19-May-2020 12:00 AM
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शराब, डीजल और पेट्रोल के भरोसे राज्य
भारत में इस वक्त अभूतपूर्व आर्थिक मंदी छाई है, जिसे कुछ लोग आर्थिक आपात भी करार दे रहे हैं। मुख्य आर्थिक क्षेत्रों में विकास पूरी तरह सिकुड़ गया है, साथ में घरेलू और ग्रामीण खपत भी कम हो गई है। महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगभग न के बराबर ही आ रहा है। इसका ग्रामीण गरीबों, शहरी अनौपचारिक क्षेत्र और मध्यम वर्ग पर बहुत बुरा असर पड़ा है। आलम यह है कि राज्यों के पास आय के लिए शराब और डीजल-पेट्रोल ही साधन बचे हैं।
अपनी आर्थिक नीति की खामियों के कारण देश पहले से आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा था कि कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था की पूरी कमर तोड़ दी। किसी एक क्षेत्र का नहीं बल्कि पूरी व्यवस्था का लकडाउन (भाग्य खराब) हो गया है। 30,42,230 करोड़ रुपए के बजट वाली केंद्र सरकार का खजाना खाली है। वहीं राज्यों की स्थिति बदहाल है। ऐसे में लॉकडाउन ने देश और प्रदेशों को ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां उन्हें अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए शराब और डीजल-पेट्रोल का सहारा लेना पड़ रहा है। राज्यों की स्थिति इतनी खराब है कि वे केंद्र से आर्थिक पैकेज की मांग कर रहे हैं और केंद्र की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि वह आंकड़ों की बाजीगरी करने में जुटी हुई है। आलम यह है कि कोरोना के इस संक्रमणकाल में भी शराब की दुकानें खोलने का निर्णय लिया गया है। शराब दुकानों पर उमड़ती भीड़ को देखकर कई राज्यों की आंखों में चमक आई है और उन्होंने शराब पर कोरोना टैक्स जड़ दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हमारे देश की अर्थव्यवस्था इतनी कंगाली में पहुंच गई है कि केंद्र सरकार के पास राज्यों को देने के लिए बजट भी नहीं है।
नीति साफ, नीयत खराब
अगर केंद्र सरकार की नीति और उसके क्रियान्वयन का आकलन करें तो यह साफ परिलक्षित होता है कि सरकार की नीति तो साफ है लेकिन नीयत खराब है। दरअसल, एक तरफ सरकार गांव, गरीब, मजदूर और जरूरतमंदों के लिए बनाई गई योजनाओं के फंड में कटौती करती रही है। वहीं दूसरी तरफ सांसदों और विधायकों को खुले हाथ से फंड, वेतन और सुविधाएं बांटती रहती है। कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद देश के सांसदों के वेतन में 30 फीसदी कटौती का प्रावधान किया गया है। वहीं सांसद निधि भी दो साल के लिए सस्पेंड कर दी गई है। लेकिन इससे न तो आर्थिक बदहाली दूर हो सकती है और न ही अर्थव्यवस्था को मजबूती मिल सकती है। अगर सरकार शुरू से ही माननीयों पर किए जा रहे खर्च को सीमित रखती तो आज उक्त राशि से इस महामारी के कारण आई आर्थिक तंगी से निपटा जा सकता था। लेकिन सरकार ने कभी भी माननीयों की सहूलियतों पर लगाम नहीं लगाई है।
माननीयों पर 100 अरब खर्च
कोरोना संक्रमण सरकार के लिए एक सबक बनकर सामने आया है। सरकार को अपने खर्चे कम करने होंगे तथा माननीयों पर हर साल जो करीब 100 अरब रुपए खर्च किए जाते हैं, उसे भी संतुलित करना होगा। देश में कुल 4120 एमएलए और 462 एमएलसी हैं यानि कुल 4582 विधायक। एक विधायक पर वेतन भत्ता मिलाकर हर महीने 2 लाख का खर्च होता है यानि 4582 विधायकों पर हर महीने 91 करोड़ 64 लाख का खर्च और हर साल 1100 करोड़ का खर्च। वहीं भारत में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को मिलाकर कुल 776 सांसद हैं। सांसदों को वेतन भत्ता मिलाकर हर महीने 5 लाख रुपए दिए जाते हैं। इस हिसाब से 776 सांसदों के वेतन पर हर महीने 38 करोड़ 80 लाख रुपए खर्च होते हैं और हर साल देश के 465 करोड़ 60 लाख रुपया खर्च होता है। ये तो सांसदों और विधायकों पर होने वाला सिर्फ मूल वेतन का खर्च है। इनके आवास, रहने, खाने, यात्राओ, इलाज, विदेशी सैर सपाटा का खर्च भी लगभग इतना ही है। दूसरे खर्चों को भी मूल वेतन के बराबर मानते हुए यानि 15 अरब मानते हुए यह पूरा खर्च 30 अरब तक पहुंच जाता है।
