लॉकडाउन है सिर्फ जुगाड़!
03-Apr-2020 12:00 AM 410

कोरोना वायरस पूरी दुनिया में खौफ का दूसरा रूप बन गया है। भारत में भी कोरोना वायरस के नए मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। अभी तक इस बीमारी का कोई इलाज सामने नहीं आया है। भारत में इस बीमारी को रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया है। 14 अप्रैल तक पूरे देश में लॉकडाउन है। इससे देश में स्थिति नियंत्रण में है लेकिन यह इस वायरस से बचने का बस जुगाड़ भर है। भारत सहित पूरे विश्व को इस वायरस से बचने के लिए कोई कारगर दवाई या टीका खोजना होगा। वरना यह महामारी स्पेनिश फ्लू से भी खतरनाक हो जाएगी।

कोरोना यानि 1000 गुना जुकाम। यह जुकाम इतना भयानक होता है कि निमोनिया में तबदील हो जाता है।  अगर इसका समय पर इलाज नहीं होता है तो पीड़ित की मौत हो जाती है। इस समय पूरी दुनिया इसी कोरोना वायरस की चपेट में है। पूरे विश्व में 7 लाख से अधिक लोग इस महामारी की चपेट में आए हैं। इनमें से 33,993 लोगों की मौत हो चुकी है। भारत में 1300 से अधिक लोग संक्रमित हैं, जबकि 45 की मौत हो चुकी है। भारत में वायरस का पहला केस वुहान से 31 जनवरी को केरल में आया था। तब से मध्य मार्च तक पूरे भारत में वायरस प्रदेश-दर-प्रदेश पसरा और अचानक एक दिन जब 'भारत बंद’ का फैसला हुआ तो वह युद्ध मैदान में वायरस से लड़ने के लिए मेडिकल फोर्स, हथियारों, टेस्ट-अस्पतालों से धावा बोल हमले का बिगुल बजाकर नहीं, बल्कि इस जुगाड़ू सोच में है कि घरों में बंद होने से वायरस मर जाएगा। जुगाड़ कामयाब हुआ तो वाह और नहीं तो श्मशान घाट पर बैठकर लोग सोचेंगे कि इससे ज्यादा भला क्या हो सकता था! मौत नहीं टाल सकते!

ऐसे वुहान, इटली, स्पेन, न्यूयार्क या दुनिया के किसी भी देश में नहीं हुआ। वहां लॉकडाउन सचमुच में टेस्ट और मेडिकल महाअभियान का जंग बिगुल था। कार्ययोजना और रोडमैप से लॉकडाउन शुरू हुआ। लड़ाई के पूरे रोडमैप के साथ। मतलब टेस्ट से मौत तक याकि दाहसंस्कार के रोडमैप के साथ है। उस नाते रोडमैप का पहला बिंदु टेस्टिंग है। मगर भारत में लॉकडाउन के बाद भी टेस्टिंग ऊंट के मुंह में जीरा है।  कोरोना वायरस चीन की गलतियों के कारण आज पूरे विश्व में तबाही मचाए हुए है। चीन की वुहान लैब में इबोला, निपाह, सॉर्स और दूसरे घातक वायरसों पर रीसर्च कर रहे वैज्ञानिक अपने माइक्रोस्कोप में एक अजीब सा वायरस नोटिस कर रहे थे। मेडिकल हिस्ट्री में ऐसा वायरस पहले कभी नहीं देखा गया था। इसके जेनेटिक सिक्वेंस को गौर से देखने पर पता चल रहा था कि ये चमगादड़ के करीबी हो सकते हैं। वैज्ञानिक हैरान थे क्योंकि इस वायरस में वो सार्स वायरस के साथ समानता को देख पा रहे थे। जिसने 2002-2003 में चीन में महामारी ला दी थी और दुनियाभर में 700 से ज्यादा लोग मारे गए थे। उस वक्त भी ये बताया गया था कि सार्स छूने और संक्रमित व्यक्ति के छींकने या खांसने से फैलता है। लेकिन तब चीन इस वायरस को छुपा ले गया था।

दिसंबर के शुरुआती हफ्ते में वुहान की सी-फूड मार्केट के इर्द-गिर्द रहने वाले कई लोग बुखार से पीड़ित होने शुरू हो गए। इनके टेस्ट के लिए सैंपल लैब में भेजे गए। जिसके बाद ये सैंपल वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी नेशनल बायोसेफ्टी लैब के पास पहुंचे। यहां वैज्ञानिक के माइक्रोस्कोप जो उन्हें दिखा रहे थे। वो आने वाले जानलेवा ग्लोबल खतरे का संकेत था। मगर चीनी अधिकारियों ने डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को बदनामी और अफरा-तफरी के माहौल से बचने के लिए खामोश करा दिया। नए साल के जश्न में दुनिया और चीन डूबे थे। और ठीक उनकी नाक के नीचे ये वायरस लगातार फैलता जा रहा था। 7 से 14, 14 से 21, 21 से 42 होते। ये तादाद हजार तक जा पहुंच गई। मगर चीन इस पर रोकथाम के बजाय इस जानलेवा बीमारी को दुनिया से छुपाने में ही लगा रहा।

