'माही' तुम बहुत याद आओगे!
03-Sep-2020 12:00 AM 3874

 

एमएस धोनी उर्फ 'माही' ने आखिरकार इंटरनेशनल क्रिकेट के सभी फॉर्मेट को अलविदा कह दिया, मतलब ऐसे खिलाड़ी को अब हम वन-डे या टी 20 में खेलते हुए नहीं देख पाएंगे। हां क्रिकेट के अन्य फॉर्मेट जैसे आईपीएल इत्यादि में हम अभी भी कप्तान कूल को खेलते हुए देख सकते हैं।

क्रिकेट हिन्दुस्तान में क्या अहमियत रखता है इस पर कुछ कहने की जरूरत नहीं है लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि जब क्रिकेट चलता है तो बस क्रिकेट ही चलता है, बाकी सब बंद रहता है। किसी भी खिलाड़ी के लिए लगातार क्रिकेट  खेलना, वह भी हिन्दुस्तान के लिए जहां जरूरत से बहुत ज्यादा क्रिकेट खेली जाती है, बहुत मुश्किल होता है। लगातार खेलते हुए फॉर्म बरकरार रखना, फिटनेस बरकरार रखना और उससे भी ज्यादा मैदान पर या उसके बाहर भी अपना टेम्परामेंट बरकरार रखना, यह बेहद कठिन होता है। और इस मामले में माही ने अपने समकालीन खिलाड़ियों से कहीं बेहतर किया, इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है।

महेंद्र सिंह धोनी ने एक तरह से छोटे शहरों के टैलेंट का प्रतिनिधित्व किया और बाकी लोगों को अपने सपने के पीछे भागने का हौसला दिया। साल 2006-07 के दौर में जब इंटरनेट का आगमन हो चुका था और दुनिया तेजी से बदल रही थी। उस समय हर फील्ड में छोटे शहरों के लोगों की भूमिका बढ़ रही थी। फिल्मों में इरफान, अनुराग कश्यप, नवाजुद्दीन सिद्दीकी समेत ढेरों नए चेहरे स्थापित हो रहे थे, वहीं टाटा, बिरला जैसी स्थापित कंपनियों की भीड़ में कई नए स्टार्टअप्स अपनी जगह बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे थे। उस दौर में हर किसी की जुबान पर था कि देखो, धोनी जब मेहनत से इतना ऊंचा मुकाम हासिल कर सकता है तो फिर हम क्यों नहीं कर सकते। जिस तरह 80 के दशक में पैदा हुए हर खिलाड़ी के आदर्श सचिन थे, उसी तरह 90 के दशक में पैदा हर खिलाड़ी और जीवन में कुछ बड़ा करने की ख्वाहिशों के गुलाम हर शख्स की जुबां पर धोनी एक उदाहरण और सच के तौर पर थे।

7 जुलाई 1981 को तत्कालीन बिहार के रांची जिले में एक पंप ऑपरेटर के घर पैदा हुए महेंद्र सिंह धोनी को फुटबॉल खेलना और खासकर गोलकीपिंग बेहद पसंद था, लेकिन उनकी किस्मत में क्रिकेट खेलना था। एक दिन अचानक उन्हें स्कूल क्रिकेट टीम में विकेटकीपिंग का मौका मिला और फिर धोनी ने उसमें इतना अच्छा कर दिया कि क्रिकेट उनके जीवन का हिस्सा बन गया। सचिन तेंदुलकर को खेलते देख धोनी भी क्रिकेटर बनने का सपना देखने लगे और अपनी अथक मेहनत के साथ ही ढेरों चुनौतियों को पार करते वह आगे बढ़ते गए। धोनी के क्रिकेट जीवन का शुरुआती सफर कितना मुश्किल भरा था, ये आप उनकी बायोपिक में देख चुके हैं, लेकिन जो आपने नहीं देखा, वो है धोनी का जुनून और जज्बा। ऐसा जज्बा, जो उन्हें किसी भी परिस्थिति में हारने नहीं देता। 1999-2000 के दौरान बिहार रणजी क्रिकेट टीम और फिर 2002-03 में झारखंड क्रिकेट टीम के अभिन्न अंग के रूप में अपनी प्रतिभा साबित करने के बाद धोनी का चयन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम में होता है। साल 2004 का 23 दिसंबर, चटगांव में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे मैच में डेब्यू करने वाले धोनी कुछ खास नहीं कर पाए, लेकिन उनकी प्रतिभा से चयनकर्ता और दर्शक दोनों वाकिफ थे, ऐसे में उन्हें मौका मिलता रहा और फिर धोनी ने ऐसा जादू चलाया कि पूरी दुनिया उनकी विकेटकीपिंग और बैटिंग की कायल हो गई। ठीक एक साल बाद यानी दिसंबर 2005 में धोनी ने श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट मैच में पर्दापण किया और फिर क्रिकेट के दोनों शीर्ष फॉर्मेट यानी टेस्ट और वनडे में धोनी ने अपने शानदार परफॉर्मेंस से जगह पक्की कर ली।