अब गौर कीजिए विधायकों और सांसदों की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर। एक विधायक की सुरक्षा में 7 पुलिसकर्मी तैनात होते हैं। एक पुलिसकर्मी का वेतन 25 हजार रुपए महीना। तो 7 पुलिसकर्मियों के वेतन पर हर महीने खर्च 1 लाख 75 हजार रुपए। इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च मैसेज में 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख है। वहीं सांसदों की सुरक्षा पर हर साल 164 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। जिन नेताओं को जेड श्रेणी की सुरक्षा मिली है यानि मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं। इस सुरक्षा पर हर साल करीब 776 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। हर साल नेताओं के वेतन सुरक्षा और भत्तों पर 50 अरब खर्च होते हैं लेकिन इन खर्चों में राज्यपाल, पूर्व नेताओं की पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष और उनकी सुरक्षा का खर्च शामिल नहीं है। अगर उस खर्च को भी इसमें जोड़ दिया जाए कुल खर्च लगभग 100 अरब रुपया हो जाएगा। लेकिन देश में आजादी के बाद से लेकर अभी तक किसी भी सरकार ने माननीयों की सुविधाओं में कटौती करने की कोशिश नहीं की। देश में एक तबका जहां एक-एक रोटी के लिए तरस रहा है वहीं दूसरी तरफ माननीयों के वेतनभत्तों और सुख-सुविधाओं पर हर साल अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इससे देश में खुशहाली नहीं आने वाली।
कैसे होती है राज्यों की कमाई
देश पिछले दो साल से लगातार आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। इस कारण केंद्र सरकार राज्यों को उनके हिस्से का पर्याप्त फंड नहीं दे रही है। इससे राज्यों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है। ऐसे दौर में कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण किए गए लॉकडाउन ने राज्यों का भी लकडाउन कर दिया है। राज्यों की कमाई के भी स्रोत बंद हो गए हैं। असल में राज्यों की कमाई के मुख्य स्रोत हैं- राज्य जीएसटी, भू-राजस्व, पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट या सेल्स टैक्स, शराब पर लगने वाला एक्साइज और गाड़ियों आदि पर लगने वाले कई अन्य टैक्स। शराब पर लगने वाला एक्साइज टैक्स यानि आबकारी शुल्क राज्यों के राजस्व में एक बड़ा योगदान करता है। शराब और पेट्रोल-डीजल को जीएसटी से बाहर रखा गया है। इसलिए राज्य इन पर भारी टैक्स लगाकर अपना राजस्व बढ़ाते हैं। हाल में राजस्थान सरकार ने शराब पर एक्साइज टैक्स 10 फीसदी बढ़ा दिया। राज्य में अब देश में निर्मित विदेशी शराब पर टैक्स 35 से 45 फीसदी तक हो गया है। इसी तरह बीयर पर भी टैक्स बढ़ाकर 45 फीसदी कर दिया गया है। यानी 100 रुपये की बीयर में 45 रुपया तो ग्राहक सरकार को टैक्स ही दे देता है। इसके अलावा राज्यों को केंद्रीय जीएसटी से हिस्सा मिलता है। लेकिन केंद्र सरकार कई महीनों से राज्यों को जीएसटी का हिस्सा नहीं दे पा रही, जिसको लेकर राज्यों ने कई बार शिकायत भी की है। राज्यों के राजस्व का बड़ा हिस्सा शराब और पेट्रोल-डीजल की बिक्री से आता है। लॉकडाउन की वजह से इन दोनों की बिक्री ठप थी, इस वजह से राज्यों की वित्तीय हालत खराब हो गई थी। हालत यह हो गई थी कि कई राज्यों को 1.5 से 2 फीसदी ज्यादा ब्याज पर कर्ज लेना पड़ा था। इससे राज्यों पर आर्थिक बोझ और बढ़ा है। वहीं केंद्र सरकार अभी राज्यों को फंड देने की स्थिति में नहीं है।