डॉ. ली वेनलियांग इस बीच लगातार अपने डॉक्टर साथियों और लोगों को इस जानलेवा वायरस से ना सिर्फ आगाह कर रहे थे। बल्कि पीड़ितों को आइसोलेशन वार्ड में रखकर अपने तौर पर इलाज भी कर रहे थे। इस बीच ये खबरें चीन से निकलकर दुनिया तक पहुंचने लगी। चीन ने भी अब तक मान लिया कि उसके मुल्क को कोरोना नाम की एक महामारी ने जकड़ लिया है। फरवरी में अचानक खबर आई कि कोरोना वायरस के बारे में सबसे पहले जानकारी देने वाले डॉक्टर ली की मौत हो गई है। हालांकि सरकार विरोधी गुटों का ये मानना था कि चीन ने उन्हें इस महामारी का खुलासा करने की सजा दी है। आज चीन की एक गलती का खामियाजा पूरा विश्व भुगत रहा है। भारत में ज्यों-ज्यों कोरोना वायरस का टेस्ट बढ़ेगा, भारत के आंकड़ों के आगे अमेरिका, स्पेन, इटली की श्मशान की खबरें सामान्य लगने लगेंगी। लेकिन क्या यह रियलिटी वायरस से लड़ने की सरकार और जनता की लड़ाई के रोडमैप की असलियत नहीं होनी चाहिए? क्यों भारत के टीवी चैनल, मीडिया, नैरेटिव और भारत के लोग यह हल्ला नहीं बना रहे हैं कि बिना टेस्ट के हम कोरोना से नहीं लड़ सकते हैं। बिना युद्धस्तरीय मेडिकल टेकओवर, स्टेडियम-मैदानों को टेस्ट ग्राउंड, अस्पतालों में कनवर्ट किए हम महानगरों को मरघट बना डालेगें? तुरंत हर तहसील, हर जिले को उनकी सीमाओं में बांधकर उन्हें टेस्ट से लेकर अंत्येष्टि की गाइडलाइन में पाबंद बनाओ।

हां, हम यमदूत वायरस से तभी लड़ सकते हैं जब जागकर, होशोहवास में लड़ाई लड़ें। सीएनएन के ग्लोबल टाउनहाउस प्रोग्राम में स्पेन की रिपोर्ट में बताया गया है कि वहां प्रशासन ने वायरस के मरीज मृतकों के दाह संस्कार को रोक दिया, क्योंकि जगह और कर्मचारी की कमी से फिलहाल प्राथमिकता लड़ना है, समझ नहीं पड़ रहा कि करें तो क्या करें! कितनी दहला देने वाली बात है यह! लेकिन इटली और स्पेन जैसे महाविकसित व भारत से असंख्य गुना अधिक मेडिकल सुविधाओं, संजीदगी, अनुशासन, चुस्त सिस्टम वाले देश में यदि आज मृतकों की अंत्येष्टि भी मुश्किल चुनौती हो गई है तो गरीब, पिछड़े भारत में आने वाला वक्त क्या सिनेरियो लिए हुए होगा, यह क्या समझ नहीं आना चाहिए। क्या जुगाड़ में ही वक्त काटेंगे?

तभी इटली, स्पेन, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे देश वायरस से वेंटिलेशन पर गए लोगों को ही बचाने में फेल होते दिख रहे हैं पर मृत्यु दर न्यूनतम रखते हुए। विकसित देशों में मृत्यु दर संक्रमित लोगों में एक से दो प्रतिशत के बीच अटकेगी जबकि भारत सहित तीसरी दुनिया के बाकी देशों में कोरोना वायरस से बनने वाली मृत्यु दर तीन-चार प्रतिशत पहुंच जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। इसलिए क्योंकि इन देशों की वायरस के खिलाफ लड़ाई बिना संसाधन, बिना हथियार, बिना तैयारियों के है। अमेरिका, स्पेन, इटली आदि विकसित देश लॉकडाउन के बाद घरों से वायरस को निकाल उसे अस्पताल ले जाकर लड़ने का फोकस बनाए हुए हैं जबकि भारत में तालाबंद के साथ लोगों को, वायरस को घरों में लड़ने के लिए रामभरोसे छोड़ा जा रहा है। अब इस बिंदु पर यह फुलस्टॉप बनता है कि हम क्या कर सकते हैं? हमारे पास टेस्ट किट, लैब, अस्पताल, वेंटिलेशन, बख्तरबंद पीपीई पोशाक आदि याकि सार्वजनिक-निजीमेडिकल व्यवस्था का कुल जोड़ ही जब जर्जर है और दुनिया के बाजार की खरीदारी की मारामारी में ताबड़तोड़ सामान मंगवा सकना अपने लिए मुश्किल है तो करें तो क्या करें? इस पर फिर विचार करेंगे।

