मप्र जैविक खेती करने वाला देश का नंबर-1 राज्य बन गया है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि यहां के माननीय अभी भी परंपरागत खेती कर रहे हैं। दरअसल, प्रदेश सरकार के अधिकांश मंत्रियों और विधायकों ने अपना पेशा तो खेती-किसानी बताया है, लेकिन वे इसमें अपना समय नहीं देते हैं। ऐसे में वे प्रदेश सरकार के नवाचार का उपयोग नहीं कर पा रहे हैं।
मप्र जैविक खेती और इससे जुड़े उत्पादों के निर्यात में देश में अव्वल है। प्रदेश में लगातार जैविक खेती का क्षेत्र बढ़ रहा है। लेकिन रासायनिक खेती का उपयोग कम नहीं हो रहा है। इसकी एक वजह यह है कि प्रदेश के माननीयों (सांसदों, मंत्रियों, विधायकों) का जैविक खेती से कोई सरोकार नहीं है। प्रदेश सरकार के 23 मंत्रियों का पेशा भी खेती किसानी है, लेकिन उनमें से अधिकांश जैविक खेती से काफी दूर हैं।
गौरतलब है कि प्रदेश में सरकार ने जैविक व प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना तय किया है। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों को जैविक व प्राकृतिक खेती का मॉडल पेश करने के लिए कहा है, लेकिन अधिकतर मंत्री अभी खेती के प्रयोगों से दूर हैं। मुख्यमंत्री खुद प्राकृतिक खेती करते हैं, लेकिन उनके मंत्रीगण परंपरागत खेती की राह पर हैं। शिवराज अनार से लेकर आम तक उगाते हैं, लेकिन उनके मंत्रीगण प्राकृतिक व जैविक खेती से दूर हैं।
मप्र जैविक खेती और इससे जुड़े उत्पादों के निर्यात में देश में अव्वल है। प्रदेश में लगातार जैविक खेती का क्षेत्र बढ़ रहा है। वर्ष 2017-18 में 11 लाख 56 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही थी। जबकि, वर्ष 2020-21 में यह क्षेत्र बढ़कर 16 लाख 37 हजार हेक्टेयर से अधिक हो गया है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) की वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश से पांच लाख टन जैविक उत्पाद का निर्यात हुआ, जो ढाई हजार करोड़ रुपए से अधिक का था।
प्रदेश सरकार के 30 मंत्रियों में से 23 मंत्री खेती करते हैं, लेकिन अधिकतर खेती-किसानी के प्रयोगों से दूर हैं। इसकी बड़ी वजह खेती के लिए अमले पर निर्भर रहना है। ऐसे में मंत्रीगण ने मुख्यमंत्री के निर्देशों के बावजूद अब तक प्राकृतिक व जैविक खेती को लेकर कोई कदम नहीं उठाया है। प्रदेश सरकार के जिन 23 मंत्रियों का पेशा खेती किसानी है उनमें अरविंद भदौरिया, प्रद्युम्न सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, महेंद्र सिंह सिसौदिया, भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, गोपाल भार्गव, ब्रजेंद्र प्रताप सिंह, कमल पटेल, प्रभुराम चौधरी, बिसाहूलाल सिंह, इंदर सिंह परमार, विजय शाह, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, तुलसी सिलावट, मोहन यादव, हरदीप सिंह डंग, ओमप्रकाश सखलेचा, ओपीएस भदौरिया, भारत सिंह कुशवाह, सुरेश धाकड़, ब्रजेंद्र सिंह यादव और रामखिलावन पटेल शामिल हैंं।
मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद अब जैविक खेती के लिए कुछ मंत्रीगण तैयारी कर रहे हैं। पहले कुछ एकड़ में प्रयोग करेंगे, फिर उसके बाद आगे कदम उठाए जाएंगे। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी भी मुख्यत: खेती का व्यवसाय करते हैं। अभी तक उन्होंने जैविक व प्राकृतिक खेती नहीं की है। प्रभुराम चौधरी का कहना है कि अभी तक जैविक खेती नहीं की है, लेकिन इस बार दो एकड़ में यह प्रयोग करने का विचार है। वहीं पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव, नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह, राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और अन्य कई मंत्री परंपरागत खेती ही करते हैं। लेकिन अब जैविक खेती की तैयारी कर रहे हैं। कुछ ऐसे भी मंत्री हैं, जिन्होंने रिकार्ड पर खुद को किसान बताया है, लेकिन खेती से दूर ही रहते हैं। इनमें स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार शामिल हैं। इंदर की सीधे तौर पर कोई खेती नहीं है। इसी तरह सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया भी मुख्य रूप से खेती का रिकार्ड पेश करते हैं, लेकिन सीधे तौर पर खेती नहीं करते। ऐसे ही अनेक मंत्रीगण खेती से दूर रहते हैं। वही राज्यमंत्री बृजेंद्र सिंह कहते हैं कि एक बीघा में घर के उपयोग के लिए धान की खेती जैविक की थी। बाकी नहीं। यदि मंत्रियों के अलावा विधायकों की बात की जाए, तो भी करीब 80 फीसदी विधायक खेती-किसानी करना बताते हैं, लेकिन व्यावहारिक तौर पर कई इससे दूर हैं। विधायकों में कई विधायक जैविक खेती करते हंै। अभी 230 में से करीब 175 से ज्यादा विधायक खेती-किसानी से जुड़े हैं। बड़ी संख्या में विधायक ऐसे हैं, जिनके पास खेती की भूमि है, लेकिन खेती नहीं करते।
दरअसल, जैविक खेती से उत्पन्न खाद्य उत्पादों की विदेशों में बढ़ती मांग भी इसके महत्व को प्रदर्शित करती है। मुख्यत: ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड, इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात तथा वियतनाम जैसे देशों में निर्यात की संभावनाएं बनी हैं। मुख्यमंत्री ने कृषि निर्यात पर विशेष ध्यान देने के लिए कहा है। इस दृष्टि से मप्र के लिए भी भविष्य में जैविक उत्पाद के निर्यात की नई संभावनाएं बनेंगी।
प्रदेश में जैविक खेती का कुल क्षेत्र लगभग 16 लाख 37 हजार हेक्टेयर है, जो देश में सर्वाधिक है। जैविक उत्पाद का उत्पादन 14 लाख 2 हजार मीट्रिक टन रहा, जो क्षेत्रफल की भांति ही देश में सर्वाधिक है। जैविक खेती को प्रोत्साहन स्वरूप प्रदेश में कुल 17 लाख 31 हजार क्षेत्र हेक्टेयर जैविक प्रमाणिक है, जिसमें से 16 लाख 38 हजार एपीडा से और 93 हजार हेक्टेयर क्षेत्र, पीजीएस से पंजीकृत है। इस तरह पंजीकृत जैविक क्षेत्र के मामले में भी मप्र देश में अग्रणी है।
कृषि मंत्री कमल पटेल बताते हैं कि मप्र में 17 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में 7 लाख 73 हजार 902 किसान जैविक खेती कर रहे हैं। यह भी देश के दूसरे राज्यों से ज्यादा है। क्योंकि पूरे देश में 43 लाख किसान ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। जिसमें से पौने आठ लाख किसान अकेले मप्र के हैं। इसलिए हम जैविक कृषि उत्पादों के एक्सपोर्ट में भी नंबर वन पर हैं। साल 2020-21 में देश से कुल 7078 करोड़ रुपए के ऑर्गेनिक कृषि प्रोडक्ट दूसरे देशों को भेजे गए, जिसमें से 2683 करोड़ रुपए अकेले हमारे मप्र के हैं।
जैविक खेती में देश में अग्रणी है मप्र
प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल का कहना है कि देश के अन्य प्रदेश आज जब जैविक खेती की दिशा में कार्य शुरू कर रहे हैं तो मप्र की तारीफ करनी होगी जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने वर्ष 2011 में ही जैविक कृषि नीति तैयार कर उस पर अमल शुरू कर दिया था। इसी का परिणाम है कि मप्र को न केवल जैविक कृषि लागू करने वाला देश के पहले प्रदेश बल्कि देश में सर्वाधिक प्रमाणित जैविक कृषि क्षेत्र वाले प्रदेश होने का गौरव भी हासिल है। कृषि के क्षेत्र में मप्र की अपनी विशेषताएं हैं और यह पिछले डेढ़ दशक में प्रमाणित भी हुआ है। इस अरसे में प्रदेश की कृषि विकास दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। खेती-किसानी नुकसान के जाल