04-Jun-2020 12:00 AM
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हर साल 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाया जाता है। परिवार! जिसका महिमामंडन सर्वव्यापी है। परिवार नाम की संस्था को हमारे यहां सबसे आदर की नजर से देखा जाता है। परिवार को हर चीज से ऊपर माना जाता है। आज विश्व परिवार दिवस पर परिवार के उस पहलू पर चर्चा करते हैं जिसे आमतौर पर हम अनदेखा करते हैं और सच्चाई से आंख मूंद लेते हैं। परिवार के महिमामंडन में सबसे महत्वपूर्ण होती है भावनात्मक चाशनी। हम इस चाशनी में इतना डूबे रहते हैं कि कभी सिक्के का दूसरा पहलू देख ही नहीं पाते। परिवार से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे और सवाल हैं जिन पर सोचना बहुत जरूरी है। जिस घर-परिवार में सबसे ज्यादा महिलाएं खटती हैं उनके नजरिए से कभी परिवार को देखा ही नहीं जाता। परिवार के वैचारिक पहलुओं पर एक बार के लिए यहां चर्चा नहीं करते हैं बल्कि इसे स्याह-सफेद तरीके से कानून और आंकड़ों के जरिए समझते हैं।
महिलाओं के अधिकारों से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण कानूनों की बात करते हैं। शुरुआत करते हैं सती कानून से जिसे सती प्रिवेंशन एक्ट कहा जाता है जो 1987 में लागू हुआ था। परिवार इस कानून के दायरे में आता है। एक समय औरत को पति के साथ जिंदा जला देने वाले जघन्य अपराध में परिवार की हिस्सेदारी थी। दहेज प्रतिषेध अधिनियम-1961, दहेज के अपराध में 100 फीसदी परिवार शरीक है। वर पक्ष और वधू पक्ष दोनों की भागेदारी रहती है और इनकी भूमिकाएं बदलती रहती हैं। कानून बनने के बावजूद दहेज भी चल रहा है और दहेज हत्याएं भी चल रही हैं। वर्ष 2018 की एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार दहेज हत्या के 7277 मामले दर्ज हुए हैं। यानी हर रोज 20 लड़कियों को दहेज के लिए मार दिया जाता है। ये संख्या वर्ष 2017 में 7166 थी। यानी अपराध की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। लिंग चयन प्रतिषेध अधिनियम-1994, जिसे भ्रूण हत्या को रोकने के अमल में लाया गया। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का बाल लिंगानुपात 919 है। भ्रूण हत्या जैसे अपराध का कार्यस्थल परिवार ही है और निजी जन इसमें शामिल हैं। अगर हम परिवार को बालिकाओं का वध-स्थल कहें तो क्या गलत कहेंगे। क्या हम इस अपराध के लिए परिवार को बरी कर सकते हैं? घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम-2005, ये कानून भी परिवार और हमारे सबसे करीबियों पर लागू होता है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार पति और नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के एक लाख चार हजार एक सौ पैंसठ (1,04,165) मामले दर्ज हुए हैं। यानी हर रोज 285, यानी हर घंटे 11 महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं। ये अपराध भी परिवार और घर की चार दीवारी के अंदर अपने करीबियों द्वारा अंजाम दिया जाता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार 31 प्रतिशत महिलाएं अपने पति से हिंसा शिकार होती हैं। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम-2006, जिस कानून को सबसे पहले 1929 में पारित किया गया था। यूनिसेफ के अनुसार भारत में हर साल साढ़े दस लाख से ज्यादा लड़कियों का बाल विवाह कर दिया जाता है। यकीनन इसमें गरीबी की वजह से कुछ मजबूरियां भी होंगी लेकिन ये भयानक है। लड़कियों को बचपन में सेक्स गुलाम बना देना और उस समय में बच्चा पैदा करने के लिए भेज देना जब वो खुद बच्ची है, इसे भयानक नहीं तो और क्या कहेंगे। इस अपराध में परिवार और करीबी शामिल हैं।
ऊपर दिए गए आंकड़े उन अपराधों से संबंधित हैं जिनको अपराध की तरह से कानूनी मान्यता मिली है। अभी बहुत सारे ऐसे आपराधिक व्यवहार हैं जो परिवारों में प्रचलित हैं और उन्हें अपराध की तरह नहीं देखा जाता। बहुत सारे जघन्य अपराधों के लिए भी अलग से कोई कानून नहीं है। उदाहरण के लिए इज्जत के नाम पर होने वाली हत्याओं के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। जबकि लंबे समय से महिला आंदोलन और सिविल सोसाइटी इसके लिए मांग कर रही है। वैवाहिक बलात्कार पर कोई कानून नहीं है। बड़े पैमाने पर महिलाएं इसकी शिकार हैं। लेकिन इसे अपराध की तरह देखा ही नहीं जाता। शादी के साथ ही औरत के शरीर पर एकमुश्त और कदीमी अधिकार पुरुष को मिल जाता है। अजीब बात ये है कि इसे हमारा समाज स्वाभाविक और सामान्य मानता है। इसके अलावा अन्य बलात्कार और यौन उत्पीड़न की वारदात में भी बड़ी संख्या में परिजन और परिचितों के शामिल होने के आंकड़े सामने आते हैं।
मात्र 38 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर ही जमीन का पट्टा
अब परिवार में महिलाओं के श्रम और संसाधनों पर अधिकार एवं निर्णयों में भागेदारी की स्थिति देखिए। मात्र 38 प्रतिशत महिलाओं के नाम पर ही जमीन का पट्टा है। इसमें सिर्फ महिलाओं को ही मिलने वाली योजना और संयुक्त पट्टा भी शामिल है। मात्र 45 प्रतिशत महिलाओं के पास मोबाइल फोन है। अगर बिल्कुल बेसिक हाइजिन की बात करें तो 57 प्रतिशत महिलाओं को आज भी माहवारी के दौरान बेसिक हाइजिन सुविधा उपलब्ध नहीं है। ये आंकड़ें चीख-चीखकर एक कहानी को बता रहे हैं। महिलाओं से संबंधित जो भी महत्वपूर्ण कानून हैं और जो जघन्य अपराध हैं परिवार उसकी कार्यस्थली है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध श्रेणी के अंतर्गत दर्ज हुए कुल अपराधों में से 31 प्रतिशत अपराध पति और करीबियों के द्वारा किए गए हैं। क्या हमें परिवार को अपराध मुक्त करने की सख्त जरूरत नहीं है? क्या हम ये नहीं देखना चाहते? हमें ये समझना होगा कि परिवार नाम की संस्था में सुधार की सख्त आवश्यकता है। हमें इसे आलोचनात्मक नजरिए से देखना होगा और परिवार के जनतांत्रीकरण के लिए और इसे अपराध मुक्त करने के प्रयास तेज करने होंगे।
- ज्योत्सना अनूप यादव