देश के सबसे बदहाल क्षेत्र में से एक बुंदेलखंड में बेरोजगारी, भुखमरी, पलायन तो परंपरागत समस्या है। इस लॉकडाउन में करीब 9 लाख लोग बुंदेलखंड के 13 जिलों में वापस लौटे हैं। इन लोगों के सामने अब रोजी-रोटी की समस्या खड़ी है।
बुं देलखंड की बंजर जमीन हमेशा से यहां के लोगों के लिए अभिशाप रही है। लेकिन इस बार लॉकडाउन ने क्षेत्र में स्वरोजगार और रोजगार की संभावनाओं को जन्म दिया है। हालांकि अभी पलायन कर यहां पहुंचे लोगों को मनरेगा के तहत काम दिया जा रहा है लेकिन जल्द ही इस बंजर जमीन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'लोकल बनेगा वोकल’ का नारा साकार होने जा रहा है। डिफेंस कॉरिडोर में सेना के लिए रक्षा उत्पाद बनाने वाली कई कंपनियां यहां अपनी इकाइयां लगाने जा रही हैं। इतना ही नहीं, फूड प्रोसेसिंग, आयुर्वेद व सोलर एनर्जी से जुड़ीं देशी कंपनियां भी बुंदेलखंड की ओर रुख करने की तैयारी कर रही हैं। उद्योग विभाग के अनुसार आगामी एक साल के भीतर प्रधानमंत्री के नारे का असर बुंदेलखंड में नजर आने लगेगा।
मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों को विकास की रफ्तार देने वाले बुंदेलखंड के श्रमिक अब अपने क्षेत्र की तस्वीर और तकदीर बदलेंगे। यहां की बंजर जमीनें क्षेत्र के विकास को नया आयाम देंगी। कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए लोकल बनेगा वोकल का नारा बुंदेलखंड की धरती पर बुलंद होगा। हालांकि, इसका खाका क्षेत्र में डिफेंस कॉरिडोर की नींव पड़ने के साथ ही तैयार होने लगा था। देश की प्रमुख कारतूस बनाने वाली कंपनी स्टंप्स श्यूले एंड सोंप्पा लिमिटेड का झांसी में इकाई स्थापित करने के लिए प्रदेश सरकार से करार हो चुका है। इतना ही नहीं, आयुर्वेद उत्पाद बनाने वाली देश की प्रमुख कंपनी पतंजलि भी यहां सौ एकड़ में अपनी इकाई स्थापित करने जा रही है। जमीन लेने के साथ कंपनी की तैयारियां अंतिम दौर में पहुंच चुकी हैं। बुंदेलखंड को दलहन और तिलहन का हब माना जाता है। यही वजह है कि फूड प्रोसेसिंग से जुड़े कई उद्यम यहां शुरू होने जा रहे हैं। ललितपुर रोड पर एक ही परिसर में लगभग चालीस इकाइयां शुरू होने जा रही हैं।
झांसी में जल्द ही ड्रोन कैमरों का निर्माण शुरू होगा। इसके लिए एक भारतीय कंपनी ने उद्योग विभाग से संपर्क साधा है। विभाग से कंपनी ने जमीन मांगी है। जमीन की उपलब्धता होने पर कंपनी यहां अपने इकाई स्थापित करेगी। कंपनी की ओर से जमीन की तलाश शुरू कर दी गई है। ये जमीन उद्योग विभाग के माध्यम से ली जाएगी। इस इकाई के लग जाने से यहां कुशल-अकुशल तकरीबन 300 लोगों को रोजगार मिलेगा। इसी तरह मप्र के 6 जिलों में भी रोजगार मूलक गतिविधियां शुरू होने वाली हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अधिकारियों को इसके लिए प्रस्ताव बनाने का निर्देश दिया है। बताया जाता है कि मप्र सरकार की मंशा है कि इस वित्तीय वर्ष में बुंदेलखंड में कुछ ऐसे उद्योग स्थापित किए जाएं जिससे यहां के लोगों का पलायन रुके। सोलर एनर्जी के