से बाहर निकली। अन्नदाताओं को उनकी मेहनत का फल वाजिब दामों के रूप में मिला। प्राकृतिक आपदाओं और मानसून की बेरूखी से होने वाले नुकसान के समय में सरकार के किसानों के साथ खड़े होने से प्रदेश का कृषि परिदृश्य लगातार बेहतर हुआ। आर्गेनिक वर्ल्ड रिपोर्ट 2021 के आधार पर वर्ष 2019 में विश्व का 72.3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र जैविक खेती हेतु उपयोग में लिया गया है। इसमें एशिया का 5.1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र भी शामिल है। भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती में वृद्धि हुई है जिसमें मप्र जैसे राज्यों का विशेष योगदान है। इसका मुख्य कारण अधिक रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों से होने वाला दुष्प्रभाव हैं, जिसने सरकार को इस दिशा में विचार करने के लिए प्रेरित किया। जैविक खेती के अंतर्गत मुख्यत: खाद्यान्न फसलें, दलहन, तिलहन, सब्जियां तथा बागान वाली वाली फसलों का उत्पादन किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री करते हैं जैविक खेती
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कृषि मंत्री कमल पटेल कुछ हद तक जैविक खेती करते हैं। मुख्यमंत्री की विदिशा में खाम बाबा टीला बेसनगर और छीरखेड़ा के पास खेती है। वे यहां जरबेरा के फूलों सहित प्याज, सब्जियां, अनार और कई तरह के आम का उत्पादन लेते हैं। गेहूं-चने की भी यहां खेती होती है। इनकी खेती में एक बड़ा हिस्सा जैविक खेती का है। खुद शिवराज अक्सर अपनी खेती देखने के लिए पहुंचते हैं। अपने खेत के अनार और आम आदि फलों को ये कार्टून में पैक कर मार्केटिंग के लिए भेजते हैं। जरबेरा के फूलों के लिए पॉलीहाउस एवं ग्रीन हाउस बनवा रखे हैं, फूलों का यहां बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है जिनकी मार्केटिंग प्रदेश सहित आसपास के राज्यों के बड़े नगरों में भी होती है। मुख्यमंत्री की खुद की बड़ी डेयरी है, जिसके गोबर का उपयोग खाद के रूप में होता है। कृषि मंत्री कमल पटेल को भी जैविक कृषि पसंद है। वे इस पर भरोसा करते हैं। कृषि मंत्री का कहना है कि ग्राम बारंगा में स्थित उनके 10 एकड़ खेत में अरहर की जैविक फसल लगाई है। फसल में पूर्ण रूप से गोबर की जैविक खाद का उपयोग किया गया। जैविक खाद से जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी और शुद्ध फसल का उत्पादन मिलेगा।
जैविक कृषि की विस्तृत कार्ययोजना तैयार
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देश पर प्राकृतिक और जैविक कृषि की विस्तृत कार्य-योजना तैयार की जा रही है। नर्मदा के किनारे के सिंचित परंतु अधिक रसायन के उपयोग वाले कृषि क्षेत्रों को चिन्हित कर प्रारंभिक तौर पर किसानों के कुल रकबे में से कुछ क्षेत्र में जैविक कृषि को प्रोत्साहन देने पर काम किया जाएगा। राज्य जैविक खेती विकास परिषद का पंजीयन भी किया गया है। प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में जैविक-प्राकृतिक खेती को शामिल करने की योजना है। दोनों कृषि विश्वविद्यालय में कम से कम 25 हेक्टेयर भूमि को प्राकृतिक खेती प्रदर्शन क्षेत्र में बदला जाएगा। जैविक खेती में प्रदेश को देश में अग्रणी बनाने में परम्परागत कृषि विकास योजना का भी योगदान रहा है। योजना में भारत सरकार द्वारा अभी तक 3,728 क्लस्टर अनुमोदित किए गए हैं। इन क्लस्टरों में करीब एक लाख 16 हजार कृषक शामिल है, जो सभी पीजीएस पोर्टल पर पंजीकृत है। पंजीकृत कृषकों के जैविक उत्पादों की स्थानीय स्तर पर तथा जैविक केंद्र, मंडला और जबलपुर के माध्यम से मार्केटिंग में मदद की जा रही है।
- कुमार विनोद