हर दिन 700 करोड़ का नुकसान
देश में शराब का आर्थिक महत्व कितना है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लॉकडाउन के दौरान शराब नहीं बिकने से राज्यों को हर दिन 700 करोड़ रुपए तक का नुकसान हो रहा था। जब शराब बिकती है तो सरकारें हर साल 24 प्रतिशत तक की कमाई कर लेती हैं। लेकिन, सवाल यह है कि जब 40 दिन से देश में टोटल लॉकडाउन था और 17 मई तक भी लॉकडाउन ही रहेगा, तो फिर शराब की दुकानें खोलने की क्या जल्दबाजी थी? जवाब है- राज्यों की अर्थव्यवस्था। दरअसल, शराब की बिक्री से राज्यों को सालाना 24 प्रतिशत तक की कमाई होती है। पिछले साल ही शराब बेचने से राज्य सरकारों को 2.5 लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू मिला था। लेकिन, लॉकडाउन की वजह से देशभर में शराब बंदी भी लग गई थी। शराब पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी से सबसे कम सिर्फ 1 प्रतिशत कमाई मिजोरम और नागालैंड को होती है। जबकि, सबसे ज्यादा 24 प्रतिशत कमाई उत्तर प्रदेश और ओडिशा को होती है। बिहार और गुजरात दो ऐसे राज्य हैं, जहां पूरी तरह से शराबबंदी है। 1960 में जब महाराष्ट्र से अलग होकर गुजरात नया राज्य बना, तभी से वहां शराबबंदी लागू है। जबकि, बिहार में अप्रैल 2016 से शराबबंदी है। इसलिए, इन दोनों राज्यों को एक्साइज ड्यूटी से कोई कमाई नहीं होती।
शराब की बिक्री जरूरी क्यों?
25 मार्च को जब लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तो उस समय देशभर में 605 कोरोना संक्रमित थे, जिनमें से 10 की मौत हुई थी। कोरोना का संक्रमण न फैले इसके लिए शराबबंदी भी की गई थी। लेकिन 4 मई को सरकार ने फिर से शराब की दुकानें खोलने की घोषणा कर दी। जबकि उस समय कोरोना का संक्रमण खतरनाक रूप ले चुका था। देशभर में 42,112 लोग संक्रमित थे और 1386 की मौत हो गई थी। इन आकड़ों के बीच सरकार के शराब के फैसले ने सबको हैरान कर दिया है। इस फैसले के बाद जब 4 मई को शराब की दुकानें खुली तो उन पर लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। दिल्ली और मुंबई सहित वे इलाके जहां खतरा अभी भी बरकरार है, वहां भी सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए हजारों लोगों की भीड़ दुकानों के बाहर नजर आई। इसके अगले दिन दिल्ली सहित कुछ राज्यों ने शराब पर कोरोना टैक्स भी लगा दिया, लेकिन इसके बाद भी ठेकों पर लोगों की भीड़ कम नहीं हुई है। इस हालत में रेड और ऑरेंज जोन वाले इलाकों में संक्रमण फैलने का खतरा पहले से कई गुना बढ़ गया है। लेकिन, इसके बावजूद किसी भी राज्य सरकार ने शराब की बिक्री का अपना फैसला वापस नहीं लिया है।
खतरे के बावजूद कमाई पर ध्यान
कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के खतरे के बावजूद राज्यों द्वारा शराब की बिक्री पर रोक न लगाने का कारण इससे मिलने वाले राजस्व को माना जा रहा है। शराब से मिलने वाले टैक्स को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से बाहर रखा गया है जिसका लाभ सीधे तौर पर राज्य सरकारों को मिलता है। राज्यों को शराब के निर्माण और बिक्री पर लगाए गए उत्पाद शुल्क से सबसे ज्यादा पैसा मिलता है। इसके अलावा विदेश से आने वाली शराब पर परिवहन शुल्क, लेबल शुल्क और ब्रांड पंजीकरण शुल्क भी लगाए जाते हैं। कुछ राज्य शराब पर अलग से वैट भी वसूलते हैं। उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्य बीते साल से आवारा पशुओं के रखरखाव के लिए भी शराब पर विशेष टैक्स लगाकर फंड जुटा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा बीते साल जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश राज्यों को टैक्स से आने वाले अपने कुल राजस्व का लगभग 10-15 फीसदी हिस्सा अकेले शराब और एल्कोहल से बनने वाले अन्य उत्पादों से मिलता है। कुछ राज्य तो ऐसे भी हैं जिनके राजस्व का 30 से 50 फीसदी तक का हिस्सा शराब से मिलने वाले उत्पाद शुल्क से आता है। यही वजह है कि जब शराब को जीएसटी में शामिल किया जा रहा था तो ज्यादातर राज्य सरकारें केंद्र के इस फैसले के खिलाफ थी। उन्होंने जीएसटी का समर्थन तब किया जब केंद्र ने शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने का निर्णय लिया। आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान दिल्ली और पुदुचेरी सहित देश के 29 राज्यों ने शराब पर उत्पाद शुल्क के जरिए संयुक्त रूप से एक लाख 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की। 2019-20 के दौरान इसमें 16 फीसदी की वृद्धि हुई और यह आंकड़ा एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए को पार कर गया। वित्त वर्ष 2018-19 में सभी राज्यों ने संयुक्त रूप से हर महीने औसतन करीब 13 हजार करोड़ रुपए शराब से कमाए। जबकि 2019-20 में कमाई का यह आंकड़ा 15,000 करोड़ रुपए प्रति माह था। अधिकारियों की मानें तो वर्तमान वित्त वर्ष में राज्य सरकारों को शराब से और भी अधिक राजस्व मिलने की उम्मीद थी।
राज्यों ने लगाया कोरोना टैक्स
लॉकडाउन के बावजूद 4 मई को जब कई राज्यों में शराब की दुकानें खुलीं तो लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। इस सैलाब को देखकर सरकारों की आंखें चमक उठी और उन्होंने शराब पर कोरोना टैक्स लगा दिया। यहां तक कि जो आंध्र प्रदेश सरकार शराब बंदी की ओर कदम बढ़ा रही थी, उसने भी 25 फीसदी का 'मदिरा निषेध कर’ लगाकर शराब की बिक्री शुरू कर दी है। तमिलनाडु सरकार ने दूसरी बार शराब के रेट में बढ़ोत्तरी की है। उसने 180 मिली लीटर शराब पर 20 रुपए बढ़ाए हैं। 750 मिलीलीटर शराब की बोतल पर 40 से 80 रुपए कीमत बढ़ जाएगी। इस वृद्धि से तमिलनाडु को 2500 करोड़ अतिरिक्त राजस्व की प्राप्ति होगी। लॉकडाउन में जबसे दुकानें बंद थी इससे तमिलनाडु सरकार को 3600 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो चुका है। आंध्र प्रदेश सरकार ने शराब की कीमतों में 50 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी। उसने एक दिन पहले ही कीमत 25 प्रतिशत बढ़ाई थी। शराब की कीमत 50 फीसदी बढ़ाने के बाद आंध्र प्रदेश को सालाना 9000 करोड़ का अतिरिक्त राजस्व मिलेगा। इधर, दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शराब पर कोरोना स्पेशल टैक्स लगाते हुए 70 फीसदी की बढ़ोतरी की है। अप्रैल में जहां आमतौर पर दिल्ली में 3500 करोड़ का राजस्व आता था, वहीं अप्रैल माह का राजस्व घटकर 300 करोड़ पर आ गया था। अब दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार की गाइडलाइन के मुताबिक दुकानें खोलने की इजाजत दी है।
उधर, कोरोना संकट के बीच राजस्व वसूली में उत्तर प्रदेश सरकार भी पीछे नहीं है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इंपोर्टेट शराब पर शुल्क बढ़ा दिया है। 100-180 मिलीलीटर पर 100 रुपए और 180 से 500 मिली तक 200 रुपए और 500 से ज्यादा पर 400 रुपए का इजाफा किया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ा दिया है। इस प्रकार वहां एक रुपए डीजल पर और दो रुपए पेट्रोल पर बढ़ गए हैं। वहीं छत्तीसगढ़ में शराब पर राज्य सरकार ने कोरोना टैक्स लगा दिया है। राज्य में शराब तकरीबन 10 फीसदी महंगी हो गई है। वहीं कई अन्य राज्य भी कोरोना टैक्स लगाने की तैयारी कर रहे हैं।
मप्र में भी कोरोना टैक्स?