धोनी ने साल 2004 में डेब्यू करने के बाद लगभग हर वनडे और टेस्ट सीरीज में बेहतरीन प्रदर्शन किया और इसका उन्हें रिवॉर्ड भी मिला। जून 2007 में उन्हें क्रिकेट के नए और उभरते फॉर्मेट टी20 के लिए भारतीय क्रिकेट टीम का कप्तान बना दिया गया। वहीं सितंबर 2007 में धोनी को एक दिवसीय मैचों के लिए भी भारतीय टीम को लीड करने का जिम्मा दे दिया गया। धोनी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पर्दापण के महज 3 साल के अंदर वनडे और टी20 फॉर्मेट में भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बन गए। अब दौर था धोनी का, जो भारतीय टीम की बेहतरी के लिए बड़े से बड़ा फैसला लेने से चूकता नहीं था। कप्तान बनने के बाद धोनी ने इंडियन टीम को यंग बनाने का फैसला किया और चयनकर्ताओं को साफ-साफ कह दिया कि वह अपनी टीम में कुछ नए चेहरे को शामिल करना चाहते हैं, जिसके लिए पुराने चेहरे को टीम से बाहर निकालना होगा। ऐसे समय में टी20 फॉर्मेट में सचिन तेंदुलकर, अनिल कुंबले और सौरभ गांगुली जैसे खिलाड़ियों को विश्राम दिया गया। धोनी के इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई, लेकिन जब धोनी ने रोहित शर्मा, गौतम गंभीर, जोगिंदर शर्मा, दिनेश कार्तिक, इरफान पठान, आरपी सिंह, एस श्रीसंत, रॉबिन उथप्पा और युवराज सिंह जैसे यंग खिलाड़ियों के साथ टी-20 वर्ल्ड कप का मुकाबला जीत लिया तो दुनिया ने धोनी के कड़े फैसले की हकीकत जानी और लोग लोहा मान बैठे कि धोनी जो फैसला करता है, वह टीम के साथ ही देश हित में होता है।

धोनी के साहसिक फैसले के बदली फिजा

धोनी ने भारतीय टीम की पहले से स्थापित व्यवस्था को कड़ी चुनौती देते हुए महानगरों के मठाधीशों को चैलेंज किया और फिर अपनी यंग टीम के बुते ऐसा कर दिखाया कि बड़े-बड़े खिलाड़ियों को उनकी हकीकत और भविष्य में क्रिकेट के स्वरूप का अंदाजा हो गया। ऐसी स्थिति में वह खुद ही या तो संन्यास लेने लगे या चयनकर्ताओं के साथ ही धोनी के फैसले का सम्मान करने लगे। सितंबर 2007 विश्व कप में भारतीय क्रिकेट टीम के खराब प्रदर्शन के बाद जब टीम की कप्तानी राहुल द्रविड़ से महेंद्र सिंह धोनी को सौंपी गई, तभी धोनी ने फैसला कर लिया कि साल 2011 के आईसीसी वनडे विश्व कप के लिए वह ऐसी टीम बनाएंगे, जो हर मुश्किल में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है और भारतीय क्रिकेट को बुलंदियों पर ले जाने से साथ ही भारत को दोबारा विश्व कर दिला सकती है। धोनी ने इसी रणनीति के तरह एक ऐसी टीम बनाई, जिसमें छोटे शहर के स्टार्स प्लेयर थे।

-आशीष नेमा

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