसी से मनरेगा में काम की डिमांड बढ़ गई है। प्रदेश में हर दिन करीब 60 से 70 हजार मजदूर पंचायतों से काम मांग रहे हैं। काम मांगने वालों की संख्या 10 दिन के अंदर ही बढ़ी है। वहीं मजदूरों के काम की डिमांड के चलते निर्माण कार्य और विकास की गति बढ़ा दी गई है। क्योंकि इन मजदूरों को काम देने की जिम्मेदारी पंचायत एवं ग्राम सहायकों को दी गई है। 30 अप्रैल के बाद से काम की डिमांड एकदम बढ़ने लगी है। पिछले 10 दिन के अंदर करीब सात लाख मजदूरों ने काम की डिमांड की है। बताया गया है कि करीब 15 लाख मजदूरों को काम दे भी दिया गया है, और इनमें से 14 लाख मजदूरों ने काम करना भी शुरू कर दिया है।
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का मानना है कि अब गांव में काम की मांग पड़ेगी। पंचायतों में बड़े पैमाने पर रोजगार का लक्ष्य रखा है। गांव में सभी विभागों से जुड़े अधोसंरचना के काम तैयार किए जाएंगे। इससे जहां गांव का विकास होगा वही जॉब कार्डधारी परिवारों को काम भी मिलेगा। इसके अलावा पंचायतें खुद मजदूरों को काम देने के लिए गांव के विकास कार्यों को प्रारंभ करेंगे। इसके साथ ही केंद्र और राज्य के हितग्राही मूलक योजनाएं जैसे शौचालय, सड़क, नाली निर्माण, पुल-पुलिया प्रधानमंत्री आवास, सामुदायिक भवन, पंचायत भवन सहित अन्य कार्य भी प्रारंभ किए जाएंगे, जिससे मजदूरों को पर्याप्त काम मिल सके। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने पंचायतों के विकास और मजदूरी के लिए 20 हजार करोड़ का बजट रखा है। अधिकारियों का मानना है कि करीब 30 से 40 लाख मजदूर काम की डिमांड करेंगे। इसके लिए पंचायत स्तर पर विकास कार्यों के साथ मजदूरों को काम उपलब्ध कराने की रूपरेखा तैयार की है।
बाहरी राज्यों से मध्यप्रदेश में वापस लौटे साढ़े ग्यारह लाख से ज्यादा मेनपॉवर अब सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। अभी तक इन मजदूरों को काम देने को लेकर सरकार मनरेगा के अलावा दूसरे विकल्पों पर विचार नहीं कर पाई है, लेकिन यदि इस मेनपॉवर को मध्यप्रदेश सरकार रोक लेती है तो यह प्रदेश के विकास में बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं। दूसरी ओर यदि इस मेनपॉवर को काम नहीं मिल पाता तो यह उतनी ही ज्यादा समस्या भी साबित होंगे।
दरअसल, कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के कारण पिछले कई दिनों से दूसरे राज्यों से मध्यप्रदेश के प्रवासी मजदूरों के लौटने का क्रम जारी है। अभी तक पहले दौर में करीब 9.88 लाख और सरकारी प्रयासों के तहत ट्रेन और बस से 1.90 लाख मजदूर मध्यप्रदेश में आ चुके हैं। इस तरह करीब 11.78 लाख मजदूर 10 मई तक की स्थिति में मध्यप्रदेश में आ चुके हैं। अब इतनी बड़ी संख्या में लौटे मजदूर मध्यप्रदेश के लिए बड़ी चुनौती हैं। हालांकि इसके लिए सरकार लोक निर्माण, जल संसाधन, पीएचई सहित अन्य विभागों में जल परियोजना और निर्माण काम शुरू कर रही है, लेकिन अभी इन मजदूरों को पंजीबद्ध करके काम नहीं दिया जा सका है। सरकार फिलहाल इन लौट रहे मजदूरों को कैटेग्राइज नहीं कर पाई है। कौन से मजदूर किस स्किल्स के हैं और किस प्रकार की औद्योगिक गतिविधियों के लिए मुफीद रहेंगे, फिलहाल इसका डाटा तैयार नहीं किया गया है। लेकिन, सरकार ने अब इस डाटा फीडिंग की तैयारी शुरू की है। इसमें मजदूरों को उनके काम की श्रेणी के हिसाब से पंजीयत किया जाएगा। ताकि, बाद में उन्हें उनके हिसाब से रोजगार दिया जा सके।
फिर पलायन रोकना बड़ी चुनौती
मध्यप्रदेश में आने के लिए 10 मई की स्थिति में 3.90 लाख मजदूरों ने पंजीयन कराया है, जिसमें से 1.90 लाख मजदूर आ चुके हैं। लेकिन, अभी दो लाख मजदूर और आने है। इससे प्रदेश में 13.78 लाख मजदूरों की मेनपॉवर तैयार हो जाएगी, जिसे काम मुहैया कराने की चुनौती होगी। फिलहाल कोरोना व लॉकडाउन के कारण ये मजदूर मध्यप्रदेश में लौट आए हैं, लेकिन इन्हें रोककर रखना बड़ी चुनौती है। पूर्व में रोजगार नहीं मिलने के कारण इन मजदूरों ने मध्यप्रदेश छोड़ा था। अब पिछले कुछ सालों में प्रदेश का काफी परिदृश्य बदला है। ऐसे में इनके लिए नए रोजगार के अवसर हो सकते हैं, लेकिन कोरोना संकट के कारण चरमराई अर्थव्यवस्था के बीच इनको रोजगार उपलब्ध कराकर वापस पलायन रोकने की चुनौती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निर्देश दिए हैं कि इन्हें रोजगार उपलब्ध कराया जाए, ताकि वापस पलायन न करें। यदि सरकार इन 13.78 लाख मजदूरों के लिए रोजगार का इंतजाम कर पाती है, तो यह सियासी तौर पर भी सरकार के लिए फायदेमंद रहेगा। वजह ये कि बड़ी संख्या में होने के कारण ये वर्ग वोट की दृष्टि से फायदेमंद रह सकता है। यह भाजपा का कमिटेट वोट बैंक बन सकता है। इनमें से अधिकतर मजदूर विंध्य, बुंदेलखंड, मालवा-निमाड़ और चंबल के पिछड़े इलाकों के हैं। इन इलाकों के वोट के गणित से भाजपा को फायदा मिल सकता है।
- सिद्धार्थ पांडे