मध्यप्रदेश सरकार का भी खजाना खाली है। अत: यहां भी सरकार शराब पर कोरोना टैक्स लगा सकती है। गौरतलब है कि मार्च और अप्रैल मिलाकर सरकार का आबकारी के जरिए राजस्व संग्रह का कुल लक्ष्य 3263.69 करोड़ रुपए था, लेकिन प्राप्ति सिर्फ 1463 करोड़ रुपए की हुई। इस तरह राजस्व की कुल 1800. 69 करोड़ रुपए की क्षति हुई। इसमें अप्रैल में 1150 करोड़ लक्ष्य के सापेक्ष महज 121 करोड़ रुपए ही मिल सके। इस तरह अप्रैल में कुल 1029 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। मार्च में 1995 करोड़ के सापेक्ष 1342 करोड़ रुपए की प्राप्ति हुई। मार्च में भी 653 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। 118 करोड़ रुपए वैट की क्षति हुई। अब इसकी भरपाई के लिए सरकार शराब के रेट में वृद्धि करने जा रही है। गौरतलब है कि लॉकडाउन के चलते मध्यप्रदेश सरकार को 1800 करोड़ रुपए के राजस्व की हानि हुई है। इसकी रिकवरी सरकार सालभर में भी नहीं कर पाएगी। जबकि राज्य सरकार का 2020 का लक्ष्य 13,500 करोड़ रुपए है। इसलिए सरकार ने केंद्र सरकार की गाइडलाइन के बाद शराब दुकानों को खोलने का निर्णय लिया। उसकी मंशा है कि वो इससे राजस्व वसूली कर कोरोना से लड़ाई के लिए राजस्व जुटा सके। गौरतलब है कि प्रदेश में 2544 देसी और 1061 विदेशी शराब की दुकानें हैं। यह दुकानें 25 मार्च से बंद हैं।
18 का पेट्रोल 71 रुपए में
शराब के बाद देश और राज्यों को पेट्रोल और डीजल से राजस्व मिलता है। पेट्रोल और डीजल पर एक बार फिर से एक्साइज ड्यूटी में इजाफा होने के साथ ही भारत दुनिया में ईंधन पर सबसे ज्यादा टैक्स लगाने वाला देश बन गया है। विगत दिनों केंद्र सरकार ने डीजल पर 13 रुपए और पेट्रोल पर 10 रुपए की एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने का फैसला लिया था। सरकार को इस कदम से 1.6 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय होने का अनुमान है। इस कमाई के जरिए केंद्र सरकार कोरोना के संकट से निपटने पर खर्च होने वाली रकम का बड़ा हिस्सा निकालना चाहती है। इससे कुछ दिन पहले पेट्रोल और डीजल दोनों पर ही 8 रुपए प्रति लीटर का सेस जोड़ दिया गया था। इसके अलावा दिल्ली समेत कई राज्यों में भी पेट्रोल और डीजल पर वैट को बढ़ा दिया गया है। दरअसल डीलर तक पेट्रोल महज 18.28 रुपए प्रति लीटर की कीमत में आता है, लेकिन ग्राहकों को फिलहाल 71 रुपए से ज्यादा चुकाने पड़ रहे हैं। पेट्रोल पर फिलहाल 32.98 रुपए प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी वसूली जा रही है, जबकि डीजल पर यह दर 31.83 रुपए प्रति लीटर है। हर राज्य जो पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाता है, उसे वैट कहा जाता है। हालांकि राज्यों में इसकी दर अलग-अलग होती है। मध्य प्रदेश, केरल, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों में 30 फीसदी से ज्यादा तक वैट वसूला जा रहा है। उस पर डीलर कमीशन भी जोड़ा जाता है। डीलर कमीशन राज्यों के हिसाब से अलग है।
फिलहाल केंद्र सरकार को बढ़ी हुई एक्साइज ड्यूटी के जरिए 1.6 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई का अनुमान है। हालांकि कई राज्य सरकारों को अप्रैल के महीने में जीएसटी से कमाई में 90 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिली है। ऐसे में पेट्रोल और डीजल से सरकारों को बहुत ज्यादा कमाई होना मुश्किल है। इसकी वजह यह भी है कि फिलहाल देश में पेट्रोल और डीजल की मांग भी बहुत ज्यादा नहीं है।