जांच के अपर्याप्त साधन

भारत में कोरोना वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन यहां इसके जांच की व्यवस्था सुदृढ़ नहीं है। यहां 10 लाख लोगों के पीछे 16 टेस्ट का औसत है, जबकि जिन देशों ने आपातकाल, लॉकडाउन से जंग शुरू की उसमें दक्षिण कोरिया में 6 हजार टेस्ट का औसत है तो न्यूयार्क में लॉकडाउन से पहले प्रति 10 लाख आबादी पर 16 टेस्ट थे और लॉकडाउन के बाद 12 मार्च को 1,145 और 21 मार्च को 6,276 की टेस्टिंग थी। अमेरिका में तीन दिन पहले औसत प्रतिदिन टेस्टिंग 1280 लोगों की थी तो इटली में लॉकडाउन के बाद 25 मार्च को 5268 टेस्ट प्रतिदिन थे। जबकि 130 करोड़ लोगों के भारत में 25 मार्च तक कुल ही टेस्ट 25,144 थे। जाहिर है भारत में तालाबंदी जुगाड़ में हम वायरस को छुपाए बैठे हैं। जिस दिन भारत में प्रति दस लाख के पीछे सौ टेस्ट भी होने लगेंगे और नतीजों में फुर्ती आई नहीं कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा प्रभावित देश होने का ग्राफ बनने लगेगा।

दुनिया में तबाही मचाने वाले अन्य वायरस

स्वाइन फ्लू, एच1एन1: एक खतरनाक वायरस की वजह से होने वाला संक्रमण है। इस वायरस ने 2009 में पूरी दुनिया में हाहाकार मचा दिया था। इस दौरान स्वाइन फ्लू की वजह से दुनियाभर में 2 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।

इबोला: इबोला एक खतरनाक वायरस है। जो कि 2014 से 2016 तक पश्चिम अफ्रीका में काफी जानलेवा साबित हुआ था। इस वायरस से करीब 11 हजार लोगों की जिंदगी खत्म हो गई थी। यह वायरस सबसे पहले 1976 में देखा गया था।

सार्स: अभी चीन में फैल रहे नोवेल कोरोना वायरस की तरह ही सार्स भी कोरोनावायरस का एक प्रकार है। जिसका प्रकोप 2003 में पूरी दुनिया में फैला था। सार्स एक खतरनाक वायरस है। जिसने 26 देशों के लोगों को अपना शिकार बनाया था और करीब 774 लोगों की मौत का कारण बना था।

मर्स: मर्स भी सार्स की तरह कोरोनावायरस का एक प्रकार है। जो कि सबसे पहले 2012 में सऊदी अरब में पाया गया। यह वायरस सबसे पहले चमगादड़ों में होता है, जो कि किसी तरह ऊंटों में फैल गया। इन्हीं संक्रमित ऊंटों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संपर्क में आने से यह वायरस इंसानों में आया है।

स्पेनिश फ्लू-1918: दुनिया का सबसे खतरनाक वायरस स्पेनिश फ्लू ने दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी को अपना शिकार बना लिया था। यह वायरस सबसे पहले यूरोप, यूनाइटेड स्टेट्स और एशिया के कुछ हिस्सों में देखा गया था। जिसने करीब 2 करोड़ से 5 करोड़ लोगों की जिंदगी खत्म कर दी थी।

कांगो फीवर: कांगो फीवर एक तरह का खतरनाक बुखार है। जो संक्रमित जूं के काटने या संक्रमित जानवर के खून के संपर्क में आने से फैलता है। डॉक्टर्स बताते हैं कि अब तक इसका कोई सटीक इलाज सामने नहीं आया है।

जीका वायरस: जीका वायरस एक वायरल संक्रमण है। जो मुख्य रूप से मच्छर के काटने से होता है। मच्छर संक्रमित व्यक्ति को काटकर वायरस को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचा देता है। भारत में हर साल लगभग पांच हजार मामले जीका वायरस के आते हैं। गर्भवती महिला को जीका होने का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।

एचआईवी-एड्स: एचआईवी-एड्स का पहला मामला 1976 में डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में देखने को मिला था। एचआईवी की वजह से अब तक दुनियाभर में अनुमानित 3 करोड़ 20 लाख लोगों की जान जा चुकी है।

डेंगू बुखार: मच्छरों से फैलने वाले डेंगू बुखार से हर साल 5 करोड़ से लेकर 10 करोड़ लोग बीमार पड़ते हैं। भारत और थाइलैंड जैसे देशों में डेंगू का खतरा काफी बड़ा है। डेंगू से रक्त वाहिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं या रिसने लगती हैं। रक्तप्रवाह से प्लेटलेट्स गिर जाते हैं। जिससे व्यक्ति की मौत हो जाती है।

-  अक्स टीम

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