क्षेत्र में बुंदेलखंड अपार संभावनाओं से भरा हुआ है। यहां का वातावरण सौर ऊर्जा के उत्पादन के लिए एकदम अनुकूल माना जाता है। यहां पहले से ही देश के प्रतिष्ठित अडाणी ग्रुप की इकाई स्थापित है। अब टेहरी की एक कंपनी से भी यहां 250 मेगावाट उत्पाद की क्षमता के सोलर पावर प्लांट के लिए करार हुआ है। इसके लिए जमीन चिन्हित करने का काम किया जा रहा है। प्रधानमंत्री के लोकल बनेगा वोकल के नारे की झलक बुंदेलखंड में एक साल के भीतर नजर आने लगेगी। डिफेंस कॉरिडोर में कई भारतीय कंपनियां अपनी इकाई स्थापित करने जा रही हैं। इसके अलावा फूड प्रोसेसिंग व आयुर्वेद के क्षेत्र में भी देशी कंपनियां यहां आ रही हैं। यहां जमीन और श्रमिकों की सुगमता से उपलब्धता उद्यमियों के लिए आकर्षक का केंद्र बनी हुई है। सोलर एनर्जी क्षेत्र में भी यहां बड़ी इकाई लगने वाली है।
लॉकडाउन के चलते चार राज्यों से बुंदेलखंड के 9 लाख मजदूर घर वापसी कर चुके हैं। वापसी का सिलसिला अभी भी जारी है। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों में छोटे कारखानों से लेकर बड़े उद्योग इनकी मेहनत के बूते पर संचालित होते हैं, लेकिन अब सवाल खड़ा हो गया है कि मजदूरों के वापस लौटने के बाद यह उद्योग कैसे शुरू होंगे। वैसे भी कोरोना महामारी के दौरान भारी पीड़ा झेलने के बाद अब मजदूर दोबारा शहर जाने को तैयार नहीं हैं। इसलिए उत्तर प्रदेश और मप्र की सरकारें इनके लिए यहीं पर रोजगार की व्यवस्था करने जा रही हैं।
बाहर से लौटे मजदूरों को दिया जा रहा है काम
फिलहाल जो मजदूर बाहर से लौटे हैं उन्हें मनरेगा में रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है। बुंदेलखंड के जनपदों से बड़ी संख्या में श्रमिक दूसरे राज्यों और शहरों में मजदूरी करने के लिए जाते हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में तो इनकी संख्या बहुतायत है। लेकिन लॉकडाउन के बाद सभी वापस लौट आए हैं। एक बड़ी संख्या तो ऐसे मजदूरों की है जो सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय करके पहुंचे हैं। टीकमगढ़ निवासी नरेंद्र, प्रेमपाल और अनुज ने बताया कि वह 200 साथियों के साथ महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से वापस लौटे हैं। उनका कहना है कि महाराष्ट्र में ही 200 से ज्यादा फैक्टरी ऐसी हैं जहां बुंदेलखंड के लोग काम कर रहे थे, मगर सभी वापस लौट आए हैं। छतरपुर निवासी अनिल, कुमार और संजय ने बताया कि फिलहाल वह लोग वापस परदेस नहीं लौटेंगे। जब हालात पूरी तरह से सामान्य हो जाएंगे तब विचार किया जाएगा। गुजरात से लौटे दतिया निवासी अमित कुमार ने बताया कि स्टील कारखानों में वो लोग काम करते थे। कारखाने बंद हो गए तो वो लोग आ गए। निवाड़ी के राजेंद्र ने बताया कि उनके जिले से ही करीब 2000 मजदूर गुजरात में थे, लेकिन सभी आ गए हैं। श्रमिक ठेकेदार हरगोपाल का कहना है कि कुछ जगहों से तो फोन भी आने लगे हैं कि फैक्ट्री शुरू करनी है श्रमिकों को लेकर आ जाओ। लेकिन यह लोग जाएंगे कैसे।
- राकेश ग्रोवर