कुछ और उपाय तलाशने होंगे
कोरोना महामारी ने निसंदेह अर्थव्यवस्था को भारी क्षति पहुंचाई है। पूरी दुनिया की आर्थिकी पटरी से उतर चुकी है। देश-प्रदेश की सरकारों को यह नहीं समझ में आ रहा है कि कैसे पुराने दिन वापस लाए जाएं। इस बीच शराब की बिक्री की इजाजत और पेट्रोलियम पदार्थ की कीमतों में इजाफा होने से कई सवाल भी खड़े हुए हैं। गौरतलब है कि भारत सरकार अलग-अलग टैक्स और स्रोतों से कमाई करती है। ये पैसा वो कल्याणकारी योजनाओं और विकास के कामों में खर्च करती है। मगर जिस तरह से लॉकडाउन के दौरान ही कई राज्य की सरकारों ने अपनी झोली भरने के लिए शराब की बिक्री शुरू की और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि की, वह चिंताजनक है।
स्वाभाविक तौर पर आज देश के सामने दो समस्याएं ज्यादा विकराल हैं। पहला कोरोना महामारी से निजात दिलाना और दूसरा अर्थव्यवस्था जो औंधे मुंह पड़ी हुई है, उसे ऊपर उठाना। कोविड-19 ने दुनिया के कमोबेश हर देश को झकझोर कर रख दिया है और इससे उबरने का नुस्खा किसी के भी समझ से बाहर है। अर्थव्यवस्था को कैसे जीवंत बनाया जाए ज्यादा माथापच्ची इसी बात पर हो रही है। लेकिन जिस तरह से राजस्व बढ़ाने के लिए राज्य सरकारों ने शराब बेचने का फैसला लिया, वह न्यायोचित नहीं कहा जा सकता है। पूरे देश ने देखा कि किस तरह कोरोना से लड़ी जा रही लड़ाई के बीच लोगों ने शराब खरीदने के दौरान नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाई। फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने सीधे तौर पर कहा कि शराब की दुकानों को खोलना राज्य सरकारों के मानसिक दिवालियापन और राजस्व प्राप्त करने के स्वार्थ का जीता जागता सबूत है। लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी अहम मसला है। ऐसे में सवाल तो पूछना बनता है कि जब खतरा इतना बड़ा है, तो इस तरह की लापरवाही क्यों की गई?
राजस्व बढ़ाने का जरिया भले शराब और पेट्रोलियम पदार्थ हैं, लेकिन इस वक्त सरकार को संयम और समझदारी से काम लेना था। बीते वर्ष सितंबर में भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार अधिकतर राज्यों में कुल टैक्स राजस्व का लगभग 10-15 प्रतिशत हिस्सा शराब पर लगने वाले राज्य उत्पाद शुल्क से लिया जाता है, शायद इसी कारण से राज्यों ने शराब को वस्तु एवं सेवाकर के दायरे से बाहर रखा है। लॉकडाउन में शराब बिक्री पर
आंध्र प्रदेश ने 75 फीसद, दिल्ली ने 70 फीसद और उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा ने शराब की बोतल के हिसाब से टैक्स लगाया है। जिससे राज्यों को राजस्व में काफी वृद्धि देखने को मिली है। शराब के साथ-साथ पेट्रोल के दामों में भी तेजी से टैक्स का बढ़ाया जाना वो भी ऐसे समय जब देश में लोगों के पास आमदनी नहीं है, हास्यास्पद ही कहा जाएगा।
सरकार ने मदद नहीं की, बल्कि लोन मेला लगाया
कोरोना समय में लगातार लॉकडाउन से पैदा हुए संकटों का सामना करने के नाम पर एक बार फिर प्रधानमंत्री का भाषण हुआ। भाषण में कुछ नहीं था। बस एक बात थी कि सरकार 20 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज देगी। अगले दिन सभी अखबारों की हेडलाइन 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज पर केंद्रित थी। इससे एक इशारा साफ तौर पर निकलता है कि प्रधानमंत्री के भाषण का मकसद केवल इतना था कि 20 लाख करोड़ रुपए की सरकारी मदद का ऐलान वे अपने मुंह से करें। अब एक-एक करके इसका ब्यौरा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण दे रही हैं और इसी के साथ इसकी हकीकत भी खुलती जा रही है। शुरुआती तीन दिन की घोषणाओं ने ही बता दिया है कि दरअसल इस 20 लाख करोड़ रुपए की सच्चाई क्या है? वाकई 20 लाख करोड़ रुपए बहुत अधिक होते हैं। एक आम इंसान जो सालभर में लाख रुपए की बचत नहीं कर पाता। वह इतनी बड़ी राशि सुनकर अंदाजा ही नहीं लगा पाता कि आखिरकार यह होता कितना है। इसलिए 20 लाख करोड़ रुपए को थोड़ा सरल अंदाज में समझते हैं ताकि बात समझी और समझायी जा सके। यह इतनी बड़ी राशि है कि अगर 130 करोड़ लोगों में बांटी जाए तो सबके जेब में तकरीबन 15 हजार रुपए आ जाएंगे। अगर सुपर अमीरों को छोड़कर बांटा जाए तो सबकी जेब में 20 हजार रुपए आ सकते हैं। यानी 5 लोगों के परिवार को तकरीबन 1 लाख रुपए मिल सकता है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 20 लाख करोड़ रुपए का मतलब क्या है? होना तो यह चाहिए था कि 20 लाख करोड़ रुपए का बंटवारा कैसे होगा? सरकार इसके बारे में एक ही बार में बता दे लेकिन यह नहीं हुआ। पहले प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि इस 20 लाख करोड़ रुपए में रिजर्व बैंक द्वारा दी गई मदद और कोरोना के लिए घोषित किया गया पहला आर्थिक पैकेज भी शामिल है। इस वाक्य को थोड़ा सरल तरीके से समझा जाए तो बात यह है कि इससे पहले करीबन 9.74 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक पैकेज जो पहले ही जारी किया गया है, वह भी इस 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज में शामिल है। इस 9.74 लाख करोड़ रुपए में पहले आर्थिक पैकज में ऐलान की गई 1 लाख 70 हजार करोड़ रुपए की राशि शामिल है, साथ में आरबीआई द्वारा बैंकों को दिया गया तकरीबन 6 लाख करोड़ शामिल है।
राज्यों को कितनी होती है शराब की बिक्री से कमाई
ज्यादातर राज्यों के कुल राजस्व का 15 से 30 फीसदी हिस्सा शराब से आता है। शराब की बिक्री से उप्र के कुल टैक्स राजस्व का करीब 20 फीसदी हिस्सा मिलता है। उत्तराखंड में भी शराब से मिलने वाला आबकारी शुल्क कुल राजस्व का करीब 20 फीसदी होता है। सभी राज्यों की बात की जाए तो पिछले वित्त वर्ष में उन्होंने कुल मिलाकर करीब 2.5 लाख करोड़ रुपए की कमाई यानि टैक्स राजस्व शराब बिक्री से हासिल की थी। शराब की बिक्री से वित्त वर्ष 2019-20 में उत्तर प्रदेश ने 26,000 करोड़, तेलंगाना ने 21,500 करोड़, कर्नाटक ने 20,948 करोड़, पश्चिम बंगाल ने 11,874 करोड़ रुपए, राजस्थान ने 7,800 करोड़ रुपए और पंजाब ने 5,600 करोड़ रुपए का राजस्व हासिल किया था। दिल्ली ने इस दौरान करीब 5,500 करोड़ रुपए का आबकारी शुल्क हासिल किया था। राज्य के कुल राजस्व का यह करीब 14 फीसदी है।
रुक गया कर्मचारियों का 1500 करोड़ का ऐरियर्स
मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश के अधिकारी कर्मचारियों को सातवें वेतनमान का एरियर्स तीन किश्तों में देने का निर्णय किया था। इसके तहत पहली और दूसरी किश्त का भुगतान किया जा चुका है। तीसरी और अंतिम किश्त मई में दी जानी थी लेकिन कोरोना संकट के कारण आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते यह किश्त नहीं दी गई है। वित्त विभाग ने यह निर्णय लिया है कि एरियर की तीसरी किश्त फिलहाल स्थगित रखी जाएगी, लेकिन ऐसे कर्मचारियों को एरियर की किश्त का भुगतान कर दिया जाएगा जो सेवानिवृत्त होंगे या फिर उन्होंने सेवा से इस्तीफा दे दिया हो या फिर संबंधित कर्मचारी की मृत्यु हो गई हो तो परिजनों को एरियर की राशि का भुगतान कर दिया जाएगा। दरअसल, एरियर्स के भुगतान में सरकार को 15 सौ करोड़ रुपए चाहिए। जानकारी के अनुसार इतनी बड़ी राशि फिलहाल सरकार देने की स्थिति में नहीं है। ऐरियर्स की किश्त न मिलने से कर्मचारियों को 15 हजार से 50 हजार रुपए तक का आर्थिक नुकसान होगा। प्रदेश में राज्य सरकार के कर्मचारियों को सातवां वेतनमान के अंतर्गत पुनरीक्षित बढ़े हुए वेतन का लाभ एक जनवरी 2016 से दिया गया है और इसका नगद भुगतान एक जुलाई 2017 से किया गया। जनवरी 2016 से जून 2017 तक कुल 18 माह का ऐरियर्स कर्मचारियों को तीन समान वार्षिक किश्तों में जो मई 2018, मई 2019 एवं मई 2020 में देने का निर्णय लिया गया। प्रदेश के कर्मचारियों को मई 2018 की प्रथम किश्त एवं मई 2019 की दूसरी किश्त प्राप्त हो चुकी है। मई 2020 में ऐरियर्स की तीसरी किश्त मिलनी है। राज्य शासन ने तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को ऐरियर्स का 50 प्रतिशत नकद एवं 50 प्रतिशत सामान्य भविष्य निधि खाते में जमा करने और प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों का 100 प्रतिशत ऐरियर्स की राशि सामान्य भविष्य निधि खाते में जमा करने का निर्णय लिया था।
राज्यों को कहां से कितनी होती है कमाई?
राज्य स्टेट जीएसटी सेल्स टैक्स एक्साइज ड्यूटी स्टॉप ड्यूटी अन्य सोर्स
आंध्र प्रदेश 36 37 11 9 7
अरुणाचल प्रदेश 27 22 14 1 36
असम 52 27 8 2 11
बिहार 53 21 0 14 12
छत्तीसगढ़ 36 17 22 7 19
दिल्ली 53 15 14 12 6
गोवा 48 24 8 11 8
गुजरात 45 27 0 10 18
हिमाचल प्रदेश 41 19 21 4 16
हरियाणा 45 21 14 13 8
झारखंड 54 24 8 3 11
जम्मू-कश्मीर 51 14 14 3 18
कर्नाटक 42 15 21 12 11
केरल 44 36 5 7 8
महाराष्ट्र 49 18 8 13 13
मध्यप्रदेश 37 18 20 10 15
मिजोरम 62 26 1 1 10
नागालैंड 44 32 1 0 23
ओडिशा 42 24 14 7 12
पंजाब 45 17 16 7 14
राजस्थान 39 27 14 7 12
सिक्किम 42 20 24 2 12
तमिलनाडु 39 38 6 11 7
त्रिपुरा 56 20 11 3 10
तेलंगाना 37 32 16 9 6
उत्तराखंड 42 16 21 9 12
उत्तर प्रदेश 35 18 24 14 9
प. बंगाल 46 11 18 10 15
देश में हर व्यक्ति सालाना 5.8 लीटर शराब पीता है
भारत में शराब पीने वाले भी हर साल बढ़ते जा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2005 में हर व्यक्ति (15 साल से ऊपर) 2.4 लीटर शराब पीता था, लेकिन 2016 में ये खपत 5.7 लीटर हो गई। वहीं 2019 में 5.8 लीटर हो गई। हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि देश का हर व्यक्ति शराब पीता है। इसके साथ ही पुरुष और महिलाओं में भी हर साल शराब पीने की मात्रा भी 2010 की तुलना में 2016 में बढ़ गई। 2010 में पुरुष सालाना 7.1 लीटर शराब पीते थे, जिसकी मात्रा 2016 में बढ़कर 9.4 लीटर हो गई। जबकि, 2010 में महिलाएं 1.3 लीटर शराब पीती थीं। 2016 में यही मात्रा बढ़कर 1.7 लीटर हो गई।
साल देश पुरुष महिला
2010 4.3 7.1 1.3
2016 5.7 9.4 1.7
2019 5.8 9.5 1.8
(आंकड़े लीटर में)
- राजेंद्र आगाल